फर्जी खातों का ‘जाल’, ब्याज से ‘माल’! रीवा में सरकारी अफसरों ने 200 करोड़ खाए , IAS और एसडीएम की गर्दन पर लटकी तलवार!
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा, मध्य प्रदेश के विकास के साथ-साथ एक बड़े वित्तीय घोटाले का केंद्र बनकर उभरा है। यह घोटाला भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) से जुड़ी करीब 200 करोड़ रुपये की राशि के दुरुपयोग का है। दरअसल, सरकार ने रीवा में रेलवे, एयरपोर्ट और सड़क जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए किसानों की ज़मीनें अधिग्रहित की थीं। इन ज़मीनों के बदले किसानों को मुआवजा देने के लिए भारी-भरकम राशि जिला प्रशासन को भेजी गई थी। आरोप है कि तत्कालीन कलेक्टरों, भूअर्जन अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस राशि को किसानों तक पहुंचाने के बजाय, उनके नाम पर फर्जी (डमी) खाते खुलवाकर निजी बैंकों में जमा कर दिया। इन खातों में जमा राशि से मिलने वाले ब्याज का उपयोग वे अपनी निजी जरूरतों के लिए करते रहे। इस तरह सालों तक सरकारी खजाने से आए पैसों को घुमाया जाता रहा और ब्याज से मौज-मस्ती की जाती रही।
कैसे हुआ इस बड़े घोटाले का खुलासा?
इस बड़े घोटाले का खुलासा एक छोटी सी घटना से हुआ। एसडीएम कार्यालय (SDM Office) में कार्यरत भूअर्जन बाबू बृजमोहन पटेल ने एक फर्जी नोटशीट (fake note sheet) के जरिए सीज की गई भूमि को एक निजी व्यक्ति के नाम कर दिया। जब यह मामला पकड़ा गया तो बाबू फरार हो गया। इसके बाद, जांच के दौरान उसकी अलमारी और दराज से किसानों के नाम पर खोली गई फर्जी पासबुक (fake passbooks) और खातों के दस्तावेज मिले। जब इन खातों की जांच शुरू हुई तो अधिकारियों के होश उड़ गए। पता चला कि ये खाते सालों से भूमि अधिग्रहण (Land acquisition) की करोड़ों की राशि को जमा करने और घुमाने के लिए इस्तेमाल हो रहे थे। हुजूर एसडीएम वैशाली जैन ने इस मामले की गहराई से जांच की और अपनी रिपोर्ट कलेक्टर (Collector) को सौंपी, जिसके बाद यह पूरा फर्जीवाड़ा सामने आया।
सरकारी अधिकारियों और निजी बैंकों की भूमिका कैसे थी?
इस घोटाले में सिर्फ सरकारी अधिकारी ही नहीं, बल्कि कुछ निजी बैंकों की मिलीभगत भी सामने आई है। साल 2015 में ही शासन ने सभी सरकारी भूअर्जन राशियों को कलेक्टर के मुख्य खाते (Collector's main account) में रखने और निजी बैंकों में खाते खोलने पर रोक लगा दी थी, लेकिन इस निर्देश को नजरअंदाज किया गया। आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) करहिया और जॉन टॉवर, साथ ही एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) जैसे कई बैंकों में बड़ी मात्रा में यह राशि जमा की गई थी। जांच के दौरान पता चला कि इन बैंकों में किसानों के करीब 200 डमी खाते (dummy accounts) खोले गए थे। इन खातों में करोड़ों रुपये जमा थे और इनके ब्याज से अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को फायदा पहुंच रहा था। कुछ बैंकों ने तो जांच के दौरान यह भी खुलासा किया कि ब्याज की राशि पहले ही निकाल ली गई थी, जिससे इस पूरे खेल की गंभीरता और बढ़ जाती है।
जांच और कार्रवाई की स्थिति क्या है?
घोटाला सामने आने के बाद कलेक्टर (Collector) ने एक तीन सदस्यीय टीम (three-member team) का गठन किया, जिसमें एसडीएम वैशाली जैन, जिला कोषालय अधिकारी पुष्पेन्द्र शुक्ला और एलडीएम रीवा शामिल थे। इस टीम ने अपनी जांच पूरी कर कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता का खुलासा हुआ। कलेक्टर ने तुरंत इस मामले में प्रकरण दर्ज (file a case) करने के लिए रिपोर्ट एसपी रीवा (SP Rewa) को भेजी। हालांकि, एसपी ने इसे आर्थिक अपराध का मामला बताते हुए पुलिस थाने में दर्ज करने से इनकार कर दिया। इसके बाद, इस पूरे मामले को विस्तृत जांच और एफआईआर (FIR) दर्ज करने के लिए आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) को सौंप दिया गया है। ईओडब्लू (EOW) अब इस मामले में शामिल आईएएस अधिकारियों, एसडीएम, भूअर्जन अधिकारियों और बैंक कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की तैयारी कर रही है।
सेड्रीज से भी बड़ा क्यों है यह घोटाला?
सेड्रीज घोटाला (Sandridge scam), जो अब तक मध्य प्रदेश के बड़े घोटालों में गिना जाता था, उससे रीवा का यह घोटाला कई गुना बड़ा और गंभीर है। सेड्रीज मामले में वित्तीय अनियमितता की राशि रीवा के इस घोटाले की तुलना में काफी कम थी। रीवा में करीब 200 करोड़ रुपये (approx. ₹200 crores) की सरकारी राशि को सुनियोजित तरीके से फर्जी खातों में रखा गया और उसका दुरुपयोग किया गया। यह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि अधिकारियों के एक बड़े समूह का काम प्रतीत होता है, जिसमें शीर्ष स्तर के अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं। इस घोटाले की जड़ें काफी गहरी हैं क्योंकि यह सिर्फ पैसों के हेरफेर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सरकारी नियमों को दरकिनार करना, किसानों के नाम पर फर्जीवाड़े करना और बैंकों की मिलीभगत भी शामिल है। यही कारण है कि यह घोटाला सेड्रीज से भी कहीं अधिक व्यापक और चौंकाने वाला है।