वर्दी की आड़ में 'हफ्ता वसूली': हत्या का डर दिखाकर SI ने मांगे 1.5 लाख, लोकायुक्त ने 1 लाख लेते दबोचा!

 
हत्या के झूठे केस में फंसाने की धमकी देकर मांगे थे डेढ़ लाख, लोकायुक्त ने आजाद नगर थाने के सब-इंस्पेक्टर को पकड़ा

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) इंदौर में पुलिस विभाग की छवि को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है। लोकायुक्त की एक बड़ी कार्रवाई में, आजाद नगर पुलिस थाने में तैनात सब-इंस्पेक्टर (एसआई) धर्मेंद्र राजपूत को 1 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया है। यह एसआई एक व्यक्ति को हत्या के झूठे मामले में फंसाने की धमकी देकर लगातार ब्लैकमेल कर रहा था। यह घटना दिखाती है कि कैसे कुछ पुलिसकर्मी अपनी वर्दी का दुरुपयोग कर आम लोगों को परेशान करते हैं।

क्या है पूरा मामला?
शिकायतकर्ता संतोष कुमार तोमर, जो एक सिक्योरिटी सर्विस कंपनी में मैनेजर हैं, ने लोकायुक्त में एसआई धर्मेंद्र राजपूत के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। एसआई ने संतोष के पिता रामचंद्र तोमर को पुलिस थाना आजाद नगर में दर्ज प्रकरण क्रमांक 504/2025 में झूठा फंसाने की धमकी दी थी।

एसएचओ ने उन्हें इस झूठे केस से बचाने के लिए डेढ़ लाख रुपये की मांग की। जब संतोष के पिता को मामले में आरोपी बनाया गया और उन्होंने अग्रिम जमानत ले ली, तब भी एसआई ने अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। उसने संतोष को थाने बुलाकर आगे कोई कानूनी कार्रवाई न करने के एवज में रिश्वत की मांग जारी रखी। यह स्थिति आम नागरिकों के लिए न्याय की उम्मीद को खत्म कर देती है, जब सुरक्षा देने वाले ही भक्षक बन जाते हैं।

लोकायुक्त ने कैसे किया भंडाफोड़?
संतोष कुमार तोमर ने हार नहीं मानी और उन्होंने सीधे इंदौर लोकायुक्त से संपर्क किया। लोकायुक्त ने उनकी शिकायत की गंभीरता को देखते हुए तुरंत जांच शुरू कर दी, जिसमें शिकायत सही पाई गई।

जांच के बाद, 15 सितंबर को लोकायुक्त की एक विशेष टीम ने जाल बिछाया। जैसे ही एसआई धर्मेंद्र राजपूत ने संतोष कुमार तोमर से 1 लाख रुपये की रिश्वत ली, लोकायुक्त की टीम ने उसे रंगे हाथ पकड़ लिया। इस कार्रवाई में निरीक्षक सचिन पटेरिया सहित पूरी टीम शामिल थी। आरोपी एसआई के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है, और आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

पुलिस में भ्रष्टाचार: एक गंभीर समस्या
यह घटना कोई अकेली नहीं है। यह उन कई मामलों में से एक है जहां पुलिसकर्मी अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करते हैं। चंद हजार रुपये की सैलरी पाने वाले पुलिसकर्मियों की रईसी अक्सर जांच का विषय बनती रही है। इस तरह के भ्रष्ट आचरण से आम जनता का पुलिस पर से भरोसा उठ जाता है, जो कानून-व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है।

लोकायुक्त जैसी संस्थाएं भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत दीवार के रूप में काम कर रही हैं, लेकिन यह जरूरी है कि पुलिस विभाग खुद अपने भीतर ऐसे तत्वों को पहचान कर उन पर कड़ी कार्रवाई करे ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।