रीवा में 'काले शीशों' का राज: रसूखदार अधिकारी क्यों कर रहे हैं नियमों का उल्लंघन? प्रेशर हॉर्न पर भी एक्शन, पर क्या ये नियमित होगा? पुलिस की कार्रवाई सिर्फ 'फोटोबाजी'?
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर की यातायात व्यवस्था इन दिनों शासकीय विभागों के नाम की गाड़ियों के चलते मजाक बनकर रह गई है। राजस्व विभाग, खनिज विभाग, PWD, आबकारी, शिक्षा विभाग, नगर निगम, स्वास्थ्य और अन्य विभागों के नाम गाड़ियों के बोनट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवाकर, रसूखदार अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा धड़ल्ले से यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
इन वाहनों की पहचान है काली (ब्लैक) फिल्म, जिससे कार के शीशे पूरी तरह से पैक कर दिए जाते हैं, जो कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यह केवल एक नियम उल्लंघन नहीं, बल्कि सुरक्षा का गंभीर मुद्दा भी है।
- निजी या संदिग्ध कार्य: बताया जाता है कि ये गाड़ियां जिनके नाम पर सरकारी विभाग लिखा होता है, उनका उपयोग अक्सर इन अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा निजी कार्यों या कई बार संदिग्ध गतिविधियों के लिए किया जाता है। ब्लैक फिल्म उन्हें नियमों से परे जाकर कार्य करने की छूट देती है।
- धौंस जमाने का तरीका: सरकारी नाम लिखा होने से ये वाहन चेकिंग से आसानी से बच जाते हैं, क्योंकि ट्रैफिक पुलिसकर्मी अकसर ऐसे वाहनों को रोककर विवाद मोल लेना नहीं चाहते। यह केवल धौंस जमाने और नियमों को तोड़ने का लाइसेंस लेने का एक तरीका बन चुका है।
यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मध्य प्रदेश, और विशेष रूप से रीवा में, यातायात नियम-कानून केवल आम जनता के लिए हैं, जबकि प्रभावशाली वर्ग स्वयं को कानून से ऊपर समझता है।
पुलिस की 'फोटोबाजी' कार्यवाही और नियमित कार्रवाई क्यों नहीं होती?
रीवा यातायात पुलिस ने आज, इस मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाए हैं। जयस्तंभ चौराहे पर एक ऐसी गाड़ी को पकड़ा गया, जिसके बोनट पर 'राजस्व विभाग' लिखा था और वह चारों तरफ से ब्लैक फिल्म से पैक थी।
जब पुलिस ने वाहन चालक से पूछताछ की, तो उसने तुरंत गाड़ी को राजस्व विभाग की बताकर धौंस जमाने की कोशिश की। हालांकि, यातायात पुलिस ने बिना देरी किए चालान काट दिया।
कार्यवाही की नियमितता पर सवाल
दुर्भाग्यवश, इस तरह की कार्यवाही अक्सर केवल फोटोबाजी या मीडिया में किरकिरी होने के बाद की जाने वाली तात्कालिक प्रतिक्रिया तक ही सीमित रह जाती है।
- मनमानी की जड़: स्थानीय लोगों और खुद पुलिस अधिकारियों का मानना है कि नियमित रूप से कार्यवाही न होने की वजह से ही इस तरह की मनमानी और स्थिति निर्मित होती है। जब तक कानून का डर और सतत निगरानी नहीं होगी, तब तक 'नियम सबके लिए समान है' की अवधारणा लागू नहीं हो सकती।
- प्रेशर हॉर्न का हाल: एक साल से अधिक समय तक बसों के तेज प्रेशर हॉर्न पर कोई कार्यवाही न होने के कारण स्थिति बद से बदतर हो गई थी। हॉर्न प्रदूषण की यह स्थिति तब बिगड़ी जब मीडिया में किरकिरी हुई, जिसके बाद यातायात पुलिस ने आनन-फानन में लगभग 7 बसों पर चालानी कार्यवाही की।
यातायात प्रभारी अनिमा शर्मा ने बताया है कि वरिष्ठ अधिकारियों से प्रेशर हॉर्न पर सख्त कार्यवाही के निर्देश मिले हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए कड़ी वैधानिक कार्यवाही की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि निर्देशों का इंतजार क्यों करना पड़ता है?
भारत में यातायात व्यवस्था कैसे सुधारे: नियम सबके लिए समान क्यों नहीं?
यातायात व्यवस्था किसी भी देश की नागरिक सभ्यता का प्रतीक होती है। आज भारत के अलावा, अन्य विकसित देशों की ट्रैफिक व्यवस्था कितनी अच्छी है इसका कारण यह है कि वहाँ नियम-कानूनों का पालन समान रूप से किया जाता है। खास कर मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां 'वीआईपी कल्चर' हावी है, वहां कोई नियम-कानून या ट्रैफिक व्यवस्था नहीं है।
यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए आवश्यक कदम
- समान नियम लागूकरण: सबसे पहले, नियम सबके लिए समान हों। चाहे वह राजस्व विभाग का अधिकारी हो या आम नागरिक, ब्लैक फिल्म या प्रेशर हॉर्न के लिए जुर्माना और कार्रवाई तत्काल और निष्पक्ष होनी चाहिए।
- स्वचालित चालान (E-Challan): चौराहों पर लगे कैमरों के माध्यम से स्वचालित चालान की व्यवस्था को मजबूत किया जाए, ताकि पुलिसकर्मी और वाहन चालक के बीच सीधा संवाद ही न हो।
- जन जागरूकता: आम जनता और अधिकारियों दोनों को यातायात नियमों के महत्व और सुरक्षा के प्रति जागरूक करना।
- कर्मचारियों की ट्रेनिंग: पुलिसकर्मियों को रसूखदारों के दबाव में न आने और निष्पक्ष कार्यवाही करने के लिए प्रशिक्षित करना।
जिस दिन पुलिस यह संदेश देने में सफल हो जाएगी कि कानून से बड़ा कोई पद या विभाग नहीं है, उसी दिन रीवा सहित पूरे MP की यातायात व्यवस्था में सुधार दिखना शुरू हो जाएगा।