भाजपा बनाम कांग्रेस की जंग में पिसती पुलिस: पूर्व MLA ने दी धमकी: "असंवेदनशील औरत, हट सामने से!" हाथ जोड़ता TI, बेबस कानून
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले का चोरहटा थाना शुक्रवार को एक सामान्य पुलिस स्टेशन न रहकर राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बन गया। यह घटना सिर्फ एक साधारण विवाद नहीं, बल्कि सत्ता के नशे, राजनीतिक दबाव में पिसती पुलिस और तार-तार होती कानून-व्यवस्था की एक जीती-जागती तस्वीर है। जब एक पूर्व विधायक अपनी ताकत के दम पर एक महिला पुलिस अधिकारी को "असंवेदनशील औरत" कहकर धमकाता है और उसके समर्थक अधिकारी पर हमला करने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो यह समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह मामला एक साधारण मारपीट की शिकायत से शुरू हुआ था, लेकिन जल्द ही इसने भाजपा बनाम कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई का रूप ले लिया, जिसमें कानून के रखवाले ही सबसे ज्यादा बेबस और लाचार नजर आए। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद, कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं, जिनका जवाब जानना हर नागरिक के लिए आवश्यक है।
5 तस्वीरों में देखिए पूरा घटनाक्रम...
इस पूरे विवाद की जड़ क्या है? दो पक्ष, दो अलग-अलग दावे
किसी भी विवाद को समझने के लिए उसके मूल कारण को जानना जरूरी है। यह पूरा हंगामा एक युवक की पिटाई के आरोपों से शुरू हुआ, लेकिन इसमें एक और पक्ष भी है जिसका दावा बिल्कुल विपरीत है।
पहला पक्ष: अभिषेक तिवारी और भाजपा नेता का आरोप
मामले के केंद्र में अभिषेक तिवारी नाम का एक युवक है। उसका आरोप है कि वह सेमरिया से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा के फार्म हाउस पर अपने काम के पैसे मांगने गया था। अभिषेक के अनुसार, पैसे देने के बजाय विधायक ने पहले उसके साथ गाली-गलौज की, फिर खुद 30 लाठियां मारीं और अपने गुर्गों से भी बेरहमी से पिटवाया। उसकी जांघों और पीठ पर चोट के गहरे निशान इस आरोप को बल देते हैं। अभिषेक का यह भी कहना है कि जब वह चोरहटा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने गया, तो पुलिस ने उसकी शिकायत लेने से इनकार कर दिया और विधायक को इसकी सूचना दे दी। इसी बात को लेकर पूर्व भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी अपने समर्थकों के साथ थाने में FIR दर्ज कराने के लिए दबाव बनाने पहुंचे थे।
दूसरा पक्ष: कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा और कर्मचारी का जवाब
कहानी का दूसरा पहलू कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा और उनके कर्मचारी अशोक तिवारी का है। अशोक तिवारी ने अभिषेक तिवारी के खिलाफ पहले ही सिविल लाइन थाने में एक FIR दर्ज करा रखी है। अशोक का आरोप है कि 24 जुलाई को अभिषेक ने ढेकहा तिराहे पर उनसे शराब पीने के लिए 500 रुपये मांगे। जब उन्होंने पैसे देने से इनकार किया, तो अभिषेक ने मारपीट की और उनकी दाहिनी हाथ की तर्जनी उंगली को दांतों से काट लिया। अशोक अपनी कटी हुई उंगली एक डिब्बी में लेकर थाने पहुंचे थे। वहीं, विधायक अभय मिश्रा ने खुद पर लगे सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि वह घटना के समय सिंगापुर में थे और हाल ही में लौटे हैं। उन्होंने अभिषेक को एक शराबी बताया और कहा कि यह उन्हें बदनाम करने की एक राजनीतिक साजिश है।
घटना का पूरा घटनाक्रम: थाने के भीतर क्या-क्या हुआ?
शुक्रवार को चोरहटा थाने में जो हुआ, वह किसी फिल्म के दृश्य से कम नहीं था। आइए इसे क्रमबद्ध तरीके से समझते हैं:
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FIR की मांग से शुरू हुआ विवाद: पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी, अभिषेक तिवारी के पक्ष में कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर FIR दर्ज करने की मांग को लेकर थाने पहुंचे। वहां पहले से ही माहौल गर्म था।
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CSP रितु उपाध्याय और पूर्व विधायक में तीखी नोकझोंक: मौके पर मौजूद नगर पुलिस अधीक्षक (CSP) रितु उपाध्याय ने मामले को समझने की कोशिश की। इसी दौरान केपी त्रिपाठी और उनमें बहस शुरू हो गई। पूर्व विधायक पुलिस पर फर्जी कार्रवाई का आरोप लगा रहे थे।
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"असंवेदनशील औरत" और उसके बाद का हंगामा: बहस के बीच आपा खोते हुए केपी त्रिपाठी ने CSP रितु उपाध्याय को "असंवेदनशील औरत" कहा और उन्हें अपनी नजरों के सामने से हटने की धमकी दी। इस पर CSP ने भी उन्हें तमीज में रहने की हिदायत दी।
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समर्थकों का हमला और TI की बेबसी: यह सुनते ही पूर्व विधायक के समर्थक भड़क गए और CSP की ओर हमला करने के इरादे से बढ़ने लगे। हालात को बिगड़ता देख थाना प्रभारी (TI) आशीष मिश्रा ने फुर्ती दिखाते हुए CSP को थाने के मेन गेट के अंदर सुरक्षित किया, लेकिन उग्र भीड़ थाने में घुस आई।
पुलिस की भूमिका और बेबसी: कानून के रखवाले क्यों हुए लाचार?
इस घटना का सबसे निराशाजनक पहलू पुलिस की लाचारी थी।
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हाथ जोड़ते थाना प्रभारी का वायरल वीडियो: वायरल वीडियो में थाना प्रभारी आशीष मिश्रा बार-बार हाथ जोड़कर पूर्व विधायक और उनके समर्थकों से शांत रहने की अपील करते दिख रहे हैं। वे उन्हें "दादा-दादा" कहकर संबोधित कर रहे थे, जो पुलिस की बेबसी और राजनीतिक रसूख के आगे उनके समर्पण को दर्शाता है। एक कानून के रखवाले का अपराधियों या हंगामा करने वालों के सामने हाथ जोड़ना पूरी व्यवस्था पर एक तमाचा है।
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राजनीतिक दबाव में पुलिस की कार्यप्रणाली: यह घटना स्पष्ट रूप से दिखाती है कि पुलिस स्वतंत्र रूप से काम करने में कितनी अक्षम है। एक तरफ विधायक पर FIR दर्ज करने में देरी हुई, तो दूसरी तरफ थाने में घुसकर एक वरिष्ठ अधिकारी पर हमला करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह राजनीतिक दबाव का स्पष्ट उदाहरण है, जहां पुलिस न्याय देने के बजाय संतुलन बनाने में लगी रहती है।
महिला अधिकारी का अपमान और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल
यह विवाद सिर्फ एक राजनीतिक झड़प नहीं है, बल्कि इसके सामाजिक और प्रशासनिक मायने भी गहरे हैं।
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एक महिला CSP के साथ दुर्व्यवहार के मायने: एक वर्दीधारी महिला अधिकारी को सार्वजनिक रूप से "असंवेदनशील औरत" कहना केवल एक अपमान नहीं, बल्कि एक सामंती मानसिकता का प्रतीक है जो महिलाओं को अधिकार के पदों पर स्वीकार नहीं कर पाती। यह उन हजारों महिला पुलिसकर्मियों के मनोबल को तोड़ने जैसा है जो कठिन परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी करती हैं।
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क्या राजनीतिक रसूख कानून से ऊपर है?: जब थाने के अंदर, पुलिसकर्मियों के सामने एक राजनेता एक वरिष्ठ अधिकारी पर हमला करने की हिम्मत करता है, तो यह साफ संदेश देता है कि उनके लिए कानून का कोई मतलब नहीं है। यह घटना पूछती है कि क्या किसी का पूर्व विधायक या किसी पार्टी से जुड़ा होना उसे कानून तोड़ने का लाइसेंस दे देता है?
राजनीतिक निहितार्थ: कैसे यह भाजपा बनाम कांग्रेस की लड़ाई का नया मैदान बना
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स्थानीय अपराध का राजनीतिकरण: यह मामला दो व्यक्तियों के बीच की मारपीट और पैसे के लेन-देन से शुरू हुआ था, लेकिन इसे तुरंत भाजपा बनाम कांग्रेस की लड़ाई में बदल दिया गया। एक पक्ष के समर्थन में पूर्व भाजपा विधायक खड़े हो गए, जबकि आरोप मौजूदा कांग्रेस विधायक पर थे। इससे न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हुई और पूरा फोकस राजनीतिक स्कोरिंग पर चला गया।
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आगामी चुनावों पर इसका क्या असर हो सकता है?: इस तरह की घटनाएं जनता के बीच नेताओं की छवि बनाती और बिगाड़ती हैं। यह दिखाती हैं कि कौन सा दल कानून-व्यवस्था को गंभीरता से लेता है और कौन उसे अपनी जागीर समझता है। स्थानीय और आगामी चुनावों में ऐसी घटनाएं निश्चित रूप से एक मुद्दा बनती हैं और मतदाताओं की राय को प्रभावित कर सकती हैं।
निष्कर्ष: एक घटना, कई गंभीर सबक
रीवा के चोरहटा थाने की घटना कई गंभीर सबक देती है। यह हमें बताती है कि राजनीतिक संरक्षण अपराध को कैसे बढ़ावा देता है, पुलिस को कैसे पंगु बनाता है और कानून के शासन को कैसे कमजोर करता है। एक महिला अधिकारी का अपमान समाज की मानसिकता पर सवाल खड़े करता है। अंततः, पुलिस ने दोनों पक्षों पर मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन सवाल जस का तस है: क्या असली दोषियों को सजा मिलेगी? क्या पुलिस को राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करने का माहौल मिलेगा? जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक चोरहटा जैसी घटनाएं होती रहेंगी और लोकतंत्र का मजाक बनता रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: रीवा के चोरहटा थाने में मुख्य विवाद किस बात को लेकर हुआ? A1: मुख्य विवाद कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा के खिलाफ एक युवक द्वारा लगाए गए मारपीट के आरोपों पर FIR दर्ज कराने की मांग को लेकर हुआ, जिसका नेतृत्व पूर्व भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी कर रहे थे।
Q2: इस घटना में मुख्य रूप से कौन-कौन शामिल थे? A2: इस घटना में पूर्व भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी, CSP रितु उपाध्याय, थाना प्रभारी आशीष मिश्रा, कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा और दो शिकायतकर्ता- अभिषेक तिवारी और अशोक तिवारी शामिल थे।
Q3: पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी ने महिला CSP को क्या कहा? A3: बहस के दौरान पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी ने CSP रितु उपाध्याय को "असंवेदनशील औरत" कहा और उन्हें अपनी नजरों से दूर हो जाने के लिए धमकाया।
Q4: पुलिस ने इस मामले में अंततः क्या कार्रवाई की? A4: पुलिस ने दोनों पक्षों की शिकायतों पर कार्रवाई की है। अभिषेक तिवारी की शिकायत पर विधायक अभय मिश्रा और अन्य के खिलाफ, और अशोक तिवारी की शिकायत पर अभिषेक तिवारी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
Q5: यह घटना महत्वपूर्ण क्यों है? A5: यह घटना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पुलिस पर राजनीतिक दबाव, कानून-व्यवस्था की स्थिति, एक महिला अधिकारी के सम्मान और सत्ता के दुरुपयोग जैसे गंभीर मुद्दों को एक साथ उजागर करती है।