MP : कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई रुकी तो इस शासकीय शिक्षिका ने अपनाया ये तरीका की दूर से देख दौड़ पड़ते हैं बच्चे

 
MP : कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई रुकी तो इस शासकीय शिक्षिका ने अपनाया ये तरीका की दूर से देख दौड़ पड़ते हैं बच्चे

सीधी। लॉकडाउन में गरीब बच्चों की पढ़ाई रुकी तो शासकीय शिक्षिका उषा दुबे ने खुद की स्कूटी को चलता फिरता पुस्तकालय बना लिया। सुबह आठ बजे से चार घंटे तक बच्चों के बीच रहना और उनको पढ़ाना अब दिनचर्या बन गया है। बच्चे भी 'किताबों वाली दीदी' का सुबह से उठकर इंतजार करते हैं। स्कूटी की आवाज सुनकर वे दौड़ पड़ते हैं। स्कूटी में ज्ञान-विज्ञान से लेकर जरूरी विषयों की 100 किताबें मौजूद रहती हैं।

चलता-फिरता पुस्तकालय मिलने से बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं। सिंगरौली जिले की माध्यमिक पाठशाला हर्रई पूर्व में पदस्थ शिक्षिका बच्चों को कहानियां पढ़ाने और वाचन क्षमता बढ़ाने के लिए करीब दो महीने से मोहल्ले-मोहल्ले पहुंच रही हैं। हर मोहल्ले में करीब 15-20 बच्चे अलग-अलग आकर कहानियां पढ़ते हैं। साथ ही बच्चे अब अंग्रेजी भाषा बोलना भी सीख रहे हैं। इससे बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं।

उनका कहना है कि लॉकडाउन के बाद बच्चों की पढ़ाई एकदम रुक सी गई थी। चलते-फिरते इस पुस्तकालय ने तो बच्चों में उत्साह पैदा कर दिया है। अब आलम यह है कि बच्चे उनका इंतजार करते रहते हैं। उन्हें स्कूल जैसा माहौल मिल रहा है।

ऐसे होती है पढ़ाई

पुस्तकालय में कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के बच्चों के लिए किताबें मौजूद रहती हैं। वे चार किमी क्षेत्र में चिन्हित मोहल्ले में बच्चों को इकट्ठा करके पुस्तकें देती हैं। बच्चों को अलग-अलग खड़ा करके वाचन करने में लगे समय को बाकायदा नोट करती हैं। अगले दिन यह देखती हैं कि पढ़ाई के समय में कितना सुधार हुआ और कहां कमी रह गई। बच्चे करीब एक घंटे तक कहानियां पढ़ते हैं। कहानी के अलावा अंग्रेजी सहित अन्य विषयों पर भी चर्चा की जाती है।

इनका कहना है

लॉक डाउन में बच्चे घर पर थे और उनकी पढ़ाई नहीं हो पा रही थी। मुझे ऐसा लगा कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि बच्चे पढ़ाई के प्रति आकर्षित हों और उनका मन पढ़ाई में लगा रहे। चलते-फिरते पुस्तकालय से बच्चों में उत्साह है और वह पढ़ाई कर रहे हैं।

उषा दुबे, महिला शिक्षक

इनका कहना है

माध्यमिक शाला हर्रई पूर्व में पदस्थ उषा दुबे लगातार पुस्तकालय लेकर मोहल्ले में जा रही हैं। मैंने खुद जाकर बच्चों से बात की तो बच्चों में अच्छा खासा उत्साह देखने को मिला है।

अशोक शुक्ला, बीआरसीसी बैढ़न

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