इतिहास में पहली बार: जज साहब का 'लॉकडाउन'! वकीलों ने भरी हुंकार, 6 अक्टूबर को हाई कोर्ट में 'घेराव'!
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ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) न्यायिक प्रक्रिया में सुगमता और आधुनिकता लाने के उद्देश्य से जिला एवं सत्र न्यायालय को 29 सितंबर को नए भव्य भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। हालांकि, यह स्थानांतरण शुरुआती दिनों में ही अव्यवस्था और प्रशासनिक उलझन का शिकार हो गया।
नई बिल्डिंग में सबसे बड़ी समस्या अधिवक्ताओं की बैठक व्यवस्था को लेकर उत्पन्न हुई, जिससे न्यायिक कार्य में लगे वकीलों को भारी असुविधा और आक्रोश का सामना करना पड़ा। यह अव्यवस्था मुख्य रूप से प्रशासनिक संवादहीनता और नियमों के अनुमोदन में देरी के कारण हुई।
बैठक व्यवस्था पर विवाद: ताले क्यों नहीं खुले?
अधिवक्ता संघ ने इस असुविधा को दूर करने के लिए अपनी ओर से पूरी तैयारी की थी।
- तैयारी: अधिवक्ता संघ ने लगभग 1200 सीटों का प्रबंध किया और उनका आवंटन कर सूची भी चस्पा कर दी थी, ताकि वकीलों को अपनी निर्धारित जगह पर बैठने में कोई परेशानी न हो।
- अवरोध: तमाम तैयारियों के बावजूद, जिला न्यायालय द्वारा अधिवक्ताओं के लिए निर्धारित बैठने की जगहों के ताले नहीं खोले गए।
इसके परिणामस्वरूप, जिन अधिवक्ताओं को सीटें आवंटित की गई थीं, उन्हें उनके निर्धारित स्थानों पर बैठने की अनुमति नहीं मिली, जिससे पूरे संघ में असंतोष और आक्रोश का माहौल पैदा हो गया।
उच्च न्यायालय के अनुमोदन की अनिवार्यता
जिला न्यायालय प्रशासन ने ताले न खोलने के पीछे नियमों के अभाव का हवाला दिया।
- समस्या की जड़: अधिवक्ता संघ द्वारा बैठक व्यवस्था के लिए बनाए गए नियम और किए गए आवंटन को माननीय उच्च न्यायालय का अनुमोदन (Approval) अभी तक नहीं मिला था।
- प्रशासन का तर्क: जिला न्यायालय का कहना था कि बिना उच्च न्यायालय की स्पष्ट मंजूरी के, अधिवक्ताओं के लिए निर्धारित बैठने की व्यवस्था को औपचारिक रूप से शुरू नहीं किया जा सकता।
यह दर्शाता है कि न्यायिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए प्रक्रियात्मक नियमों का अनुमोदन कितना अनिवार्य है, और बिना उचित प्रक्रिया के कोई भी व्यवस्था लागू नहीं हो सकती।
अधिवक्ताओं में असंतोष और संयम की अपील
सीटें आवंटित होने के बावजूद बैठने की अनुमति न मिलने से अधिवक्ताओं में गहरा आक्रोश देखा गया। दिन भर उन्हें नई बिल्डिंग में अव्यवस्थित तरीके से खड़े रहने या बैठने पर मजबूर होना पड़ा।
- सहानुभूति और आग्रह: इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, जिला न्यायालय प्रशासन ने अधिवक्ताओं की समस्याओं के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।
- संयम की अपील: न्यायालय प्रशासन ने अधिवक्ताओं से संयम बरतने और सहयोग करने का आग्रह किया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी अधिवक्ता के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह न्यायिक प्रक्रिया में सहनशीलता और व्यावहारिकता की अहमियत को दर्शाता है।
संवादहीनता: समस्या की मूल जड़
अधिवक्ताओं के बीच चर्चा का मुख्य विषय यह रहा कि यह पूरी समस्या जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय के बीच उचित संवाद न होने के कारण उत्पन्न हुई। यदि समय रहते नियमों के अनुमोदन पर चर्चा हो गई होती, तो अधिवक्ताओं को इस भारी असुविधा से बचाया जा सकता था।
- समाधान की पहल: इस स्थिति को सुधारने के लिए, अधिवक्ता संघ के प्रतिनिधि सक्रिय हो गए हैं।
- उच्च न्यायालय से चर्चा: संघ ने निर्णय लिया है कि 6 अक्टूबर को वे सीधे उच्च न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे को उठाएँगे और नियमों के अनुमोदन तथा ताले खुलवाने पर चर्चा करेंगे। उम्मीद है कि समस्या का समाधान शीघ्र हो जाएगा।
सुविधाओं का अभाव और समाधान के प्रयास
स्थानांतरण के इस संक्रमण काल में केवल बैठक व्यवस्था ही नहीं, बल्कि अन्य मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव देखा गया।
- सुविधाओं का हाल: नई बिल्डिंग में पानी, छांव, और कैंटीन जैसी आवश्यक सुविधाएँ भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो पाई हैं।
- प्रगति: प्रशासन ने यह आश्वासन दिया है कि ये सुविधाएँ धीरे-धीरे उपलब्ध कराई जा रही हैं ताकि अधिवक्ताओं और न्यायालय कर्मियों को एक उचित कार्य वातावरण मिल सके। सुविधाओं का समुचित प्रावधान निश्चित रूप से न्यायालय की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
यह स्पष्ट है कि नए भवन में सुचारू कामकाज शुरू करने के लिए धैर्य, सहयोग और समय पर प्रशासनिक कार्रवाई तीनों आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
जिला एवं सत्र न्यायालय के नए भवन में स्थानांतरण के बाद अधिवक्ताओं की बैठक व्यवस्था को लेकर उत्पन्न हुआ विवाद उच्च न्यायालय के अनुमोदन में देरी और संवादहीनता का सीधा परिणाम है। अधिवक्ता संघ और न्यायालय प्रशासन दोनों ही समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत हैं।
अधिवक्ताओं से संयम बरतने का आग्रह किया गया है, जबकि संघ के प्रतिनिधि 6 अक्टूबर को उच्च न्यायालय से चर्चा कर शीघ्र निराकरण की उम्मीद कर रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया को बाधित किए बिना, सभी पक्षों के सक्रिय सहयोग से ही नए भवन में सुचारू एवं व्यवस्थित कार्यप्रणाली स्थापित की जा सकेगी।