REWA : हालात से लड़ते हुए पहले खुद को संवारा, अब देशभर की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की सीख दे रहीं आशा

 

रीवा। एक लड़की जिसकी पढ़ाई पूरी होने से पहले शादी कर दी गई। ससुराल में हालात ऐसे नहीं मिले कि आगे बढऩे के अवसर मिले। परिस्थितियों से घबराने के बजाए हिम्मत जुटाई और खुद ही आगे बढऩे निकल पड़ी। आज राष्ट्रीय स्तर पर सेवा देने का अवसर मिल रहा है। यह कहानी है रीवा जिले के जोरी गांव की रहने वाली आशा सिंह की। जिन्होंने वर्ष 2010 में गांव में बनाए गए लक्ष्मी स्वसहायत समूह में एक सदस्य के रूप में जुड़कर काम शुरू किया। समूह से आजीविका राशि लेकर गांव में ही छोटे काम शुरू किए, जिससे परिवार का ठीक तरीके से खर्च भी चलने लगा। इस बीच आशा ने अपने पति की पढ़ाई में मदद की और उन्हें बीएड की डिग्री दिलवाई। 

इसके बाद पति ने भी प्रोत्साहित किया और कम उम्र में शादी होने की वजह से दसवीं कक्षा तक पढ़ी आशा को पढऩे में मदद की। सिलाई प्रशिक्षण, कम्प्यूटर की डिग्री और स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आशा के हौसलों को पंख लगे और काम के प्रति लगन को देखते हुए आजीविका मिशन में नए अवसर मिलते गए। इनदिनों वह ग्रामीण आजीविका मिशन की राष्ट्रीय स्तर पर उन चुनिंदा महिलाओं में शामिल हो गई हैं जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ट्रेनिंग दे रही हैं। हाल के दिनों में ही तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और हिमांचल प्रदेश में स्व सहायता समूहों के लिए काम कर रही महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। साथ ही दूसरे कई राज्यों में जाने का भी कार्यक्रम तैयार है।

आशा सिंह का कहना है कि परिस्थितियों से घबराने के बजाए आगे बढऩे के लिए सोचना चाहिए। पूरी लगन से काम करने से सफलता अपने आप मिलने लगती है।

तीन साल की मेहनत से राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

स्व सहायता समूहों में काम कर रही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वर्ष 2015 से आशा सिंह ने प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया। पहले जिला स्तर पर फिर एसआरएलएम ने स्टेट स्तर पर मौका दिया। वर्ष 2018 में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ रूलर डेवलपमेंट एण्ड पंचायती राज(एनआइआरडी) हैदराबाद में इंटरव्यू के जरिए चयनित हुई। इसी दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से कई महीने तक इंतजार करना पड़ा। वह हार नहीं मानी और फिर पहुंची और नेशनल लेवल की ट्रेनर बनकर देशभर में ट्रेनिंग देने के लिए जाने लगी हैं।

पूरा गांव स्वरोजगार से जुड़ा

आशा अपने गांव में केवल अकेली नहीं है, बल्कि पूरे गांव की महिलाएं आत्मनिर्भरता के मामले में दूसरों के लिए प्रेरक बनी हुई हैं। जोरी गांव में 15 समूह हैं, जिसमें करीब तीन सौ की संख्या में महिलाएं काम कर रही हैं। इसमें सिलाई सेंटर, दूध डेयरी, सब्जी उत्पादन, खेती, अगरबत्ती का कारोबार, पैकेजिंग सहित अन्य कई व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं। इस गांव के स्व सहायता समूहों के कार्य को दिखाने के लिए बाहर से आने वाले अधिकारियों को लेकर प्रशासन अक्सर पहुंचता है, ताकि जिले के काम का आंकलन किया जा सके।