जनार्दन मिश्रा ने फिर दिया 'फ्री ज्ञान': मंच पर CM के सामने सांसद ने मचाया बवाल! नसबंदी पर बयान से डॉक्टर लाल, जनता हंसने पर मजबूर

 

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिला अस्पताल के नए ओपीडी भवन और 100-200 बिस्तरों वाले वार्ड के लोकार्पण समारोह में रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने पूरे कार्यक्रम का माहौल बदल दिया। मंच पर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला की मौजूदगी में, सांसद ने एक ऐसा दावा किया जिसने डॉक्टरों को नाराज कर दिया और आम लोगों को हँसने पर मजबूर कर दिया। सांसद मिश्रा ने अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा कि अगर नसबंदी के बाद भी कोई महिला या पुरुष फिर से बच्चा पैदा करने की स्थिति में आ जाए, तो ऐसे 'चमत्कारी' डॉक्टर पूरे देश में कहीं नहीं मिलेंगे, सिवाय इसी अस्पताल के।

सांसद का यह बयान, भले ही प्रशंसा के इरादे से दिया गया हो, स्वास्थ्य सेवा के एक बेहद संवेदनशील विषय पर एक अनुचित टिप्पणी थी। यह बयान सुनने के बाद डॉक्टरों के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी, क्योंकि यह चिकित्सा विज्ञान और उनकी प्रतिष्ठा के खिलाफ था। वहीं, आम जनता और कुछ राजनीतिक नेताओं ने इसे हास्य के रूप में लिया, जो इस तरह के सार्वजनिक बयानों की गंभीरता को कम करता है। सांसद ने अपने अनोखे अंदाज़ में तालियां तो बटोर लीं, लेकिन इसके साथ ही एक गहरा विवाद भी खड़ा कर दिया।

प्रधानमंत्री मोदी का स्वास्थ्य मिशन: 1947 या 2047 का लक्ष्य?
सांसद जनार्दन मिश्रा ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वास्थ्य क्षेत्र के विजन का भी जिक्र किया। लेकिन इस दौरान उन्होंने 'मिशन' के वर्षों को लेकर भारी भ्रम पैदा कर दिया। उन्होंने एक ही सांस में इसे कभी '1947 का मिशन' तो कभी '2047 का मिशन' बताया। 1947 वह वर्ष है जब भारत को स्वतंत्रता मिली थी, जबकि 2047 वह वर्ष है जब भारत अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा। इस तरह की विरोधाभासी बातें न केवल दर्शकों को भ्रमित करती हैं, बल्कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय योजनाओं की गंभीरता को भी कम करती हैं।

उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री का संकल्प है कि भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं को यूरोप और अमेरिका के बराबर लाया जाएगा, और इसके लिए मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी-तिगुनी की जाएगी। साथ ही, जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों का अनुपात बढ़ाने पर भी जोर दिया जाएगा। हालांकि, सांसद के इन बसानों में मूल विचार सही था, लेकिन तारीखों में हुई गलती ने उनके पूरे बयान को हास्यास्पद बना दिया। यह घटना दर्शाती है कि सार्वजनिक मंच पर बोलते समय तथ्यों की जांच कितनी आवश्यक है।

जनार्दन मिश्रा का 'अनोखा' व्यक्तित्व और पिछले विवाद
जनार्दन मिश्रा अपने राजनीतिक करियर में अक्सर अपने विवादित और अनोखे बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। उनका यह बयान कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी उन्होंने बच्चों की देखभाल और स्वच्छता को लेकर एक अजीबोगरीब बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर बच्चों को नहलाने-धुलाने और नाखून काटने में समस्या हो, तो कोई बात नहीं। उनके ऐसे बयान समाज में अक्सर बहस का विषय बनते हैं और उनके व्यक्तित्व को एक 'विद्रोही' नेता के रूप में स्थापित करते हैं।

यह पैटर्न दिखाता है कि सांसद जनार्दन मिश्रा जानबूझकर या अनजाने में ऐसे बयान देते हैं जो मुख्यधारा की राजनीति से हटकर होते हैं। उनका यह अंदाज़ उनके समर्थकों को आकर्षित कर सकता है, लेकिन यह विपक्षी दलों और आलोचकों को उन पर हमला करने का मौका भी देता है। रीवा जिला अस्पताल का यह कार्यक्रम एक और उदाहरण बन गया है, जहां उनके भाषण का मुख्य विषय से ज्यादा उनके बयान की चर्चा हुई।

स्वास्थ्य क्षेत्र की संवेदनशीलता और बयानों का प्रभाव
स्वास्थ्य सेवा एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ काम करने वाले डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ अपने काम में समर्पण और गरिमा बनाए रखते हैं। सांसद जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा इस तरह के बयान देना, डॉक्टरों के मनोबल को प्रभावित कर सकता है। उनके बयान ने न केवल डॉक्टरों की प्रतिष्ठा पर सवाल उठाया, बल्कि यह भी संकेत दिया कि चिकित्सा विज्ञान के बारे में आम लोगों के बीच अभी भी बहुत सी गलत धारणाएं मौजूद हैं।

कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला की उपस्थिति में इस तरह का बयान आना, राजनीतिक शिष्टाचार और मंच की गरिमा पर भी सवाल खड़े करता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि उप मुख्यमंत्री ने इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया दी या नहीं, लेकिन यह निश्चित रूप से चर्चा का विषय बन गया है।

निष्कर्ष: शब्दों का चयन और सार्वजनिक जिम्मेदारी
रीवा जिला अस्पताल के उद्घाटन समारोह में सांसद जनार्दन मिश्रा के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि सार्वजनिक जीवन में शब्दों का चयन कितना महत्वपूर्ण है। भले ही उनका इरादा डॉक्टरों की प्रशंसा करना हो, लेकिन नसबंदी जैसे संवेदनशील विषय पर इस तरह की टिप्पणियां अनुचित थीं। यह घटना न केवल मीडिया में चर्चा का विषय बनी, बल्कि इसने सार्वजनिक मंच पर नेताओं की जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े किए।

स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए संसाधनों, डॉक्टरों की संख्या और बुनियादी ढांचे को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जैसा कि सांसद ने भी कहा। लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों का सम्मान बनाए रखना और जनता के बीच सही जानकारी फैलाना भी उतना ही जरूरी है।