एक अधिकारी, चार विभाग: कहीं ये भ्रष्टाचार का नया तरीका तो नहीं? रीवा के रोजगार अधिकारी अनिल दुबे ने बनाया ऐसा रिकॉर्ड कि पूरा प्रशासन हिल गया!
रीवा के रोजगार अधिकारी अनिल दुबे ने बनाया ऐसा रिकॉर्ड कि पूरा प्रशासन हिल गया! भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, फिर भी सरकार मेहरबान।
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे प्रदेश के प्रशासनिक ढांचे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक अधिकारी ने पदस्थापना का एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया है, जिसे सुनकर सभी के होश उड़ जाएंगे। जिला रोजगार अधिकारी अनिल दुबे पिछले 15 सालों से भी अधिक समय से एक ही पद पर जमे हुए हैं। उनके पैर इतने गहरे जम गए हैं कि उन्हें कोई भी हिला नहीं पा रहा। सरकार के सभी स्थानांतरण नियम उन पर बेअसर साबित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे कुछ अधिकारी अपनी पहुंच और 'मैनेजमेंट' के दम पर नियमों को ताक पर रखकर सालों तक एक ही जगह पर बने रहते हैं। यह मामला भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
क्यों 15 सालों से एक ही जगह पर टिके हैं अनिल दुबे?
आम तौर पर, सरकारी अधिकारियों का हर 3-5 साल में तबादला होता है, ताकि वे एक ही जगह पर ज्यादा समय तक न रहें और भ्रष्टाचार की संभावना कम हो। लेकिन अनिल दुबे के मामले में यह नियम कहीं भी लागू नहीं होता। सूत्रों के अनुसार, उनकी इस अटूट पदस्थापना के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण उनकी 'मैनेजमेंट' क्षमता है। वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों को खुश रखने में माहिर हैं और 'हां में हां' मिलाकर अपना काम निकलवा लेते हैं। वे न सिर्फ अपने विभाग, बल्कि रीवा के सभी प्रभावशाली लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए हैं, जिससे उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता। उनकी यह 'अंगद' वाली स्थिति ने यह साबित कर दिया है कि अगर आपका नेटवर्क मजबूत है, तो आप सरकारी नियमों को भी धता बता सकते हैं।
एक अधिकारी, चार विभाग: कहीं ये भ्रष्टाचार का नया तरीका तो नहीं?
अनिल दुबे की कहानी सिर्फ एक जगह पर टिके रहने तक सीमित नहीं है। उन्हें एक के बाद एक तीन और महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। रीवा के रोजगार अधिकारी होने के साथ-साथ उनके पास अब योजना एवं सांख्यिकी, सामाजिक न्याय विभाग, और श्रम विद्यालय का भी अतिरिक्त प्रभार है। यह बात अपने आप में ही चौंकाने वाली है कि क्या रीवा में कोई और योग्य अधिकारी नहीं है? या फिर यह एक सोची-समझी रणनीति है? इन सभी विभागों में भारी मात्रा में बजट आता है, जिस पर आमतौर पर किसी का ध्यान नहीं जाता। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि दुबे इन विभागों के बजट को धीरे-धीरे 'दीमक' की तरह चट कर रहे हैं। इन विभागों का एक साथ प्रभार देना इस बात का संकेत है कि शायद यह भ्रष्टाचार को अंजाम देने का एक नया तरीका है, जहां एक ही व्यक्ति कई मोर्चों पर काम कर रहा है।
रोजगार मेला: जहां युवाओं को ठगा जा रहा है
अनिल दुबे का मूल विभाग रोजगार कार्यालय है, जिसका काम युवाओं को रोजगार दिलाना है। लेकिन उनके कार्यकाल में यह विभाग सिर्फ दिखावे का बनकर रह गया है। सरकार हर महीने रोजगार मेले के नाम पर लाखों रुपए खर्च करती है, लेकिन रोजगार के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। कई युवाओं ने शिकायत की है कि उन्हें नौकरी मिली ही नहीं, जबकि सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें रोजगार प्राप्त दिखाया गया है। कुछ युवाओं को नौकरी मिली भी तो ऐसी कंपनियों में, जहां की स्थितियां ठीक नहीं थीं और वे जल्द ही वापस आ गए। यह सब बताता है कि रोजगार मेले का पैसा कहां जा रहा है। युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे अधिकारी पर क्यों कोई कार्रवाई नहीं हो रही, यह एक बड़ा सवाल है।
सामाजिक न्याय विभाग और योजना सांख्यिकी में क्या चल रहा है?
अनिल दुबे के पास सामाजिक न्याय विभाग का भी प्रभार है। यह विभाग कन्या विवाह जैसे महत्वपूर्ण आयोजन कराता है और एनजीओ को फंड देता है। इस विभाग का बजट भी बहुत बड़ा होता है और यहां भी भ्रष्टाचार की गुंजाइश अधिक होती है। इसके अलावा, योजना और सांख्यिकी विभाग की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है, जहां से विधायक और सांसद निधि के कार्यों को हरी झंडी मिलती है। यह विभाग भी सीधे तौर पर पैसों के लेन-देन से जुड़ा हुआ है। जब एक ही व्यक्ति के पास इतने महत्वपूर्ण विभाग होते हैं, तो यह सीधे तौर पर यह इशारा करता है कि पारदर्शिता और नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
श्रम स्कूलों का घोटाला और अनिल दुबे का कनेक्शन
अनिल दुबे के कार्यकाल में श्रम स्कूलों से जुड़ा एक बड़ा घोटाला भी हुआ था। इस घोटाले के बाद कई श्रम स्कूल बंद हो गए थे और ठेकेदारों पर मामले भी दर्ज हुए थे। हालांकि, उस समय भी अनिल दुबे पर कोई आंच नहीं आई। यह दिखाता है कि उनकी पहुंच और प्रभाव कितना मजबूत है। एक ऐसा अधिकारी जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों और जिसके कार्यकाल में बड़े घोटाले हुए हों, उसे और भी विभागों का प्रभार देना यह साबित करता है कि कोई न कोई बड़ा हाथ उनके ऊपर जरूर है।
उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंची शिकायत
इस पूरे मामले को लेकर एक सामाजिक संगठन, रूपन बारी समाज सेवा संगठन, ने मुख्यमंत्री और अपर मुख्य सचिव से शिकायत की है। शिकायत में साफ तौर पर कहा गया है कि अनिल दुबे 15-20 सालों से रीवा में जमे हैं और उन पर कोई नियम लागू नहीं होता। संगठन ने सवाल उठाया है कि क्या रीवा में कोई और योग्य अधिकारी नहीं है? या फिर जानबूझकर अनिल दुबे को इस पद पर बनाए रखा गया है? उन्होंने यह भी मांग की है कि अगर उन पर नियम लागू नहीं होते, तो यह नियम सभी अधिकारियों पर लागू कर दिया जाए। अब देखना यह है कि क्या मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री इस शिकायत पर ध्यान देते हैं या फिर यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
निष्कर्ष: क्या सरकार की चुप्पी बनी रहेगी?
अनिल दुबे का मामला रीवा में प्रशासनिक व्यवस्था का एक स्याह पक्ष दिखाता है। यह दिखाता है कि कैसे कुछ अधिकारियों का नेटवर्क इतना मजबूत होता है कि वे भ्रष्टाचार करते हुए भी बेखौफ रहते हैं। अब जबकि यह मामला उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री तक पहुंच गया है, तो क्या सरकार इस पर कोई कार्रवाई करेगी? या फिर अनिल दुबे अपने 'अंगद' जैसे पैरों के साथ एक ही जगह पर बने रहेंगे? रीवा और पूरे प्रदेश की जनता इस मामले पर सरकार की तरफ से जवाब का इंतजार कर रही है।