रीवा में अधिकारियों का 'रील प्रेम' बनाम कर्तव्यनिष्ठा: तहसीलदार और खाद्य निरीक्षक का वीडियो वायरल, भ्रष्टाचार और लापरवाही के गंभीर आरोप

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में सरकारी अधिकारियों का सोशल मीडिया पर 'रील' बनाने का चलन एक बार फिर बड़े विवाद का केंद्र बन गया है, लेकिन इस बार मामला महज 'रील प्रेम' से कहीं बढ़कर भ्रष्टाचार, कर्तव्यनिष्ठा में कमी और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ के गंभीर आरोपों से जुड़ गया है। हाल ही में एक महिला टीआई के वीडियो के बाद डीजीपी के दिशानिर्देशों को धता बताते हुए, तहसीलदार यातीश शुक्ला और खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वे होटल चंद्रलोक में 'फिल्मी अंदाज' में नजर आ रहे हैं। इस घटना ने खाद्य विभाग के कामकाज और अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

'रील' बनाने गए थे या कार्रवाई करने? वीडियो पर गंभीर सवाल: सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में तहसीलदार यातीश शुक्ला और खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे को रीवा के चंद्रलोक होटल में प्रवेश करते और होटल के भीतर बातचीत करते हुए देखा जा सकता है। वीडियो में अधिकारियों का हाव-भाव और अंदाज ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे किसी फिल्मी दृश्य को फिल्मा रहे हों, जबकि दावा किया जा रहा है कि वे किसी आधिकारिक कार्रवाई के लिए वहां मौजूद थे। यह विरोधाभास ही लोगों के बीच चर्चा और संदेह का मुख्य कारण बना हुआ है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या अधिकारी वास्तव में नियमानुसार कार्रवाई करने गए थे, या उनका मुख्य उद्देश्य 'रील' बनाकर अपना जलवा दिखाना था?

खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे पर लापरवाही और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप: यह विवाद तब और गहरा गया है जब खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे पर लगातार मिल रही शिकायतों के बावजूद कार्रवाई न करने और आम जनता तथा मीडिया से दूरी बनाए रखने के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं।

  • मिलावटखोरी पर चुप्पी: सूत्रों के अनुसार, रीवा शहर में दूध, खोवा, पनीर, मिठाई और यहां तक कि बोतलबंद पानी जैसी आवश्यक वस्तुओं में बड़े पैमाने पर मिलावटखोरी धड़ल्ले से जारी है। मीडिया के माध्यम से और आम जनता द्वारा खाद्य विभाग को कई बार इस संबंध में जानकारी दी गई है।

  • शिकायतों की अनदेखी: आरोप है कि खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे अक्सर न तो फोन उठाते हैं, न ही जानकारी सुनते हैं और न ही व्हाट्सएप पर किसी संदेश का जवाब देते हैं। गंभीर परिस्थितियों या मिलावट की सूचना दिए जाने पर उनके द्वारा फोन नंबर ब्लॉक कर दिए जाने तक के आरोप हैं।

  • मासिक जांच का अभाव: नियमों के अनुसार, खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को हर महीने दूध, खोवा, पनीर और पानी की बोतलों की फैक्टरियों में जाकर नमूने लेने और उनकी जांच करनी चाहिए। गलत पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई और जुर्माना लगाया जाना चाहिए। लेकिन रीवा शहर में ऐसी कोई नियमित जांच या कार्रवाई देखने को नहीं मिलती है, जिससे मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हैं।

  • त्योहारी कार्रवाई का दिखावा: सूत्रों का कहना है कि खाद्य विभाग की 'कार्रवाई' केवल होली, दिवाली या किसी बड़े त्योहार से ठीक पहले महज औपचारिकता के तौर पर की जाती है, जबकि पूरे साल मिलावट का धंधा फल-फूल रहा होता है।

  • 'मामला मैनेज' करने के आरोप: कुछ सूत्रों तो यहां तक बताते हैं कि शिकायतें मिलने पर भी मामलों को 'मैनेज' कर लिया जाता है, जिससे वास्तविक दोषियों पर कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।

नियम, कानून और आचार संहिता का उल्लंघन: सरकारी अधिकारियों, विशेषकर खाद्य विभाग के अधिकारियों पर जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी होती है। इस प्रकार की लापरवाही और निष्क्रियता निम्नलिखित नियमों और सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन है:

  1. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (Food Safety and Standards Act, 2006): इस अधिनियम के तहत खाद्य अधिकारियों को खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने, गुणवत्ता सुनिश्चित करने और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा करने का अधिकार और कर्तव्य दिया गया है। कर्तव्यों का निर्वहन न करना इस अधिनियम का उल्लंघन है।

  2. सेवा आचरण नियम (Service Conduct Rules): ये नियम सरकारी कर्मचारियों से निष्ठा, ईमानदारी और कर्तव्यों के प्रति समर्पण की अपेक्षा करते हैं। भ्रष्टाचार, निष्क्रियता और सार्वजनिक शिकायतों की अनदेखी इन नियमों का सीधा उल्लंघन है।

  3. सार्वजनिक विश्वास का हनन (Breach of Public Trust): जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा विभाग यदि अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं करता है और केवल 'रील' बनाने में व्यस्त रहता है, तो यह जनता के विश्वास का गंभीर हनन है।

  4. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश: न्यायपालिका ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि लोकसेवकों को अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करना चाहिए और किसी भी प्रकार की निष्क्रियता या भ्रष्टाचार से बचना चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर जनता के अधिकारों और जीवन को प्रभावित करता है।

क्या ऐसे अधिकारियों की शहर को जरूरत है? यह सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसे अधिकारी, जो अपनी मूल जिम्मेदारियों से विमुख होकर केवल 'रील' बनाने और 'जलवा' दिखाने में रुचि रखते हैं, शहर के लिए आवश्यक हैं? जब शहर में मिलावटखोरी चरम पर हो और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा हो, तब ऐसे अधिकारियों का पद पर बने रहना उनकी वेतन पर भी सवालिया निशान लगाता है। पूरा खाद्य विभाग सोया हुआ प्रतीत होता है, जबकि आम नागरिक स्वच्छ और सुरक्षित भोजन तथा पानी के लिए संघर्ष कर रहा है।

मांग - सख्त कार्रवाई: इस वायरल वीडियो और खाद्य निरीक्षक अमरेश दुबे पर लगे गंभीर आरोपों के बाद, अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि इन अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। न केवल 'रील' बनाने के लिए, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों की अनदेखी करने और भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि रीवा की जनता को सुरक्षित खाद्य पदार्थ मिल सकें और अधिकारियों की जवाबदेही तय हो सके।

रीवा न्यूज़ मीडिया इस वायरल वीडियो की पुष्टि नहीं करता है। यह वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से वायरल हो रहा है और इस पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।