डीएम साहब! गांव वाले परेशान: कलेक्टर रीवा, क्या करोड़ों की सड़क पर फिर होगा अवैध कब्जा? ग्रामीण बोले- 'सरपंच-सचिव पैसा खाकर बैठे हैं!'
डीएम को खुला खत: 'हमने सुना है आप न्याय करते हैं', गांव वाले बोले- 'सरपंच-सचिव की मिलीभगत से बर्बाद हो रहा हमारा जीवन', अवैध कब्जेदार खुलेआम कर रहे कानून का उल्लंघन, अब नहीं सहेंगे!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) हुजूर तहसील के मोहनी गांव में विकास के वादे केवल कागजों तक सिमट कर रह गए हैं। यहां ग्राम पंचायत द्वारा प्रस्तावित 180 मीटर लंबी एक महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण पिछले कई महीनों से नहीं हो पा रहा है। वजह साफ है: शासकीय भूमि नंबर-268 पर दबंगों का दुस्साहसिक और लगातार जारी अवैध कब्जा। इस अतिक्रमण ने न केवल गांव की जीवनरेखा कही जाने वाली सड़क को अवरुद्ध कर दिया है, बल्कि निकासी रुकने से गांव की गलियां और घर गंदे पानी के तालाब में तब्दील हो चुके हैं, जिससे ग्रामीण भीषण स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। ग्रामीण अब न्याय की आस में रीवा कलेक्टर की ओर देख रहे हैं, साथ ही ग्राम पंचायत के सचिव अशोक द्विवेदी और सरपंच रजौआ प्रजापति की 'मिलीभगत' और 'उदासीनता' पर खुलेआम गंभीर आरोप लगा रहे हैं।
मोहनी की व्यथा: जब विकास पर हावी हुआ कब्जा
यह कोई सामान्य कब्जा नहीं, बल्कि कानून और व्यवस्था को चुनौती देने वाला दुस्साहस है। ग्रामीणों द्वारा दिए गए लिखित पत्र के अनुसार, ग्राम सभा में बाकायदा पारित प्रस्ताव के बावजूद, ओमकार सिंह के घर से रावेन्द्र सिंह के घर के आगे तक बननी वाली इस सड़क पर अवैध कब्जाधारियों ने 'जबरन व सरहंगी बलपूर्वक' फिर से कब्जा कर लिया है। यह स्थिति तब है, जब पूर्व कलेक्टर इलैयाराजा टी के हस्तक्षेप के बाद एक बार यह कब्जा हटाया जा चुका था। लेकिन, उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर दबंगों ने प्रशासन के आदेश को धता बताते हुए 'पुनः अनाधिकृत रूप से कब्जा कर लिया है' और अब 'किसी के आदेश को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।'
सड़क पर शौचालय, नाली पर वाहन - गंदगी का नरक बनता गांव!
अतिक्रमणकारियों की मनमानी का आलम यह है कि सड़क निर्माण स्थल पर ही ओमकार सिंह ने 12x12 फीट का अवैध शौचालय खड़ा कर दिया है। वहीं, सतेन्द्र सिंह ने गांव से निकलने वाले गंदे पानी के मुख्य गड्ढे को मिट्टी डालकर पूरी तरह से पाट दिया है और उसी स्थान पर अपने निजी वाहन व कृषि यंत्र खड़े करते हैं।
इस कृत्य का भयावह परिणाम यह है कि पूरे गांव के गंदे पानी की निकासी पूरी तरह से थम गई है। नालियां उफना रही हैं, और गंदा पानी सीधे ग्रामीणों के घरों में घुस रहा है। बदबूदार पानी के ठहराव से मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है, संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया है, जिससे 'जान माल का खतरा बना हुआ है'। ग्रामीणों का जीवन नरक बन चुका है। बीमार पड़ने वाले बच्चों और बुजुर्गों की चिंता ने पूरे गांव को गहरे अवसाद में धकेल दिया है।
ग्राम पंचायत की भूमिका पर गंभीर सवाल: 'सरपंच-सचिव, क्या पैसा खाकर बैठे हैं?'
सबसे बड़ा और गंभीर आरोप ग्राम पंचायत के मुखिया, सरपंच रजौआ प्रजापति और सचिव अशोक द्विवेदी पर लग रहा है। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि उन्होंने कई बार इन दोनों पदाधिकारियों को इस समस्या से अवगत कराया, सड़क बनाने और अवैध कब्जा हटवाने की गुहार लगाई, लेकिन 'सरपंच द्वारा मौके से कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।' ग्रामीणों का यह सीधा आरोप कि 'सरपंच और सचिव पैसा खाकर बैठे हैं' यदि सत्य है, तो यह पंचायती राज व्यवस्था और जनता के विश्वास का खुला उल्लंघन है। ऐसे में उनकी भूमिका की उच्च-स्तरीय जांच आवश्यक है।
कलेक्टर रीवा, अब आपकी बारी है!
समस्त ग्रामवासियों ने, हताश होकर, अब अपनी सारी उम्मीदें रीवा कलेक्टर पर टिका दी हैं। उन्होंने एक बार फिर कलेक्टर से सादर अनुरोध किया है कि:
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तत्काल प्रभाव से अवैध कब्जा हटवाया जाए।
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सड़क निर्माण हेतु भूमि की नए सिरे से नाप-जोख कराई जाए।
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निर्माण कार्य के दौरान किसी भी समस्या या प्रतिरोध की स्थिति में पुलिस बल उपलब्ध कराया जाए।
कानून तोड़ने वालों पर हो सकती है कड़ी कार्रवाई!
यह मामला न केवल अतिक्रमण, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति को बाधित करने और संभावित रूप से लोकसेवकों द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा का भी है। ऐसे मामलों में भारतीय न्याय संहिता (BNS) और अन्य संबंधित कानूनों के तहत कई तरह की कार्रवाई संभव है:
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अवैध कब्जेदारों के खिलाफ:
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आपराधिक अतिचार (Criminal Trespass): भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 339 के तहत कार्रवाई हो सकती है, जो आपराधिक अतिचार से संबंधित है।
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सार्वजनिक न्यूसेंस (Public Nuisance): BNS की धारा 193 (सार्वजनिक न्यूसेंस) और इसके तहत आने वाली संबंधित धाराएं लागू हो सकती हैं, खासकर जब गंदा पानी घरों में घुसने और बीमारी फैलने का खतरा हो, जिससे आम जनता को असुविधा या स्वास्थ्य संबंधी खतरा उत्पन्न हो रहा हो।
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लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984: यदि सरकारी भूमि या संपत्ति को कोई नुकसान पहुंचाया गया है, तो इस अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है।
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भूमि राजस्व संहिता के प्रावधान: मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता के तहत भी शासकीय भूमि से अतिक्रमण हटाने और अतिक्रमणकारियों पर जुर्माना लगाने के कड़े प्रावधान हैं।
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सरपंच और सचिव के खिलाफ (यदि आरोप सिद्ध होते हैं):
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कर्तव्य में लापरवाही/उपक्षा: मध्य प्रदेश पंचायती राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 के तहत सरपंच और सचिव के लिए अपने कर्तव्यों की उपेक्षा या उनका उल्लंघन करने पर कार्रवाई के प्रावधान हैं, जिसमें पद से हटाना भी शामिल हो सकता है।
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988: यदि 'पैसा खाने' या किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होते हैं, तो इस अधिनियम के तहत भी कड़ी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें जेल और भारी जुर्माने का प्रावधान है।
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आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy): यदि वे अवैध गतिविधियों में मिलीभगत या साजिश में लिप्त पाए जाते हैं, तो BNS की धारा 61 के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।
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रीवा के मोहनी गांव में पसरी यह बदहाली और कानून का खुला उल्लंघन प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवालिया निशान है। कलेक्टर रीवा से यह उम्मीद की जाती है कि वे इस गंभीर मामले को संज्ञान में लेंगे, त्वरित कार्रवाई करेंगे, और यह सुनिश्चित करेंगे कि मोहनी गांव के ग्रामीणों को न्याय मिले, उनका जीवन सुरक्षित हो और विकास कार्य बिना किसी बाधा के पूरा हो। इस खबर को पढ़ने के बाद, क्या प्रशासन की नींद खुलेगी और इन 'दबंगों' पर कानून का डंडा चलेगा?