जमीनी युवा नेताओं को पार्टी में एंट्री : एक के बाद एक चुनाव हार रही कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी : क्या भविष्य के चेहरों को लेकर कन्फ्यूज है कांग्रेस की रणनीति?

 

जमीनी युवा नेताओं को पार्टी में एंट्री : एक के बाद एक चुनाव हार रही कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी : क्या भविष्य के चेहरों को लेकर कन्फ्यूज है कांग्रेस की रणनीति?

जेएनयू नारेबाजी मामले से चर्चा में आए कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवानी मंगलवार को कांग्रेस में शामिल होंगे. कांग्रेस में इन युवा चेहरों की एंट्री ऐसे समय में हो रही है जब पार्टी से नाता तोड़ने की नेताओं में होड़ सी लगी है.

हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे कई युवा चेहरों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा है. शर्मिष्ठा मुखर्जी ने तो इसी हफ्ते राजनीति से संन्यास तक का ऐलान कर दिया. इधर कुछ दिन से चर्चा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के भी कांग्रेस जॉइन करने की हो रही है. युवा नेताओं की कांग्रेस में एक ही समय एंट्री और एक्जिट से सवाल उठ रहे हैं कि क्या पार्टी में अपने भविष्य के चेहरों को लेकर कन्फ्यूजन है?

देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह के जन्मोत्सव के मौके पर मंगलवार को जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक व दलित नेता जिग्नेश मेवानी को कांग्रेस अपने साथ जोड़कर एक साथ कई समीकरण साधने का दांव चल रही है. 

राहुल के करीबी छोड़ रहे कांग्रेस

दरअसल, कांग्रेस में युवा नेताओं को लेकर तब से सवाल उठ रहे हैं, जब हाल ही एक के बाद एक कई नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी या अन्य दलों का दामन थामते रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, अशोक तंवर, प्रियंका चतुर्वेदी, ललितेशपति त्रिपाठी जैसे कई युवा नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए. ये सभी ऐसे नाम हैं, जिन्हें राहुल गांधी के सबसे प्रमुख करीबियों में गिना जाता था. यूपीए सरकार के दौरान तमाम ओहदों पर भी रहे. राहुल के इस यूथ ब्रिगेड को कांग्रेस के भविष्य का चेहरा माना जाता था. इसके बाद भी कांग्रेस इन्हें पार्टी में रोककर नहीं रख सकी.  

कांग्रेस में एक के बाद एक कई युवा नेता पार्टी छोड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ गुलाम नबी आजाद सहित तमाम बुजुर्ग नेता पार्टी में साइड लाइन हैं. माना जा रहा है कि युवा नेताओं के जाने से पैदा हुए वैक्यूम को भरने के लिए कांग्रेस कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी की एंट्री करा रही है. दोनों ही नेता युवा हैं, आंदोलन से निकले हैं और अपनी पीढ़ी के युवाओं के बीच अच्छी पकड़ भी रखते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस कन्हैया, जिग्नेश और हार्दिक जैसे नेताओं की 'आउटसोर्स' करके युवाओं की पार्टी न रहने का ठप्पा हटाना चाहती है. 

राहुल ब्रिगेड को विरासत में सियासत मिली

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस छोड़कर जाने वाले युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव और ललितेशपति त्रिपाठी वंशवादी राजनीति से आए हैं. इन नेताओं के परिवार के लोग कांग्रेस के बड़े और अहम पदों पर रहे हैं, जिसके चलते वो गांधी परिवार के करीबी भी बन गए. इससे उन्हें बहुत जल्द राजनीतिक पहचान मिल गई, लेकिन 2014 में कांग्रेस का सियासी ग्राफ डाउन होने से इन सारे नेताओं को अपने सियासी भविष्य की चिंता सताने लगी. ऐसे में वो पार्टी छोड़ रहे हैं. 

रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी राजनीति में कई सियासी प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है. ऐसे में उन्होंने जिन युवा नेताओं को आगे बढ़ाया है वो एक-एक कर पार्टी छोड़ते जा रहे हैं. ऐसे में वो अब जमीनी युवा नेताओं को पार्टी में एंट्री कराने की रणनीति बनाई है और उन्हें ही आगे बढ़ाने का प्लान है. जिग्नेश मेवानी, हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार किसी न किसी आंदोलन से निकले हैं और अपनी पहचान खुद के दम पर बनाई बनाई है. हार्दिक पटेल को कांग्रेस ने गुजरात का कार्यकारी अध्यक्ष बना रखा है और अब जिग्नेश को लाकर राज्य में एक मजबूत युवा लीडरशिप खड़ी करना चाहती है. 

आंदोलन से निकले नेताओं को बनाएगी कांग्रेस चेहरा

अगले साल 2022 की शुरुआत में यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर समेत कुल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और जबकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आखिर में चुनाव हैं. ऐसे में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी का साथ मिलना कांग्रेस को चुनावी रेस में कितना आगे ले जाता है, ये तो भविष्य बताएगा. लेकिन, एक के बाद एक चुनाव हार रही कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी कर रही है.

कांग्रेस की नजर विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव पर भी है. चुनाव में जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए पार्टी जातीय समीकरणों के साथ युवाओं पर दांव लगाने जा रही है, ताकि, 2024 के चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की जा सके. दलितों को सकारात्मक संकेत देने के लिए पहले चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया और अब जिग्नेश मेवानी की एंट्री. इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस अपने पुराने और परंपरागत दलित वोटों को दोबारा से वापस लाने के लिए हर कदम उठाने को तैयार है. 

जिग्नेश मेवानी दलित आंदोलन का चेहरा

जिग्नेश मेवानी दलित आंदोलन का चेहरा रहे हैं. राजनीति में आने से पहले वह पत्रकार, वकील थे और फिर दलित एक्टिविस्ट बने और अब नेता हैं. मेवानी तब अचानक सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की थी कि अब दलित लोग समाज के लिए मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकालने, मैला ढोने जैसा 'गंदा काम' नहीं करेंगे. इसके बाद से मेवानी देश भर की सुर्खियों में रहे हैं. वो अक्सर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस में उनकी एंट्री का रास्ता बना है. 

कन्हैया की मोदी विरोध पहचान

कन्हैया कुमार छात्र आंदोलन से निकले हैं. सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़े हुए रहे हैं. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय से चुनाव लड़ा था और बीजेपी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह से हार गए थे. लेकिन, कन्हैया कुमार ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था.

कन्हैया कुमार जेएनयू में चर्चा में इसलिए आए थे कि उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने देशविरोधी नारे लगाए थे, हालांकि यह आरोप अभी तक साबित नहीं हो पाया है. इस मुद्दे पर बीजेपी ने उन्हें घेरा था, जिसके कारण से कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर पर हीरो बन कर उभरे थे. मोदी विरोधी चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बनाई. वह शानदार भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं. वह देश भर में डिबेट में शामिल होते रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि कन्हैया और जिग्नेश की एंट्री से पार्टी में शक्ति का संचार करें और संघर्ष से पार्टी में जान आएगी? Live TV

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