Valentines Day Special : पढ़िए मोहब्बत की निशानियां : रानी रूपमती और बाजबहादुर की अमर प्रेम कहानी, मकबरे पर लिखवाया 'शहीदे वफा'

 

 


राजगढ़. सोमवार को प्यार के इजहार का दिन वैलेंटाइन-डे है। मध्यप्रदेश में प्यार की कई निशानियां आज भी मौजूद हैं। इसमें से एक मकबरा राजगढ़ जिले के सारंगपुर में है, जो रानी रूपमती और मांडू के राजा बाजबहादुर के अमर प्रेम का गवाह है। अकबर की फौज से पति बाजबहादुर की हार की खबर मिलते ही रानी रूपमती ने जान दे दी थी। फौज रानी को लेने के लिए आई थी। बाद में बाजबहादुर ने भी रानी के मकबरे पर सिर पटककर अपनी जान दे दी थी। मोहब्बत और त्याग के प्रतीक इस मकबरे को देखने देशभर से लोग आते हैं। इनकी प्रेम कहानी से प्रेरित होकर 1957 में फिल्म 'रानी रूपमती' भी बन चुकी है। जिसमें निरुपा राय और भारत भूषण ने अभिनय किया था। 

यह कहानी आज से करीब 460 साल पहले की है। सन् 1556 से 1561 तक बाजबहादुर मालवा का सुल्तान रहा। रूपमती सारंगपुर के पास शाजापुर जिले के तिंगजपुर गांव की रहने वाली थीं। गरीब परिवार में जन्मीं रूपमती काफी सहज और सुंदर थीं।

बाजबहादुर का काफिला तिंगजपुर से गुजर रहा था। उनके कानों में मधुर गीत गूंजा। इतनी मीठी आवाज और रूपमती को देखते ही बाजबहादुर को उनसे प्रेम हो गया। बाजबहादुर, रूपमती को अपनी रानी बनाकर मांडू ले गए। रूपमती की खूबसूरती की चर्चा बादशाह अकबर के कानों तक पहुंची। अकबर ने अपने सेनापति आदम खां को बाजबहादुर के पास भेजा और रूपमती को उसके पास भेजने को कहा।

बाजबहादुर के इनकार करने पर गुस्साए अकबर ने युद्ध का ऐलान कर दिया। बाजबहादुर की हार हुई। बाजबहादुर को गिरफ्तार कर अकबर के सामने पेश किया गया। इधर, आदम खां रूपमती को लेने मांडू के लिए रवाना हुआ, लेकिन बाजबहादुर की हार की सूचना मिलते ही रूपमती अपनी जान दे चुकी थीं। अकबर को इनके अमर प्रेम की जानकारी मिली तो रानी के शव को हाथी पर रखवाकर सारंगपुर बुलवाया। उनके गांव तिंगजपुर में रूपमती का मकबरा बनवाया। मकबरे पर लिखवाया- शहीदे वफा (वफादारी में बलिदान देने वाली)।

कुछ साल बाद बाजबहादुर ने बीमार हालत में अकबर से रूपमती के मकबरे पर जाने की इच्छा जताई। अकबर ने उन्हें सारंगपुर भिजवाया, जहां उन्होंने रूपमती की कब्र पर सिर पटककर जान दे दी। अकबर ने बाजबहादुर की कब्र भी यहीं पर बनवाई और उस पर लिखवाया- आशिके साजिद (सजदे करने वाला आशिक)। बाद में यहां दोनों की कब्र पर मकबरा बनवाया गया।


                        सन् 1556 से 1561 तक बाजबहादुर मालवा के सुल्तान रहे।

मकबरे पर दो बार गिर चुकी बिजली
इस प्रेमी जोड़े को कब्र में भी सुकून नहीं मिला। 15वीं शताब्दी में दोनों के मकबरे बनवाए गए। मकबरे बनने के बाद से इन पर दो बार बिजली गिर चुकी है। मकबरे के दो टुकड़े हो चुके हैं। इसे पुरातत्व विभाग ने दुरुस्त तो करवाया, लेकिन अब मकबरे पर पेड़ उग आए हैं। इस कारण फिर से दरार आकर दो टुकड़ों में बंटता जा रहा है।