घुटना रिप्लेसमेंट 40 हजार, हार्ट सर्जरी 21 हजार; मरीज़ मरे तो भी कमीशन तैयार: देश के 15 नामी अस्पतालों का जानलेवा 'कट-सिस्टम' कैमरे में कैद
आजकल, मेडिकल सेवाएं सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक बड़ा व्यवसाय बन गई हैं, और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 'रेफरल सिस्टम'। यह एक ऐसा नेटवर्क है जिसमें डॉक्टर, छोटे क्लीनिक और बड़े अस्पताल मिलकर काम करते हैं। इस सिस्टम के तहत, एक डॉक्टर मरीज को किसी खास अस्पताल, लैब या स्पेशलिस्ट के पास भेजता है और बदले में कमीशन या अन्य लाभ लेता है। यह सिर्फ एक-दो मामले नहीं हैं, बल्कि यह एक संगठित नेटवर्क है जो पूरे देश में फैला हुआ है। रीवा न्यूज़ मीडिया की एक इन्वेस्टिगेशन टीम ने दिल्ली-एनसीआर, जयपुर और लखनऊ के 15 बड़े अस्पतालों में इसकी पड़ताल की और चौंकाने वाले खुलासे किए।
कैसे काम करता है ये रेफरल सिस्टम?
इस सिस्टम में, मरीज एक तरह से एक उत्पाद बन जाता है। एक छोटे क्लीनिक या डॉक्टर के पास जब कोई मरीज आता है, तो वह उसे जानबूझकर ऐसे बड़े अस्पताल या स्पेशलिस्ट के पास भेजता है, जहां से उसे कमीशन मिलता है। यह कमीशन कैश में, बैंक ट्रांसफर के जरिए, या फिर महंगे गिफ्ट्स और विदेश यात्राओं के रूप में भी हो सकता है।
जांच के दौरान, कई अस्पतालों ने यह भी स्वीकार किया कि वे मरीज के बिल को जानबूझकर बढ़ाते हैं ताकि कमीशन की रकम भी बढ़ सके। कुछ मामलों में तो मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रखने या बिना जरूरत के महंगे टेस्ट कराने के लिए भी दबाव डाला जाता है। यहां तक कि सरकारी योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत, CGHS, ECHS और चिरंजीवी योजना के मरीजों को भी नहीं बख्शा जाता। इन योजनाओं के मरीजों को एडमिट करवाने के लिए भी अलग-अलग ऑफर दिए जाते हैं।
देश के 15 अस्पतालों में चल रहा है 'कमीशन का खेल'
दैनिक भास्कर की राष्ट्रीय इन्वेस्टिगेशन टीम ने दिल्ली-NCR, जयपुर और लखनऊ के 15 बड़े अस्पतालों में एक बड़ी पड़ताल की है, जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। इस पड़ताल में पता चला है कि मरीज को रेफर करने के बदले डॉक्टर और छोटे क्लीनिकों को मोटा कमीशन दिया जा रहा है। यह कमीशन मरीजों के इलाज की लागत को बढ़ाकर वसूल किया जाता है, जिससे आम लोगों की जेब पर सीधा बोझ पड़ता है।
इस 'रेफरल सिस्टम' में हर मरीज एक सौदेबाजी का हिस्सा है, जहां उसके इलाज के खर्च को कमीशन के हिसाब से तय किया जाता है। कहीं सीधे डॉक्टर से बात हुई, तो कहीं अस्पताल की मार्केटिंग टीम से, और सभी ने मरीजों पर तय कमीशन की बात स्वीकार की।
दिल्ली और फरीदाबाद: हर इलाज पर तय कमीशन
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मेट्रो अस्पताल (दिल्ली): सीनियर मैनेजर सचिन रोहिल्ला ने बताया कि बाइलेट्रल नी रिप्लेसमेंट पर ₹20,000, एंजियोग्राफी पर ₹2,000, और PTCA/CABG पर ₹10,000 का कमीशन तय है।
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हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट (दिल्ली): डेप्युटी मैनेजर विशाल सिंह ने अलग-अलग मरीजों के लिए अलग-अलग रेट बताए। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कीम वाले मरीजों पर ₹15,000, TPA मरीजों पर ₹17,000 और कैश वाले मरीजों पर ₹21,000 का कमीशन है। उन्होंने यह भी बताया कि अगर मरीज की मौत हो जाए और बिल ₹1 लाख से ज्यादा हो, तो भी कमीशन मिलेगा।
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पार्क अस्पताल (फरीदाबाद): सीनियर मार्केटिंग मैनेजर मुकेश तिवारी ने कहा कि आयुष्मान भारत के मरीजों पर ₹5,000, CGHS/ECHS पर ₹6,000 और ESI मरीजों पर ₹6,000-₹8,000 कमीशन है। उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादा मरीज भेजने पर कमीशन 25-30% तक बढ़ सकता है और बिल को जानबूझकर बढ़ाया जा सकता है।
गुरुग्राम और नोएडा: कैश और NRI मरीजों पर मोटा कमीशन
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सिल्वर स्ट्रीक अस्पताल (गुरुग्राम): जनरल मैनेजर गौरव शर्मा ने कैश/TPA मरीजों पर 20% कमीशन की बात मानी। उन्होंने बताया कि नी रिप्लेसमेंट पर ₹50,000-₹60,000 और NRI मरीजों पर 30% कमीशन दिया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मरीज की मौत होने पर भी कमीशन मिलता है।
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कैलाश अस्पताल (नोएडा): मार्केटिंग मैनेजर पुष्पेंद्र यादव के अनुसार, हर रेफरल मरीज पर 15% कमीशन है। बाइलेट्रल नी रिप्लेसमेंट पर ₹40,000, IVF पर ₹22,000 और MRI/CT स्कैन पर 20% कमीशन तय है। ज्यादा मरीज भेजने पर उत्तराखंड ट्रिप जैसे ऑफर भी दिए जाते हैं।
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फेलिक्स अस्पताल (नोएडा): मार्केटिंग मैनेजर कुश ने बताया कि CGHS मरीजों पर ₹7,000 और कैश/TPA मरीजों पर 20% तक कमीशन मिलता है। उन्होंने विदेशी मरीजों पर 30% तक कमीशन देने की बात भी कही।
- यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी (नोएडा): मार्केटिंग हेड गोविल त्यागी ने किडनी ट्रांसप्लांट पर ₹50,000 और बाइलेटरल नी रिप्लेसमेंट पर ₹40,000 का फिक्स कमीशन बताया।
जयपुर और लखनऊ: सरकारी योजनाओं पर भी कमीशन
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मंगलम प्लस मेडिसिटी अस्पताल (जयपुर): मार्केटिंग मैनेजर मितेश चौधरी ने कैश/TPA मरीजों पर 10% और चिरंजीवी योजना के कार्डियक मरीजों पर ₹5,000 कमीशन की पुष्टि की। उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकारी डॉक्टर भी इसमें शामिल हैं और वे कमीशन अपने ड्राइवर या रिश्तेदारों के अकाउंट में ट्रांसफर करवाते हैं।
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रूंगटा अस्पताल (जयपुर): पब्लिक रिलेशन एग्जीक्यूटिव देबाशीष बनर्जी ने कैश मरीजों पर 10% और चिरंजीवी कार्डियक मरीजों पर ₹10,000 कमीशन बताया।
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इंडस जयपुर अस्पताल (जयपुर): सीनियर मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव वीरेंद्र चौहान ने कैश/TPA मरीजों पर 10% और नी रिप्लेसमेंट पर ₹8,000-₹10,000 कमीशन की बात स्वीकारी। उन्होंने कहा कि सरकारी डॉक्टरों को कमीशन कैश में दिया जाता है।
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संजीवनी अस्पताल (लखनऊ): मार्केटिंग मैनेजर डॉ. अंकित द्विवेदी ने हर इलाज पर 25% कमीशन देने की बात कही।
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ग्लोब हेल्थकेयर (लखनऊ): डेप्युटी मार्केटिंग मैनेजर श्यामेन्द्र सिंह ने बताया कि CM फंड से आए मरीजों पर 5% कमीशन दिया जाता है।
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चंदन अस्पताल (लखनऊ): वाइस प्रेसिडेंट शेखर पुनिया ने कैश मरीजों पर 10% और TPA पर 5% कमीशन देने की पुष्टि की।
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नोवा अस्पताल (लखनऊ): मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. गोपाल गर्ग ने हर इलाज पर 20% कमीशन और नी रिप्लेसमेंट पर ₹20,000 देने की बात कही।
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मिडलैंड अस्पताल (लखनऊ): मार्केटिंग मैनेजर मुरतुल्या सिंह ने एंजियोप्लास्टी पर ₹17,000 और सरकारी योजनाओं के तहत इलाज पर 15% तक कमीशन देने की बात कही।
कमीशन के इस खेल पर क्या हैं कानून?
यह रेफरल सिस्टम सिर्फ अनैतिक ही नहीं, बल्कि कई कानूनों का उल्लंघन भी करता है।
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988: इस कानून के तहत, सरकारी अस्पतालों में कमीशन लेना एक तरह की रिश्वत मानी जाती है, जिसके लिए 7 साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।
- IMC की आचार संहिता 2002: इंडियन मेडिकल काउंसिल (IMC) की गाइडलाइन के अनुसार, कोई भी डॉक्टर किसी भी रूप में कमीशन नहीं ले सकता। अगर कोई डॉक्टर इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
- क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010: यह कानून इस समस्या को रोकने के लिए बनाया गया था। इसके तहत, अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है और जुर्माना लगाया जा सकता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019: इस कानून के अनुसार, अगर मरीज को बेवजह इलाज या ज्यादा फीस ली जाती है, तो वह मुआवजा मांग सकता है।
हालांकि, ये कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका सही तरीके से पालन नहीं हो पाता है। विशेषज्ञ प्रोफेसर बेजोन कुमार मिश्र और प्रोफेसर राम खन्ना का कहना है कि यह एक धोखाधड़ी है, क्योंकि डॉक्टर का निर्णय मरीज की भलाई से ज्यादा पैसे से प्रभावित होता है।
दहलाने वाला खुलासा: भारत का मेडिकल 'कमीशन नेक्सस'
यह खबर दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय इन्वेस्टिगेशन टीम द्वारा किए गए खुलासे पर आधारित है, जिसे रीवा न्यूज़ मीडिया अपने पोर्टल में प्रकाशित कर रहा है। इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट से देश के 15 नामी अस्पतालों का पर्दाफाश, जहाँ मरीज़ों को रेफर करने पर डॉक्टर और क्लीनिक ले रहे हैं लाखों का कमीशन।
यह सिर्फ कुछ अस्पतालों की बात नहीं है, बल्कि एक ऐसा संगठित रैकेट है जो मरीजों को सिर्फ एक चलता-फिरता 'ATM' मानता है। एक ऐसा सिस्टम जहाँ इलाज की गुणवत्ता नहीं, बल्कि कमीशन की दरें तय करती हैं कि मरीज को कहाँ भेजा जाएगा। यह रिपोर्ट दिल्ली-एनसीआर, जयपुर और लखनऊ के अस्पतालों में फैले इस घातक जाल को उजागर करती है, जिसने भारतीय स्वास्थ्य सेवा की नींव को हिलाकर रख दिया है।
कैसे काम करता है मौत का यह 'कारोबार'?
इस नेक्सस में छोटे क्लिनिक से लेकर बड़े अस्पताल तक, सब शामिल हैं। एक मरीज जब किसी छोटे डॉक्टर के पास जाता है, तो उसे तुरंत एक बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है, जहाँ से डॉक्टर को मोटा कमीशन मिलता है। यह कमीशन सीधा उसके बैंक अकाउंट में, कैश में, या यहाँ तक कि ड्राइवर और रिश्तेदारों के खातों में भी ट्रांसफर किया जाता है ताकि कोई सबूत न रहे।
यही नहीं, अस्पताल जानबूझकर मरीजों के बिल को बढ़ाते हैं, अनावश्यक टेस्ट कराते हैं, और उन्हें लंबे समय तक भर्ती रखते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि कमीशन की रकम बढ़ सके।
देश के 15 अस्पतालों की कमीशन लिस्ट: जानकर आपके होश उड़ जाएंगे!
यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है, बल्कि सबूतों पर आधारित खुलासा है। देखिए, किस अस्पताल ने क्या रेट बताए:
दिल्ली-NCR: सबसे ज्यादा कमीशन की दरें यहाँ हैं
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कैलाश अस्पताल (नोएडा): रीवा न्यूज़ मीडिया के रिपोर्टर के सामने मार्केटिंग मैनेजर पुष्पेंद्र यादव ने चौंकाने वाली दरें बताईं:
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बाइलेट्रल नी रिप्लेसमेंट: ₹40,000 फिक्स कमीशन।
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IVF: ₹22,000।
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MRI/CT स्कैन: बिल का 20% कमीशन।
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ऑफर्स: ज्यादा मरीज भेजने वाले डॉक्टरों को उत्तराखंड ट्रिप जैसे आकर्षक 'रिवॉर्ड' दिए जाते हैं।
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सिल्वर स्ट्रीक अस्पताल (गुरुग्राम): जनरल मैनेजर गौरव शर्मा ने कहा कि कैश और TPA मरीजों पर 20% कमीशन तय है। NRI मरीजों पर 30% तक कमीशन मिलता है। सबसे दहलाने वाली बात यह है कि उन्होंने स्वीकार किया कि मरीज की मौत होने पर भी कमीशन दिया जाता है।
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हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट (दिल्ली): यहाँ एंजियोप्लास्टी पर ₹21,000 तक का कमीशन है। उन्होंने साफ कहा कि अगर मरीज का बिल ₹1 लाख से ज्यादा है, तो मौत के बाद भी रेफरल कमीशन मिलेगा।
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पार्क अस्पताल (फरीदाबाद): यहाँ के सीनियर मार्केटिंग मैनेजर मुकेश तिवारी ने तो हद ही कर दी। उन्होंने साफ कहा, "एक को दो बना देंगे" – यानी जानबूझकर बिल बढ़ा देंगे।
जयपुर और लखनऊ: सरकारी योजनाओं को भी नहीं बख्शा
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मंगलम प्लस मेडिसिटी अस्पताल (जयपुर): यहाँ के मार्केटिंग मैनेजर मितेश चौधरी ने बताया कि सरकारी डॉक्टर भी इस खेल में शामिल हैं। वे अपना कमीशन अपने ड्राइवर या रिश्तेदारों के अकाउंट में लेते हैं।
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इंडस जयपुर अस्पताल (जयपुर): इस अस्पताल ने यह खुलासा किया कि सरकारी डॉक्टरों को कमीशन कैश में दिया जाता है।
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ग्लोब हेल्थकेयर (लखनऊ): डेप्युटी मार्केटिंग मैनेजर श्यामेन्द्र सिंह ने बताया कि यहाँ तक कि मुख्यमंत्री राहत कोष (CM फंड) से इलाज कराने वाले गरीब मरीजों पर भी 5% कमीशन दिया जाता है।
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संजीवनी अस्पताल (लखनऊ): यहाँ हर इलाज पर 25% का सीधा कमीशन तय है।
यह सिर्फ कमीशन नहीं, बल्कि एक आपराधिक साजिश है!
यह रिपोर्ट केवल कुछ अस्पतालों का खुलासा नहीं करती, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे हमारा चिकित्सा तंत्र अंदर से खोखला हो चुका है। डॉक्टर जिसे भगवान का दर्जा दिया जाता है, वही इस खेल में शामिल होकर मरीजों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं।
यह सिर्फ नैतिक पतन नहीं है, बल्कि कानूनी रूप से एक गंभीर अपराध है। नेशनल मेडिकल काउंसिल की गाइडलाइंस कहती हैं कि कोई भी डॉक्टर कमीशन नहीं ले सकता, लेकिन इस रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि ये कानून सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।
इस रिपोर्ट ने पूरे देश के सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम वाकई सुरक्षित हैं, या सिर्फ एक ऐसे बाजार का हिस्सा हैं जहाँ हमारी बीमारी पर भी मुनाफे का सौदा होता है। यह वक्त है कि सरकार और मेडिकल काउंसिल इस पर सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस 'कमीशन नेक्सस' को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके।
रिपोर्ट के प्रमुख खुलासे एक नज़र में:
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नी रिप्लेसमेंट पर ₹40,000, IVF पर ₹22,000 तक कमीशन।
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मरीज की मौत पर भी कमीशन लेने की बात स्वीकार की गई।
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सरकारी योजनाओं, जैसे आयुष्मान भारत और CM फंड के मरीजों को भी नहीं बख्शा गया।
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कमीशन सीधे कैश या रिश्तेदारों के बैंक खातों में दिया जाता है।
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ज्यादा मरीज भेजने पर विदेश यात्राओं और अन्य महंगे गिफ्ट्स का लालच।
निष्कर्ष
यह पूरी पड़ताल साफ तौर पर दिखाती है कि भारत के कई बड़े निजी अस्पतालों में रेफरल कमीशन का खेल खुलेआम चल रहा है। यह न सिर्फ चिकित्सा नैतिकता के खिलाफ है, बल्कि यह सीधे तौर पर मरीज के साथ धोखा है। इस नेक्सस में डॉक्टर, क्लीनिक और अस्पताल शामिल हैं, और इसका सीधा नुकसान मरीज को उठाना पड़ता है, जिसे अक्सर महंगे और अनावश्यक इलाज से गुजरना पड़ता है। इस समस्या को रोकने के लिए सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उनका सख्ती से पालन होना भी जरूरी है।