रीवा शिक्षा विभाग में 'फर्जीवाड़ा एक्सप्रेस': DEO पर FIR क्यों नहीं? छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ का कौन जिम्मेदार!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) . रीवा जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) कार्यालय में हुए अनुकंपा नियुक्ति घोटाले ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी पाने वाले पांच लोगों की नियुक्तियां रद्द कर दी गई हैं और अनुकंपा नियुक्ति शाखा के प्रभारी अखिलेश मिश्रा को निलंबित भी कर दिया गया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पूरा मामला सामने आ चुका है, तो अभी तक जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) के खिलाफ एफआईआर (FIR) क्यों दर्ज नहीं हुई है?
बड़े अधिकारियों की भूमिका पर सवाल
इस बड़े घोटाले में ऊपर तक के अधिकारियों की संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है। समाजसेवियों का आरोप है कि इतने बड़े फर्जीवाड़े में सिर्फ एक कर्मचारी शामिल नहीं हो सकता। यदि शिक्षा विभाग के मुखिया यानी DEO के खिलाफ ही कार्रवाई नहीं हो रही है, तो यह सीधे तौर पर दर्शाता है कि कहीं न कहीं बड़ी मछलियां इस खेल में शामिल हैं।
छात्रों के भविष्य पर खतरा:
अगर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का ही यह हाल है, तो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था कैसे सुधरेगी? जब छात्रों के भविष्य को गढ़ने वाले विभाग में ही ऐसी धांधलियां हो रही हों, तो यह सीधे तौर पर लाखों छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। एक शिक्षा अधिकारी, जिस पर व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी है, अगर उसी के कार्यकाल में ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं, तो यह गंभीर चिंता का विषय है।
घोटाले का पूरा विवरण: कैसे हुई धोखाधड़ी?
यह घोटाला तब सामने आया जब बृजेश कुमार कोल नामक व्यक्ति ने फर्जी दस्तावेजों का उपयोग कर अनुकंपा नियुक्ति पाने की कोशिश की। उसने एक ऐसे व्यक्ति का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र पेश किया जो कभी विभाग का कर्मचारी था ही नहीं। जांच कमेटी ने पाया कि नियुक्तियां पूरी तरह से जाली यूनिक आईडी, फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र और प्रधानाचार्यों की सिफारिशों पर आधारित थीं। इस खुलासे के बाद विनय कुमार रावत, हीरामणि रावत, सुषमा कोल, उषा देवी और ओम प्रकाश कोल सहित पांच लोगों की नियुक्तियां रद्द कर दी गईं। पुलिस ने इस मामले में एफआईआर भी दर्ज की है, जिसमें पांच लोगों को नामजद किया गया है, लेकिन DEO का नाम इसमें क्यों नहीं है, यह बात समझ से परे है।
संभागीय आयुक्त ने इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए पिछले तीन सालों में हुई सभी अनुकंपा नियुक्तियों की जांच के आदेश दिए हैं। अब देखना यह है कि यह जांच कहां तक जाती है और क्या इस बड़े फर्जीवाड़े के पीछे के सभी चेहरे बेनकाब हो पाते हैं।