MP : 'लव सॉरीज' फिल्म : क्या वाकई प्यार हर धर्म, हर रिश्ते से ऊपर है? फिल्म रिलीज कराने के साथ लव स्टोरीज के नए एंगल को लोग एक्सेप्ट करें, यह बड़ा चैलेंज था

 

इंदौर। क्या वाकई प्यार हर धर्म, हर रिश्ते से ऊपर है? या अंत में वास्तविकता के सामने सब कुछ धुंधला जाता है? इसी सवाल को आज के दौर की प्रेम कहानियों से जोड़ते हुए शहर के फिल्म मेकर गौतम जोशी ने बनाई है एंथोलॉजी फिल्म 'लव सॉरीज...'। 28 मई को यह 20 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज की गई। इसमें चार कहानियां हैं। टाइटल हैं स्ट्रॉबेरी, डबल चीज़, केसर पिस्ता और इश्क के चने।

इन कहानियों के जरिए डायरेक्टर गौतम जोशी ने मोहब्बत के चार रंग दिखाए हैं। हर कहानी एक-दूसरे से अलग नजर आती है, लेकिन कहीं न कहीं जुड़ी सी महसूस होती है। हर कहानी करीब 20 मिनट की है। फिल्म में करनवीर शर्मा, अर्चना गुप्ता, आकाश तलवार, प्रीतिका राव, पुनीत चौकसे, स्टेफी पटेल, प्रियांशु सिंह, आकाश मखीजा और देविशी मदान ने एक्टिंग की है। संगीत हिमांशु जोशी का है। कुछ गीत भी उन्होंने ही गाए हैं। सवा करोड़ रुपए से बनी इस फिल्म को तारीफ मिल रही है। इसी कड़ी में दैनिक भास्कर ने फिल्म के डॉयरेक्टर हिमांशू जोशी से बात की...

गौतम ने बताया कि चार कहानियों में से एक कहानी का अधिकतम हिस्सा आई बस की मिनी इलेक्ट्रिक बस में शूट किया गया है।

फिल्म को एक सप्ताह हो गया है, क्या इस फिल्म से उम्मीदें पूरी हुईं?

गौतम ने कहा, फिल्म को नेशनली लेकर जाने के विचार के साथ शुरू किया था। लोग देखें, हम क्या नया कॉन्सेप्ट लेकर आ रहे हैं। पहला एचीवमेंट यह रहा कि बड़ा एक्सपोजर मिला। 20 ओटीटी प्लेटफाॅर्म पर रिलीज हुई। उसके बाद इतने खूबसूरत रिव्यूज आए कि मजा आ गया।

फिल्म में चार कहानियां हैं, कौन सा पार्ट है जो रिव्यूज में बेस्ट रहा?

रिव्यूज की बात करें, तो हर फिल्म मेकर चाहे वह छोटा हो या फिर बड़ा, उसकी इच्छा होती है कि अच्छी लव स्टोरीज बनाए। हम भी वही चाहते थे। लव स्टोरीज लोगों को बताना और समझाना आसान होता है, लेकिन लव स्टोरीज के इस नए एंगल को लोग एक्सेप्ट करें, यह हमारे लिए चैलेंज था। हालांकि लोगों ने एक्सेप्ट तो किया ही, उसकी तारीफ भी कर रहे हैं।

हिंदुस्तान में 70 फीसदी फिल्में लव स्टोरी वाली होती हैं, ऐसे में आपने यह खतरा क्यों लिया?

जब मैं चार-पांच फिल्में बना लूं और वे अच्छी चल जाएं, तो मुझे कुछ खोने का डर होता है। यह मेरी पहली फिल्म है। जिस तरीके से हिमांशू ने म्यूजिक दिया है। टीम के काम को देखकर बिल्कुल डर चला गया। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है।

बॉलीवुड पर बड़े नामाें का कब्जा है। ऐसे में अपनी फिल्म को रिलीज करवाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा?

इसके दो जवाब, एक डिप्लोमैटिक जवाब है। हां, थोड़ा बहुत होता है, चलता है, पार्ट ऑफ इंडस्ट्री। प्रैक्टिल जवाब है, हां बहुत कठिन है। बिल्कुल उतना ही, आज से 25 साल पहले रांची जैसे छोटे शहर से आए महेंद्र सिंह धोनी जिन्होंने ना सिर्फ नाम कमाया, बाद में कप्तान बने, वर्ल्ड कप जिताया, जिनता मुश्किल उनके लिए था, उतना ही मुश्किल छोटे शहरों के फिल्म मेकर के लिए आज है। हमने प्रयास किया, कई लोग हैं जिनके पास कुछ नया करने की इच्छा, हार नहीं मानने की काबिलियत है, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। जितने भी बड़े घराने हैं, जो अपनी इमेज, स्टार के रुतबे और फेस्टिवल को देखकर फिल्में बनाते हैं, उन लोगों के दिन अब लद जाएंगे। पिछले कुछ दिनों से यह दिख भी रहा है।

पहली कहानी 'स्ट्रॉबेरी', दूसरी कहानी 'डबल चीज' है, तीसरी कहानी है 'केसर पिस्ता', वहीं 'एंथॉलजी' की चौथी कहानी एक अलग कॉन्सेप्ट पर है।

आने वाले हफ्तों में फिल्म को कहां जाता देखते हैं?

लाइफ फास्ट हो गई है। कपड़े में प्रेस से लेकर घर बनाने तक में काफी बदलाव आया है। देखें तो हमने पानी पीने की गति तक तेज कर दी है। लाइफ में तेजी आई है, तो फिल्मों में भी तेजी आएगी। पहले तीन घंटे की फिल्में हुआ करती थीं। अब वह डेढ़ घंटे में सिमटने लगी है। हो सकता है कि आने वाले समय में यह एक घंटे की हो जाए। इसलिए सभी प्लेटफार्म अब शॉर्ट फार्म के बिजनेस सेटअप लेकर आ रहे हैं। समय के हिसाब से चलेंगे तो एक्पोजर मिलेगा।

फिल्म बनाना हमेशा से खर्चीला रहा है, ऐसे में इस फिल्म के लिए बजट कैसे मिला?

कई बार कोई काम करते समय लिमिटेशन कई बार वह पोटेंशियल में कंवर्ट हो जाती हैं। हमने मुंबई का एक्पोजर बहुत देखा नहीं है। इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा लोगों को जानते नहीं हैं। हम टीवी कमर्शियल ही बना रहे थे। मेन स्ट्रीम में आने का यह पहला मौका था, इसलिए मुंबई में फाइनेंसर नहीं मिले। मैैंने बड़ा समय इंदौर सहित मप्र में गुजारा है इसलिए लोगों ने रिलेशन अच्छे हैं। लोगों ने हमारे 20 साल के काम को देखा है। हमने अपने ग्रुप, स्कूल फ्रेंड्स को जोड़ा, 35-40 लोग साथ आए और इस प्रकार से फिल्म के लिए बजट की व्यवस्था हो गई।

फिल्म में चार अलग-अलग कहानियां हैं, फिल्म के बारे में कुछ बताएं...?

सीरीज में एक-दूसरे से जुड़ी चार अलग कहानियां हैं। तकनीकी तौर पर इसे एंथोलॉजी कहा जाता है। टाइटल हैं स्ट्रॉबेरी, डबल चीज़, केसर पिस्ता और इश्क के चने। ये सब फूड आइटम पर बेस्ड हैं। इसमें नाम के साथ स्टोरी का क्लाइमैक्स इंपॉर्टेंट रोल प्ले करता है। फिल्म देखेंगे तो लगेगा कि मैंने यह स्टोरी कहीं देखी सुनी है। हालांकि फिल्म जब खत्म होगी तो आपको उसका क्लाइमैक्स देखा सुना नहीं लगेगा।

लव के कॉन्‍सेप्‍ट पर एक अलग टेक लिया

गौतम ने बताया कि 'इस सीरीज में लव के कॉन्‍सेप्‍ट पर एक अलग टेक लिया गया है। एक‍ बात छेड़ी गई है कि बरसों से कहीं इस प्‍यार की अवधारणा को पीढ़ी दर पीढ़ी कहीं ज्‍यादा ही तो तव्‍वजो नहीं दे दी गई है। हमने इसे मप्र के अलग-अलग इलाकों में शूट किया है। हम इस सीरीज के जरिए आज के भारत में प्‍यार को लेकर जो युवाओं की सोच है, उसको आईना दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।'


फिल्म की अभिनेत्री प्रीतिका राव ने कहा कि यह उनकी पहली एंथोलॉजी फिल्म है।

प्रीतिका बोलीं - मेरी पहली एंथोलॉजी फिल्म

फिल्म की अभिनेत्री प्रीतिका राव ने कहा कि यह उनकी पहली एंथोलॉजी फिल्म है। मैंने गौतम के बारे में खूब सुना था। मेरा इसमें रोल छोटा है, लेकिन इसमें मेरा बहुत ही साफ-सुधरा रोल था। फिल्म की स्टोरी भी बहुत ही खूबसूरत थी। मैंने बॉलीवुड में भी कोई रोल नहीं किया है। हां साउथ की फिल्में जरूर की हैं। टीवी में काम किया। इसमें चार अलग कहानियां हैं। हर कहानी 20 मिनट की हैं। मेरा रोल कंपनी के बॉस की है। हमने इंदौर में भी शूट किया। जब भी मैं इंदौर आई हूं। महाकाल जाकर दर्शन जरूर किया है। यह फिल्म करके मजा आया।

फिल्म की शूटिंग डेली कॉलेज के साथ बीआरटीएस, बायपास और भोपाल के एमपी नगर में की गई है।

डेली कॉलेज, कनाडिया और आई बस में की शूटिंग

सिफर फिल्म प्रोडक्शन की इस फिल्म की शूटिंग डेली कॉलेज के साथ बीआरटीएस, बायपास और भोपाल के एमपी नगर में की गई है। गौतम ने बताया कि चार कहानियों में से एक कहानी का अधिकतम हिस्सा आई बस की मिनी इलेक्ट्रिक बस में शूट किया गया है। वहीं, दूसरी कहानी को पूरी तरह से कनाडिया गांव में फिल्माया गया है। नवंबर 2019 से फरवरी 2020 के बीच इस फिल्म की शूटिंग पूरी हुई। इसकी चारों कहानियों में हमने यह कहने की कोशिश की है कि हर बार अंत में प्रेम पर कोई दूसरी भावना हावी हो जाती है और नतीजतन मोहब्बत नज़रअंदाज़ कर दी जाती है।