रीवा में बदहाली की इंतहा: खाद्य विभाग की मिलीभगत से होटल-रेस्तरां में जानलेवा लापरवाही; 'महीना बंधा है' - बड़े अधिकारियों तक जाती है 'मोटी रकम'!

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर इस समय खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के मोर्चे पर गंभीर सवालों के घेरे में है। खुलेआम चल रहे छोटे-बड़े होटल, रेस्तरां और बेकरी-बिस्किट फैक्ट्रियां, यहां तक कि पानी की बॉटलिंग यूनिट्स भी बिना किसी नियम-कायदे और साफ-सफाई के चल रही हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि शहर में नक़ली पानी तक धड़ल्ले से बिक रहा है। इन गंभीर अनियमितताओं के बावजूद, खाद्य विभाग की चुप्पी और निष्प्रभावी कार्रवाई लोगों के स्वास्थ्य के साथ खुले खिलवाड़ का संकेत दे रही है।

शहर में हर गली-मोहल्ले में बेतरतीब ढंग से खुले खाने-पीने के प्रतिष्ठान अक्सर न्यूनतम स्वच्छता मानकों का भी पालन नहीं करते। यहाँ तक कि नामी-गिरामी रेस्तरां और बड़ी फैक्ट्रियों में भी हालात खराब हैं। जनता की सेहत से यह खिलवाड़ रोजमर्रा की घटना बन चुका है, लेकिन खाद्य विभाग की तरफ से कोई ठोस पहल क्यों नहीं हो रही, यह एक बड़ा सवाल है।

आखिर किसका हाथ है इन 'लापरवाह' कारोबारियों पर?

शहर में कई ऐसी इकाइयाँ हैं जहाँ स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन हो रहा है, फिर भी उन पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होती। आरोप है कि यह सब भ्रष्टाचार और मिलीभगत के कारण हो रहा है। खाद्य विभाग की कार्रवाई केवल साल या महीने में नाममात्र के लिए होती है, जो सिर्फ खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं।

कुछ प्रमुख उदाहरण जो शहर में चल रही बदहाली की पोल खोलते हैं:

  • पीटीएस चौराहा स्थित ब्रेड फैक्ट्री: यहाँ की बदहाली का आलम किसी से छिपा नहीं है।

  • घोघर के पास बिस्किट फैक्ट्री: यहाँ भी स्वच्छता और उत्पादन मानकों को लेकर गंभीर सवाल हैं।

  • पंचमठा के पास केक फैक्ट्री: यहाँ भी गंदगी और अनियमितताओं की शिकायतें आम हैं।

  • BTL के पास पानी की फैक्ट्री: शहर में बिक रहे नक़ली और अशुद्ध पानी का स्रोत ऐसी ही फैक्ट्रियां हो सकती हैं, जहाँ पानी के शुद्धिकरण के मानकों का पालन नहीं होता।

इन जगहों पर जाकर देखने से पता चलता है कि किस तरह जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब कोई खबर प्रकाशित होती है, तब जाकर महीने भर में एक छोटी-मोटी कार्रवाई दिखती है, और फिर सब ठंडा पड़ जाता है।

क्या पूरा सिस्टम सोया हुआ है?

यह स्थिति सीधे तौर पर दर्शाती है कि या तो पूरा सरकारी सिस्टम सोया हुआ है, या फिर इसमें गहरे तक भ्रष्टाचार की जड़ें जम चुकी हैं। अगर खाद्य विभाग जैसी महत्वपूर्ण इकाई, जिसका सीधा सरोकार जनता के स्वास्थ्य से है, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएगी, तो लोग स्वच्छ और सुरक्षित भोजन-पानी की उम्मीद किससे करेंगे?

क्या रीवा में खाद्य विभाग के अधिकारी जानबूझकर इन अनियमितताओं को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं? क्या यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का मामला नहीं है? यह समय है कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले और इन लापरवाहियों के खिलाफ कठोर और निरंतर कार्रवाई सुनिश्चित करे, ताकि रीवा के नागरिकों को स्वस्थ और सुरक्षित जीवन का अधिकार मिल सके।

शहर में खाद्य सुरक्षा का हाल बदतर है, और इसका सबसे बड़ा कारण खाद्य विभाग की संदिग्ध कार्यप्रणाली है। शहर के छोटे-बड़े होटल, रेस्तरां, बेकरी और पानी की फैक्ट्रियां खुलेआम नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। इन प्रतिष्ठानों में न तो साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है, न गुणवत्ता का, और नक़ली पानी तथा अमानक खाद्य सामग्री तक धड़ल्ले से बेची जा रही है। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि बड़े प्रतिष्ठानों से खाद्य विभाग का 'महीना बंधा हुआ है', और यह मोटी रकम बड़े अधिकारियों तक जाती है।

नियमों की धज्जियां: कहाँ है जवाबदेही?

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के कड़े नियम स्पष्ट रूप से बताते हैं कि खाद्य प्रतिष्ठानों को क्या-क्या मानक पूरे करने होंगे:

  1. लाइसेंस और पंजीकरण: सभी खाद्य कारोबारियों को FSSAI से लाइसेंस या पंजीकरण लेना अनिवार्य है।

  2. स्वच्छता और हाइजीन: कर्मचारियों को साफ-सुथरे कपड़े (ड्रेस कोड, एप्रन), दस्ताने और हेयरनेट पहनना अनिवार्य है। खाना बनाने और परोसने की जगहें नियमित रूप से साफ होनी चाहिए।

  3. कच्चे माल की गुणवत्ता: इस्तेमाल होने वाले सभी कच्चे माल उच्च गुणवत्ता के होने चाहिए और एक्सपायरी डेट का ध्यान रखना चाहिए।

  4. पानी की शुद्धता: पीने और खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाला पानी शुद्ध और सुरक्षित होना चाहिए, विशेषकर बॉटलिंग प्लांट्स में।

  5. गैस सिलेंडर का उपयोग: व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में घरेलू गैस सिलेंडर (लाल सिलेंडर) का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके लिए सिर्फ व्यावसायिक सिलेंडर (नीले सिलेंडर) का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। रीवा में स्कूल-कॉलेज परिसरों के पास भी खुलेआम घरेलू सिलेंडरों का उपयोग मुख्यमंत्री के निर्देशों का सीधा उल्लंघन है।

  6. स्वास्थ्य जांच: खाद्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण अनिवार्य है ताकि वे बीमारियों के वाहक न बनें।

इनमें से शायद ही किसी नियम का पालन रीवा में होता दिख रहा है। पीटीएस चौराहा स्थित ब्रेड फैक्ट्री, घोगर के पास बिस्किट फैक्ट्री, पंचमाथा के पास केक फैक्ट्री और बीटीएल के पास पानी की फैक्ट्री जैसे कई स्थानों पर खुलेआम अनियमितताएं पाई जा सकती हैं।

शहर के कई नामी प्रतिष्ठान भी सवालों के घेरे में

ऐसा नहीं है कि ये दिक्कतें सिर्फ छोटे या अनजान प्रतिष्ठानों तक सीमित हैं। रीवा शहर के कई जाने-माने डेयरी और मिठाई की दुकानें भी अपनी कार्यप्रणाली के चलते सवालों के घेरे में हैं। इनमें जय डेयरी (धोबिया टंकी स्थित कान्हा डेरी, जेपी मोड़ के पास दत्ता डेरी, एसपीएस मॉल के पास लालू भाई जय डेयरी), विजय डेयरी (स्टेडियम तिराहा के पास), सलीम डेरी (गुढ़हाई बाजार), वरदान डेरी सहित अन्य डेयरी प्रतिष्ठान शामिल हैं। वहीं, बंगाल स्वीट्स, अशोक मिष्ठान, शगुन स्वीट्स, राधा स्वामी स्वीट्स, महेश स्वीट्स, शिवम मिष्ठान (नया बस स्टैंड) जैसी नामी मिठाई की दुकानों में भी स्वच्छता और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इन सभी जगहों पर अक्सर FSSAI के नियमों का उल्लंघन होता देखा गया है।

नमूनों की रिपोर्ट क्यों छिपाई जाती है? 'नाटक' या भ्रष्टाचार?

खाद्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब वे किसी प्रतिष्ठान से खाद्य सामग्री का सैंपल लेते हैं, तो उसकी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की जाती? न तो यह रिपोर्ट मीडिया को दी जाती है और न ही जनता को। इसे गुप्त क्यों रखा जाता है? यदि रिपोर्ट साफ-सुथरी है, तो उसे छिपाने का क्या कारण? और यदि नमूना फेल हो जाता है, तो दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती और उसकी जानकारी क्यों नहीं दी जाती?

यह पारदर्शिता की कमी सीधे तौर पर संकेत देती है कि पूरा नमूना लेने और जांच का खेल महज एक 'नाटक' है। ऐसा लगता है कि यह सिर्फ दिखावे की कार्रवाई होती है, ताकि अधिकारी अपनी डायरी में एंट्री दिखा सकें। जब कोई बड़ी खबर बनती है, तब जाकर महीने-दो महीने में एक छोटी-मोटी कार्रवाई दिखती है, और फिर सब पहले जैसा हो जाता है। यह कुंभकर्णी नींद में सोया विभाग तभी जागता है, जब जनता या मीडिया का दबाव बढ़ता है।

यह छिपाव सीधा-सीधा भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। अगर जांच रिपोर्टें पारदर्शी हों, तो जनता को पता चलेगा कि कौन से प्रतिष्ठान नियमों का पालन कर रहे हैं और कौन नहीं। इससे अधिकारियों पर भी दबाव बनेगा कि वे ईमानदारी से काम करें।

रीवा की जनता के स्वास्थ्य से हो रहे इस खिलवाड़ पर जिला प्रशासन को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए। न केवल नियमों का कड़ाई से पालन करवाया जाए, बल्कि खाद्य विभाग की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए, विशेषकर सैंपलिंग और जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में। दोषी अधिकारियों और प्रतिष्ठानों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो ताकि यह संदेश जाए कि जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्या कलेक्टर महोदय इस भ्रष्टाचार के नेक्सस को तोड़कर रीवा की जनता को सुरक्षित भोजन-पानी का अधिकार दिला पाएंगे?