एक मूर्ति और हिल गई सियासत! 100वीं जयंती से पहले 'दादा' ने दिखाया रीवा में आज भी किसका चलता है सिक्का

 

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा की धरती एक बार फिर अपनी राजनीतिक तपिश के लिए सुर्खियों में है। एक तरफ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 19 सितंबर को जिले के त्योंथर क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की तैयारी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ विंध्य के 'सफेद शेर' कहे जाने वाले स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी 'दादा' की 100वीं जयंती से ठीक पहले उनकी एक मूर्ति ने प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है। यह सिर्फ एक मूर्ति का विवाद नहीं, बल्कि यह इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि दादा के न रहने के बावजूद रीवा और पूरे प्रदेश की राजनीति में आज भी उनका सिक्का कैसे चलता है। प्रशासनिक अमला और सरकारें बदल गईं, लेकिन 'दादा' का नाम आज भी वो धुरी है, जिसके इर्द-गिर्द विंध्य की सियासत घूमती है।

श्रीनिवास तिवारी कौन थे और उनका राजनीतिक कद कैसा था?
श्रीनिवास तिवारी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि विंध्य क्षेत्र के लिए एक विचारधारा और एक संस्था थे। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हुए 'दादा' ने 1952 में सबसे कम उम्र का विधायक बनकर इतिहास रचा था। वे सही मायनों में गरीबों, किसानों और शोषितों की सबसे बुलंद आवाज थे। उनका रौब ऐसा था कि जब वे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठते थे, तो पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ सन्नाटा पसर जाता था। कहा जाता है कि उनका एक फोन ही बड़े से बड़े अधिकारियों के पसीने छुड़ाने के लिए काफी था। वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक ऐसे जननायक थे, जिनकी एक आवाज पर पूरा विंध्य एक साथ खड़ा हो जाता था।

दादा का सिक्का: जब एक फोन कॉल पर बदल जाते थे फैसले
श्रीनिवास तिवारी के राजनीतिक प्रभाव के किस्से आज भी रीवा के गली-चौराहों पर सुनाए जाते हैं। लोग बताते हैं कि कैसे आम आदमी की समस्या के लिए उनका फोन सीधे भोपाल में बैठे मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव को जाता था और काम तुरंत होता था। उनका खौफ और सम्मान ऐसा था कि कोई अधिकारी उनकी बात टालने की हिम्मत नहीं कर सकता था। उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और हमेशा विंध्य के हक के लिए लड़ाई लड़ी। यही कारण है कि आज भी लोग उन्हें 'दादा' के नाम से ही जानते और पूजते हैं।

मूर्ति विवाद ने कैसे गरमाई रीवा की राजनीति?
मौजूदा विवाद तब शुरू हुआ जब 17 सितंबर को श्रीनिवास तिवारी की 100वीं जयंती (शताब्दी वर्ष) के अवसर पर रीवा शहर में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी की जा रही थी। नगर निगम से प्रस्ताव पास हुआ, जगह तय हुई, लेकिन अचानक प्रशासनिक अड़चनों के चलते काम रोक दिया गया। कांग्रेस और 'दादा' के समर्थकों ने इसे बीजेपी सरकार का डर और विंध्य के अपमान से जोड़ा। उनका आरोप है कि सरकार जानबूझकर 'दादा' की विरासत को मिटाना चाहती है, क्योंकि उन्हें डर है कि यह मूर्ति आने वाली पीढ़ियों को उनके संघर्ष और प्रभाव की याद दिलाती रहेगी।

सीएम मोहन यादव का त्योंथर दौरा: विकास का अध्याय या राजनीतिक संतुलन?
श्रीनिवास तिवारी की विरासत पर मचे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का त्योंथर दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। यह दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि त्योंथर से विधायक 'दादा' के पोते सिद्धार्थ तिवारी हैं, जो अब बीजेपी में हैं।

प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर अभूतपूर्व तैयारियां
मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर प्रशासन और भाजपा संगठन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। शनिवार को त्योंथर रेस्ट हाउस में एक उच्च-स्तरीय बैठक हुई, जिसमें खुद विधायक सिद्धार्थ तिवारी के साथ प्रभारी कलेक्टर सौरभ सोनवणे, पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र सिंह चौहान, एडीएम सपना त्रिपाठी और एडिशनल एसपी आरती सिंह समेत जिले का पूरा प्रशासनिक अमला मौजूद रहा। सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए जा रहे हैं। कार्यक्रम स्थल पर विशाल वाटरप्रूफ पंडाल लगाया जा रहा है ताकि बारिश की स्थिति में भी कार्यक्रम प्रभावित न हो। खुद अधिकारियों ने स्थल का निरीक्षण कर हर व्यवस्था की बारीकी से समीक्षा की है।

करोड़ों की सौगात के पीछे का सियासी समीकरण क्या है?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव करीब एक साल बाद त्योंथर क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। पिछली बार उनका कार्यक्रम मौसम के कारण बाधित हो गया था। इस बार वे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी करोड़ों की योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करने आ रहे हैं। विधायक सिद्धार्थ तिवारी ने इसे "त्योंथर के विकास में एक नया अध्याय" बताया है और कार्यकर्ताओं से घर-घर जाकर लोगों को आमंत्रित करने का आह्वान किया है।

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे सिर्फ विकास के चश्मे से नहीं देख रहे। उनका मानना है कि यह दौरा 'दादा' की मूर्ति पर हुए विवाद से उपजे राजनीतिक नुकसान की भरपाई और उनकी विरासत पर बीजेपी की दावेदारी मजबूत करने की एक सोची-समझी रणनीति है। सरकार यह संदेश देना चाहती है कि जिस विरासत पर कांग्रेस सिर्फ राजनीति कर रही है, उस विरासत के असली वारिस (सिद्धार्थ तिवारी) के क्षेत्र में विकास की गंगा बीजेपी बहा रही है।

क्या सीएम का दौरा महज संयोग है या राजनीतिक रणनीति का हिस्सा?
ठीक इसी सियासी गहमागहमी के बीच मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का त्योंथर दौरा हो रहा है। दिलचस्प बात यह है कि त्योंथर से विधायक, श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी ही हैं, जो अब बीजेपी में हैं। मुख्यमंत्री यहां करोड़ों की योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करेंगे। राजनीतिक विश्लेषक इसे बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति के तौर पर देख रहे हैं। एक तरफ जहां 'दादा' की मूर्ति को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी उनके ही पोते के क्षेत्र में विकास कार्यों का ढिंढोरा पीटकर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि असली विकास वही कर रही है। यह दौरा 'दादा' की विरासत पर दावेदारी और उनके प्रभाव को अपने पाले में करने की एक बड़ी राजनीतिक कवायद है।

आज भी प्रासंगिक है दादा की विरासत
भले ही श्रीनिवास तिवारी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रीवा की सियासत में उनका नाम एक अमर अध्याय है। मूर्ति विवाद ने यह एक बार फिर साबित कर दिया है कि 'दादा' का सिक्का आज भी चलता है। यह विवाद सिर्फ एक प्रतिमा का नहीं, बल्कि सम्मान, स्वाभिमान और एक ऐसी विरासत का है, जिसे मिटाने की कोई भी कोशिश विंध्य की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। मुख्यमंत्री का दौरा और विकास की सौगातें अपनी जगह हैं, लेकिन रीवा की हवा में आज भी यह सवाल तैर रहा है कि जब एक मूर्ति स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़े, तो यह किसकी ताकत का प्रदर्शन है - सरकार की या 'दादा' की अमिट विरासत का?