रीवा अनुकंपा घोटाला: 10 लाख की डील, विधायक कनेक्शन और पुलिस की ढिलाई! बृजेश कोल केस में बड़ा खुलासा, क्या गैंग के सरगना तक पहुंचेगी जाँच की आंच?
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) कार्यालय में हुए बहुचर्चित अनुकंपा नियुक्ति घोटाले में एक नया और सनसनीखेज मोड़ आ गया है. बृजेश कोल के पिता द्वारा पुलिस अधीक्षक (SP) को लिखे गए एक पत्र ने इस पूरे मामले में एक 'दलाल' के नाम का खुलासा किया है, जिसने नौकरी दिलाने के नाम पर 10 लाख रुपये लेने का आरोप है. हालांकि, इस गंभीर खुलासे के बावजूद, पुलिस की ढीली कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं.
दलाल का नाम उजागर, पुलिस की चुप्पी पर सवाल
बृजेश कोल के पिता ने अपने आवेदन में स्पष्ट रूप से एक दलाल का नाम और पता बताया है, जिसने उनके बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिलाने के एवज में 10 लाख रुपये लिए थे. इस पत्र की कॉपी जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जांच अधिकारी, सिविल लाइन थाना प्रभारी को सौंपी गई है. बावजूद इसके, यह आरोप लग रहा है कि पुलिस अधिकारी मामले में कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं और न ही दलाल को पकड़ने की कोई कोशिश की जा रही है.
विधायक कनेक्शन और जांच पर ग्रहण!
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस दलाल के पीछे एक "बड़े विधायक" का हाथ बताया जा रहा है, जिसके इशारे पर पुलिस किसी भी तरह की कार्यवाही करने से हिचकिचा रही है. यह आरोप गंभीर सवाल खड़े करता है कि क्या राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डालना चाहती है, जिससे असली गुनहगारों तक पहुंचा न जा सके?
गंगा उपाध्याय के कार्यकाल की 'फर्जी नियुक्तियां' भी आएंगी सामने?
बृजेश कोल के पिता द्वारा दलाल का जो पता बताया गया है, यदि उस पर दलाल को गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो इस घोटाले की परतें और भी खुल सकती हैं. आशंका जताई जा रही है कि तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी गंगा उपाध्याय के कार्यकाल की और भी फर्जी नियुक्तियां उजागर हो सकती हैं. वर्तमान में गंगा उपाध्याय के कार्यकाल की केवल एक ही अनुकंपा नियुक्ति मिली है, लेकिन दलाल की गिरफ्तारी से यह खुलासा हो सकता है कि क्या उनके कार्यकाल में भी बड़े पैमाने पर फर्जी नियुक्तियां हुईं? यह एक गंभीर आरोप है जो विस्तृत जांच की मांग करता है.
अनुकंपा नियुक्तियों में 10 लाख की वसूली: एक बड़ा रैकेट?
इस मामले में न केवल अनियमितताओं का आरोप है, बल्कि नौकरी के लिए 10 लाख रुपये की वसूली सीधे तौर पर भ्रष्टाचार और संगठित अपराध की ओर इशारा करती है. यदि यह दलाल वास्तव में सक्रिय था और बड़े राजनैतिक संरक्षण में काम कर रहा था, तो यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं बल्कि एक बड़े रैकेट का हिस्सा हो सकता है जो योग्य उम्मीदवारों के हक़ मारकर अवैध कमाई कर रहा था.
पुलिस पर दबाव या मिलीभगत?
पुलिस की कथित निष्क्रियता पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं:
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क्या पुलिस पर दलाल को गिरफ्तार न करने का कोई दबाव है?
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क्या इस मामले में कोई उच्च-स्तरीय मिलीभगत है?
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क्या जांच अधिकारी जानबूझकर मामले को लंबा खींच रहे हैं?
यह घटना रीवा के शिक्षा विभाग और पुलिस प्रशासन दोनों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाती है. जनता को इस पूरे मामले में निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई की उम्मीद है, ताकि दोषियों को सज़ा मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों.