टाइगरों के शहर रीवा से चीतों को मिला तोहफा! मुकुंदपुर चिड़ियाघर से कूनो भेजी गई चीतलों की पहली खेप

 

मुकुंदपुर चिड़ियाघर ने कूनो नेशनल पार्क में चीतों का शिकार बढ़ाने के लिए 16 चीतलों की पहली खेप भेजी, जो उन्हें पार्क से बाहर जाने से रोकने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) भारत में चीतों को फिर से बसाने की महत्वाकांक्षी परियोजना को सफल बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार लगातार नए प्रयास कर रही है। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बसाया गया है, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है पर्याप्त शिकार की अनुपलब्धता। इसी समस्या को हल करने के लिए, रीवा स्थित महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिड़ियाघर ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चिड़ियाघर से शाकाहारी वन्यजीवों की पहली खेप कूनो के लिए रवाना हो गई है। यह एक ऐसा कदम है, जो न केवल कूनो के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करेगा, बल्कि देश में चीता संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा देगा। पहली खेप में 16 चीतलों को भेजा गया है, जबकि कुल 39 वन्यजीवों को स्थानांतरित किया जाना है।

द कूनो चैलेंज: चीतों को कूनो से बाहर क्यों जाना पड़ रहा है?
कूनो में चीतों को बसाने के बाद से ही एक बड़ी समस्या सामने आई है: उनका राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से बाहर जाना। चीते बड़े क्षेत्र में घूमने वाले शिकारी होते हैं। जब उन्हें अपने क्षेत्र में पर्याप्त शिकार नहीं मिलता, तो वे भोजन की तलाश में बाहर निकल जाते हैं। यह स्थिति चीतों के लिए बेहद खतरनाक है। वे गांवों के पास आ जाते हैं, जिससे न केवल उन्हें लोगों द्वारा मारे जाने का खतरा होता है, बल्कि वे सड़कों पर भी आ सकते हैं, जिससे दुर्घटना का जोखिम बढ़ जाता है। पिछले कुछ समय में यह देखा गया है कि चीते मध्य प्रदेश की सीमा को लांघकर राजस्थान तक पहुंच रहे हैं और स्थानीय ग्रामीणों के मवेशियों का शिकार कर रहे हैं। इससे लोगों में गुस्सा और डर बढ़ रहा है, जो मानव और वन्यजीवों के बीच एक गंभीर संघर्ष को जन्म दे रहा है।

चीतों को कूनो से बाहर क्यों जाना पड़ रहा है? इसके पीछे मुख्य कारण यही है कि कूनो के अंदर शाकाहारी वन्यजीवों, विशेषकर चीतलों और सांभरों की संख्या उतनी नहीं है, जितनी चीतों की बढ़ती आबादी के लिए आवश्यक है। एक स्वस्थ शिकारी आबादी के लिए एक मजबूत शिकार आधार (prey base) होना बेहद जरूरी है। बिना पर्याप्त शिकार के, चीता स्वाभाविक रूप से उस जगह से दूर चला जाएगा जहां उसे भोजन मिलने की उम्मीद है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष कैसे कम करें? सरकार की दूरदर्शी योजना
सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है और इसका सबसे स्थायी समाधान निकाला है: कूनो के अंदर ही शिकार को बढ़ाना। यह एक दूरदर्शी योजना है जिसका लक्ष्य है मानव-वन्यजीव संघर्ष कैसे कम करें, इसका एक स्थायी हल निकालना। बाहरी चिड़ियाघरों और अभयारण्यों से शाकाहारी वन्यजीवों को कूनो में लाकर छोड़ा जा रहा है, ताकि वे वहां अपनी संख्या बढ़ा सकें और चीतों के लिए एक प्राकृतिक शिकार मैदान तैयार हो सके। जब चीतों को कूनो के अंदर ही पर्याप्त भोजन मिलेगा, तो वे बाहर नहीं जाएंगे और इससे ग्रामीण इलाकों में उनके कारण होने वाले नुकसान और खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। यह पहल न केवल चीतों की जान बचाएगी, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका और सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगी।

महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिड़ियाघर की भूमिका क्या है?
इस महत्वपूर्ण मिशन में रीवा का महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिड़ियाघर भी अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। यहाँ से कुल 39 वन्यजीवों को कूनो भेजा जाना है, जिनमें 31 चीतल और 8 सांभर शामिल हैं। यह चिड़ियाघर वन्यजीवों के संरक्षण में एक लंबा इतिहास रखता है और अब यह देश के एक राष्ट्रीय गौरव, चीता प्रोजेक्ट में सीधे तौर पर योगदान दे रहा है। चिड़ियाघर के अधिकारियों के अनुसार, यह उनके लिए एक गर्व का क्षण है। इन जानवरों का स्थानांतरण बहुत सावधानी से किया जा रहा है, ताकि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

जानवरों को पकड़ना इतना मुश्किल क्यों था?
वन्यजीवों का स्थानांतरण एक जटिल प्रक्रिया है और इसमें कई चुनौतियां आती हैं। रीवा में जानवरों को पकड़ना इतना मुश्किल क्यों था, इसका कारण चीतलों का स्वभाव है। चीतल बहुत ही फुर्तीले और सतर्क जानवर होते हैं। उन्हें पकड़ने के लिए कूनो से एक विशेष वाहन चिड़ियाघर पहुंचा था, जिसे दो दिनों तक चीतलों के बाड़े में खड़ा किया गया। अधिकारियों ने उन्हें वाहन में प्रवेश करने के लिए विभिन्न प्रलोभन दिए, लेकिन चीतल जाल में नहीं फंसे। वे बेहद चौकस थे और उन्होंने वाहन से दूरी बनाए रखी। दो दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद, केवल 16 चीतलों को ही पकड़ा जा सका और उन्हें पहली खेप में रवाना किया गया। यह घटना बताती है कि वन्यजीवों के साथ काम करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है और इसके लिए धैर्य और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।

भविष्य की योजना: सांभर और बाकी चीतल कब भेजे जाएंगे?
16 चीतलों को सफलतापूर्वक कूनो भेजने के बाद, बाकी 15 चीतल और 8 सांभर को भेजने की तैयारी की जा रही है। वाहन जल्द ही वापस रीवा आएगा, और अधिकारियों का मानना है कि अगली बार वे और अधिक जानवरों को पकड़ने में सफल होंगे। जानवरों को किश्तों में भेजा जा रहा है ताकि उनके ऊपर तनाव कम हो और वे नई जगह पर आसानी से ढल सकें। सांभर और बाकी चीतल कब भेजे जाएंगे, इसका सटीक समय अभी तय नहीं किया गया है, लेकिन जल्द ही यह प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। कूनो में ये जानवर अपनी नई दुनिया में विचरण करेंगे और वहां अपनी संख्या बढ़ाकर चीतों के लिए एक स्थायी शिकार आधार तैयार करेंगे।

पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन और वन्यजीव संरक्षण
इस तरह के स्थानांतरण का वन्यजीव संरक्षण में बहुत महत्व है। यह पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। जब किसी एक प्रजाति की संख्या बहुत बढ़ जाती है और दूसरी प्रजाति की संख्या घट जाती है, तो पूरा इकोसिस्टम असंतुलित हो जाता है। चीतों को कूनो में बसाने के बाद यह जरूरी है कि उनके लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था हो। यदि ऐसा नहीं होता, तो चीते भूख से मर सकते हैं या बाहर निकलकर मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ा सकते हैं। इस योजना से वन्यजीवों को क्या फायदा होगा? इसका सबसे बड़ा फायदा यही है कि इससे न केवल चीतों की आबादी को सुरक्षित रखा जा सकेगा, बल्कि कूनो के अंदर के पूरे इकोसिस्टम को भी मजबूत किया जा सकेगा, जो अंततः सभी वन्यजीवों के लिए फायदेमंद होगा।