पीएम मोदी और RSS के सामने 'व्यंग्य' ने हार मानी! सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कार्टूनिस्ट को मांगनी पड़ी माफी

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। हाल ही में, इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है, जिसने एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं पर बहस छेड़ दी है। अपने व्यंग्यात्मक चित्रों के लिए जाने जाने वाले मालवीय को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से माफी मांगनी होगी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद आया, जहाँ कार्टूनिस्ट ने स्वयं सोशल मीडिया पर सार्वजनिक माफीनामा प्रकाशित करने का वचन दिया। यह मामला सिर्फ एक कार्टून तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि डिजिटल युग में रचनात्मक स्वतंत्रता और राजनीतिक व्यंग्य की क्या लक्ष्मण रेखाएँ होनी चाहिए। कोर्ट का यह हस्तक्षेप एक महत्वपूर्ण नजीर पेश करता है, जहाँ व्यंग्य की आड़ में अपमानजनक सामग्री को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

कौन हैं कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय और उनका विवादों से क्या नाता है?
हेमंत मालवीय, 50 वर्ष के हैं और पेशे से एक वेडिंग प्लानर होने के साथ-साथ एक जाने-माने कार्टूनिस्ट भी हैं। उनका सोशल मीडिया पर खासा प्रभाव है, जहाँ उनके लगभग 45,000 फॉलोअर्स हैं। मालवीय के लगभग सभी कार्टून प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस पर कटाक्ष करते हुए बनाए जाते हैं। उनके व्यंग्य अक्सर तीखे और राजनीतिक रूप से संवेदनशील होते हैं, जिसके कारण वे पहले भी विवादों में घिर चुके हैं।

क्या हेमंत मालवीय का विवादों से पुराना नाता है?
यह पहली बार नहीं है जब हेमंत मालवीय किसी कानूनी मुश्किल में फंसे हैं। दिसंबर 2022 में भी, उन्होंने बाबा रामदेव का एक विवादित कार्टून बनाया था, जिसके बाद पतंजलि ट्रस्ट ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि मालवीय अपने कार्टूनों के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय खुलकर व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन उनकी शैली अक्सर कानूनी विवादों का कारण बनती रही है। एक तरह से, उनका पेशा और जुनून ही उन्हें लगातार कानूनी पचड़ों में फंसा रहा है। उनके द्वारा संचालित एक ऑनलाइन पोर्टल WWW.TRUEJOURNALIST.COM भी था, जो अब बंद है, जिससे पता चलता है कि वे ऑनलाइन पत्रकारिता और व्यंग्य की दुनिया में सक्रिय रहे हैं।

विवादित कार्टून में ऐसा क्या था? और FIR का पूरा मामला
यह पूरा मामला एक विवादित कार्टून से शुरू हुआ, जिसे हेमंत मालवीय ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित किया था। इस कार्टून से आहत होकर इंदौर के एडवोकेट विनय जोशी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद लसूड़िया थाना पुलिस ने उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया था।

विवादित कार्टून में ऐसा क्या था?
एफआईआर के अनुसार, कार्टून में आरएसएस की वर्दी पहने एक व्यक्ति को आपत्तिजनक ढंग से दिखाया गया था। व्यंग्य चित्र में इस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने झुके हुए दिखाया गया था। इसके साथ ही, पोस्ट में कथित तौर पर भगवान शिव से संबंधित कुछ अपमानजनक टिप्पणियां भी थीं। उच्च न्यायालय ने भी इन टिप्पणियों को "अपमानजनक" माना था। मालवीय का दावा है कि यह कार्टून मूल रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान प्रकाशित एक व्यंग्य था, जिसका उद्देश्य टीकों के प्रभाव पर सार्वजनिक बहस छेड़ना था। उन्होंने यह भी कहा कि बाद में इसे किसी अन्य सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने जाति जनगणना पर टिप्पणी के साथ दोबारा पोस्ट किया था, जिसे उन्होंने केवल साझा किया था। हालांकि, कोर्ट ने इन तर्कों पर नाराजगी जताई।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: आखिर कोर्ट ने हेमंत मालवीय से क्या करने को कहा?
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की युगल पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने 15 जुलाई को पिछली सुनवाई में ही मालवीय के कुछ कार्टूनों पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। मंगलवार को हुई सुनवाई में, मालवीय की वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट के समक्ष उनका पक्ष रखा।

आखिर कोर्ट ने हेमंत मालवीय से क्या करने को कहा?
वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि मालवीय पहले ही माफीनामा प्रस्तुत कर चुके हैं और उन्होंने यह भी कहा कि विवादित कार्टून को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाएगा। मालवीय ने कोर्ट को यह वचन भी दिया कि वह फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सार्वजनिक रूप से माफीनामा प्रकाशित करेंगे। मध्यप्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि माफीनामा सोशल मीडिया पर इस वचन के साथ प्रकाशित किया जाए कि वह दोबारा ऐसा नहीं करेंगे। कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए मालवीय को 10 दिनों के भीतर माफीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया। साथ ही, कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से दी गई अंतरिम सुरक्षा भी अगली सुनवाई तक बढ़ा दी है, जो अगले हफ्ते होगी।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमा: क्या व्यंग्य की कोई लक्ष्मण रेखा होती है?
यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और उसकी सीमाओं पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ता है। जहाँ एक तरफ एक कलाकार को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, वहीं दूसरी तरफ कानून और समाज में किसी भी व्यक्ति, समुदाय या धर्म की भावनाओं को आहत न करने की जिम्मेदारी भी है।

क्या व्यंग्य की कोई लक्ष्मण रेखा होती है?
यह सवाल वर्षों से बहस का विषय रहा है। व्यंग्य को अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी करने का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। हालांकि, जब व्यंग्य अपमानजनक, अभद्र या धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला हो जाता है, तो वह कानूनी दायरे में आ जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह स्पष्ट संदेश देता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। यह अदालत के लिए एक नाजुक संतुलन का मामला है, जहाँ उन्हें यह तय करना होता है कि क्या कोई टिप्पणी सिर्फ कटाक्ष है या किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण हमला। इस मामले में, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री या किसी राजनीतिक संगठन पर व्यंग्य करना एक बात है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से अपमानजनक, अभद्र या धार्मिक रूप से आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करना एक अलग मुद्दा है।

कानूनी प्रक्रिया और आगे का रास्ता: जांच में क्या सहयोग करना है?
इस मामले में, मध्यप्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा है कि जांच जारी है, और इस कारण पोस्ट को हटाया नहीं जाना चाहिए। यह जांच इस बात पर केंद्रित होगी कि क्या मालवीय ने अपने कार्टूनों से जानबूझकर भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया था।

जांच में क्या सहयोग करना है?
हेमंत मालवीय को इस मामले में जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करना होगा। इसमें उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स की जांच और कार्टूनों के प्रकाशन से संबंधित जानकारी देना शामिल हो सकता है। फिलहाल उन्हें गिरफ्तारी से मिली सुरक्षा एक राहत है, लेकिन यह मामला अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। अगले हफ्ते होने वाली सुनवाई में यह देखना होगा कि कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम फैसला लेती है। यह फैसला भविष्य में ऑनलाइन व्यंग्य और उसके कानूनी परिणामों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा।