SRT Ultra Marathon 2022 : रीवा के विकास ने देश की सबसे बड़ी मुश्किल SRT मैराथन रेस में हासिल किया दूसरा स्थान

 

( ग्राउंड एमपी 17 ऋतुराज द्विवेदी की रिपोर्ट ) REWA NEWS IN HINDI : रीवा जिले के रहने वाले विकास कुमार द्विवेदी ने जिले के साथ- साथ  देश का भी नाम किया रोशन। देश की सबसे बड़ी मुश्किल SRT मैराथन में भाग लेकर विकास ने  द्वितीय स्थान किया अर्जित। इस कठिन रेस में विकास द्विवेदी ने कई कठिन परिश्रम किए हैं. आपको बता दें कि साल में यह मैराथन रेस होती रहती है और इस रेस में भाग लेना कोई बच्चों का खेल नहीं है जी हां हम आपको बता दें कि यह रेस कोई आम रेस नहीं है, यह एक कठिन रेस है जो उबड़  खाबड़ पहाड़ों से होते हुए कई किलोमीटर तक इस रेस का संघर्ष करना पड़ता है। सबके मन में यह है आता होगा कि यह दौड़ कौन सी बड़ी बात है लेकिन आप लोग ये भ्रम सब निकाल दें एसआरटी अल्ट्रा मैराथन रेस कोई आम रेस नहीं है इस रेस में शरीर को चुस्त-दुरुस्त और तंदुरुस्त होने की सख्त जरूरत है. इस मैराथन के लिए कड़ी मेहनत और सच्ची लगन कड़े इरादे होने सबसे जरूरी है. आपको बता दे कि भारत के पश्चिमी तट में मौजूद सह्याद्रि पर्वत शृंखला में SRT Ultra Marathon 2022 का आयोजन हुआ था। दक्कनी पठार के पश्चिम किनारे के साथ साथ यह माउंटेन रेंज 1600 किलोमीटर लम्बी है। रनिंग फाउंडेशन के द्वारा यहां मैराथॉन का आयोजन किया गया था।

मैराथन शुरु होने की कहानी

मैराथन दौड़ पहली बार एथेंस ओलंपिक में वर्ष 1896 में हुई लेकिन इसकी मौजूदा दूरी 26 मील, 385 यार्ड्स वर्ष 1908 में लंदन में तय गई थी.

इसकी वजह ये थी कि ब्रिटेन का शाही परिवार चाहता था कि ये दौड़ विंडसर कैसल से शुरू हो और व्हाइट सिटी स्टेडियम आकर खत्म हो.

ये अपेक्षाकृत कठिन प्रतिस्पर्धा है जिसके लिए जबरदस्त शारीरिक क्षमता की जरूरत होती है.

मैराथन शुरू करने की प्रेरणा प्राचीन रोम के सैनिक फिडिपीडेस से मिली जिन्होंने फारस पर रोम की जीत की खबर पहुंचाने के लिए एथेंस तक 26 मील की दौड़ बिना रुके लगाई थी. हालांकि जीत की खबर सुनाने के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया था.

मौजूदा धावक मैराथन में बड़ी तेजी से दौड़ लगाते हैं और एक मील की दूरी पांच मिनट से भी कम समय में पूरी कर लेते हैं.

प्रदर्शन

ओलंपिक के मौजूदा मैराथन चैम्पियन केन्या के सेमी वांजिरु हैं जिन्होंने वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था.

इथोपिया के अबीबी बिकिला ने 1960 के रोम खेलों में नंगे पैर मैराथन की दौड़ लगाकर स्वर्ण पदक जीता था. लेकिन वर्ष 1969 में एक सड़क दुर्घटना में उन्हें लकवा मार गया था और चार वर्ष बाद उनकी मौत हो गई थी.

वर्ष 1952 के हेलसिंकी खेलों में चेकोस्लोवाकिया के धावक इमिल जेटोपेक ऐसे पहले धावक बने थे जिन्होंने एक ही ओलंपिक में 5000 मीटर, दस हजार मीटर और मैराथन में स्वर्ण पदक जीता था.

महिलाओं की पहली मैराथन वर्ष 1984 के लॉस एंजेलेस ओलंपिक में आयोजित की गई थी जहां अमरीकी धावक जोन बेनोइट ने पहला स्वर्ण पदक जीता था.

मैराथन में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले इथोपिया के हेली गेबरसिलासी लंदन ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने के लिए जूझते रहे.

उन्होंने वर्ष 2010 में संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी लेकिन चंद रोज बाद ही उन्होंने अपना ये विचार त्याग दिया था.

मैराथन दौड़ का प्रभाब भारत में 

देखा जाए तो भारत में मैराथन दौड़ का प्रभाब काफी अच्छा है। भारत का हर एक बड़ी सिटी में हर साल कई सरे मैराथन दौड़ होते रहते हैं, जैसे की टाटा मुंबई मैराथन ,दिल्ली हाफ मैराथन आदि ,इसमें बहुत ही अच्छे कैश इनाम के साथ साथ सर्टिफिकेट्स भी मिलती है। हमारे इस प्यारे भारत देश में दौड़ने के लिए बहार देश से भी कई सरे इलीट मैराथन रनर भाग लेने के लिए आते हैं,जैसे केन्या ,ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका आदि लेकिन ज्यादा तर रनर्स केन्या का ही Long Distance रनर के लिए ज्यादा पाए जाते है। और टाटा मुंबई मैराथन में आज तक किसी भारतीय ने प्रथम स्थान प्राप्त नहीं की है। 

ज्यादा तर हम भारतीय रनिंग मामले में दिलचस्प तो रखते है, लेकिन उसके हिसाब से मेहनत करने से हर मान जाते हैं।  अगर कोई चाहे तो एक प्रोफेशनल रनर बनने की तो वे prize money जीत जीत के करोड़ पति बन सकता है। हाँ ऐसा समय था की लोग कहते थे की अगर "खेलोगे कूदोगे तो बनोगे ख़राब...  और पढोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब ". लेकिन आज काल के समय में ये कहावत कुछ काम का नहीं। अगर किसी भी चीज़ में अगर हम मन लगाके करे तो उस फील्ड में "Legend" बन सक ते हैं.

SRT का मतलब सिंहगढ़ राजगढ़ तोरण है!

सिंहगढ़-राजगढ़-तोर्ना किलों को जोड़ने वाले प्राचीन मार्ग पर एक अल्ट्रा मैराथन का परिचय, जिसे आज "एसआरटी" के रूप में जाना जाता है। यह पौराणिक मार्ग पुणे के सह्याद्री पर्वतमाला के ट्रेल और माउंटेन रनिंग मैराथन मार्गों का महान कार्य है। एसआरटी मार्ग का उपयोग अतीत में इन पहाड़ों पर शासन करने वाले कई राजाओं के लिए युद्ध का मैदान होने के अलावा आने-जाने, व्यापार और खेती में उत्प्रेरक के रूप में किया गया है।


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