40 हजार विधायक के नाश्ते पर, और गर्भवती को नाले में! रीवा में सड़क पर बवाल : नाले पर दर्द से चीखती रही गर्भवती, सरकार कहां है?
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में, जहां विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, वहीं हकीकत कुछ और ही बयां करती है। हाल ही में गुढ़ क्षेत्र के दूबी गांव से एक हृदय विदारक वीडियो सामने आया है, जिसने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। इस वीडियो में 9 महीने की एक गर्भवती महिला को खटिया पर लिटाकर, पानी से भरे नाले और कीचड़ भरे रास्ते से अस्पताल ले जाया जा रहा है। एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी, क्योंकि वहां कोई पक्की सड़क है ही नहीं। महिला, प्रसव पीड़ा से कराहते हुए रास्ते भर चीखती रही, और उसके परिजनों व ग्रामीणों को उसकी जान बचाने के लिए यह मुश्किल भरा सफर तय करना पड़ा। यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि आज भी ग्रामीण भारत में बुनियादी सुविधाओं की कमी कितनी विकट है।
जान जोखिम में डालकर तीन किलोमीटर का सफर कैसे तय किया गया
घटना बुधवार दोपहर की है, जब दूबी गांव की रश्मि दहिया नाम की एक गर्भवती महिला की तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिजनों ने तुरंत एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन सड़क न होने के कारण एंबुलेंस गांव के बाहर ही रुक गई। डॉक्टरों की सलाह थी कि महिला को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए, लेकिन रास्ता इतना दुर्गम था कि पैदल चलना भी मुश्किल था। ऐसे में, परिजनों ने एक खटिया को सहारा बनाया। उन्होंने महिला को उस पर लिटाया और कंधे पर उठाकर तीन किलोमीटर तक का सफर तय किया। इस सफर में उन्हें सिर्फ कीचड़ और गड्ढों से ही नहीं, बल्कि एक उफनते नाले से भी होकर गुजरना पड़ा। यह मंजर देखकर हर कोई हैरान था कि किस तरह से एक गर्भवती महिला को जान जोखिम में डालकर अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, बल्कि हर साल बारिश में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव: गांव का हाल क्या है
रीवा का दूबी गांव सिर्फ एक उदाहरण है। देश के कई हिस्सों में आज भी गांवों की यही स्थिति है। सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं वहां तक नहीं पहुंच पाई हैं। दूबी गांव में सड़क न होने के कारण बारिश के मौसम में गांव का संपर्क बाकी दुनिया से कट जाता है। लोगों को हर छोटे-बड़े काम के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बीमार लोगों को होती है। आपातकाल में अस्पताल तक पहुंचने का कोई साधन नहीं होता। ग्रामीणों का आरोप है कि इस समस्या की ओर सालों से किसी ने ध्यान नहीं दिया, और अब इसका खामियाजा एक गर्भवती महिला को भुगतना पड़ा है।
प्रशासनिक लापरवाही और नेताओं की अनदेखी क्यों हो रही है
इस घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब सड़क निर्माण के लिए फंड स्वीकृत हो चुका था, तो फिर काम शुरू क्यों नहीं हुआ? गांव के सरपंच संजय सोधिया ने बताया कि सड़क के लिए 23.50 लाख रुपये स्वीकृत हो चुके हैं, लेकिन फाइल कलेक्टर कार्यालय में अटकी हुई है। यह दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक लापरवाही के कारण विकास के काम महीनों या सालों तक रुक जाते हैं। वहीं, ग्रामीणों का आरोप है कि नेताओं और अधिकारियों की अनदेखी के कारण भी यह समस्या बनी हुई है। वे सिर्फ वोट मांगने के लिए आते हैं, लेकिन गांव की असली समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देते।
सड़क के लिए स्वीकृत हुए ₹23.50 लाख, फिर भी क्यों रुकी फाइल?
सड़क निर्माण के लिए 23.50 लाख रुपए की राशि स्वीकृत होना एक बड़ी बात है, लेकिन इसके बावजूद काम का रुक जाना कई सवाल खड़े करता है। सरपंच के अनुसार, फाइल कलेक्टर कार्यालय में अटकी है, लेकिन इसका कारण स्पष्ट नहीं है। क्या यह किसी अधिकारी की लापरवाही है? या फिर किसी तरह की राजनीतिक अड़चन? ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय पर फाइल क्लियर हो गई होती और काम शुरू हो गया होता, तो आज यह घटना नहीं होती। यह घटना इस बात की ओर भी इशारा करती है कि कैसे सरकारी प्रक्रियाओं की धीमी गति और लालफीताशाही के कारण आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
विधायक का कार्यक्रम और 40 हजार रुपये का सवाल क्या है
इस पूरे मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सरपंच ने खुद यह स्वीकार किया है कि सड़क का काम जल्दी कराने के लिए विधायक को बुलाकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें करीब 40 हजार रुपये खर्च हुए। ग्रामीणों का कहना है कि यह पैसों की बर्बादी है। उनके अनुसार, अगर ये 40 हजार रुपये सड़क के गड्ढे भरने या मिट्टी डालने में खर्च किए जाते, तो शायद गांव का रास्ता इतना खराब नहीं होता। यह बात इस ओर भी इशारा करती है कि कैसे विकास के नाम पर होने वाले दिखावटी कार्यक्रमों में पैसे बर्बाद किए जाते हैं, जबकि वास्तविक जरूरतें अधूरी रह जाती हैं।
ग्रामीणों का आक्रोश और प्रशासन पर आरोप कैसे हैं
इस घटना के बाद ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक गर्भवती महिला की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे गांव की है। महिला मानवती वर्मा ने कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का डर लगा रहता है कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही नाले में डूबकर उनकी जान न चली जाए। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि जानबूझकर सड़क के काम में देरी की जा रही है, ताकि कुछ लोगों को फायदा हो सके। उन्होंने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
कलेक्टर का एक्शन: क्या जल्द बनेगी सड़क?
मामले की गंभीरता को देखते हुए रीवा की कलेक्टर प्रतिभा पाल ने तुरंत एक्शन लिया है। उन्होंने जांच के निर्देश दिए हैं और 24 घंटे के भीतर सड़क से संबंधित जांच रिपोर्ट भी मांगी है। कलेक्टर का यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन ग्रामीणों को डर है कि कहीं यह भी एक दिखावा न हो। उन्हें उम्मीद है कि जांच के बाद न सिर्फ दोषियों पर कार्रवाई होगी, बल्कि सड़क का काम भी जल्द से जल्द शुरू किया जाएगा, ताकि भविष्य में किसी और को ऐसी भयावह स्थिति का सामना न करना पड़े।