कुर्सी-प्रेम बनाम जन-हित: रीवा में सड़क चौड़ीकरण की योजना फेल!— नोटिस बेअसर, अधिकारी गायब, जनता क्यों भुगते जाम का दंश?

 
सिरमौर चौराहे से अस्पताल चौक तक रोज़ाना मौत का रास्ता! दुकानदारों ने सड़क पर किया कब्जा, सालों से मिल रही नोटिसें भी बेअसर—एंबुलेंस निकलना असंभव

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर का अमाहिया क्षेत्र, जो उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल का गृह और राजनीतिक प्रभाव का केंद्र माना जाता है, आज यातायात के भयंकर जाम और खुले अतिक्रमण का पर्याय बन चुका है। एक वायरल वीडियो इस भयावह स्थिति का प्रमाण है, जहाँ गाड़ियों की लंबी कतारें और पैर रखने तक की जगह नहीं है।

दैनिक मौत का रास्ता

  • भयंकर कंजेशन: सिरमौर चौराहा से अंदर अमाहिया होते हुए अस्पताल चौराहा तक जाने वाले इस महत्वपूर्ण मार्ग पर सालों-साल से यही हाल बना हुआ है।
  • दुकानदारों का कब्जा: वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि ज्यादातर दुकानदारों ने सड़क पर ही कब्जा कर लिया है। सड़क की आधी चौड़ाई पर तो दुकानें लगती हैं, जबकि बाकी हिस्सा वाहनों से भरा रहता है।
  • एंबुलेंस का संकट: यह जाम इतना विकराल होता है कि अगर गंभीर मरीज़ को लेकर कोई एंबुलेंस इस रास्ते से गुजरना चाहे, तो उसका निकलना लगभग असंभव है। यह सीधे तौर पर जनता के जीवन से खिलवाड़ है।

प्रशासनिक लापरवाही: नोटिसें बेअसर, कार्रवाई शून्य
यह स्थिति सिर्फ ट्रैफिक जाम की नहीं, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता की भी कहानी कहती है। स्थानीय प्रशासन और नगर निगम, जिसके पास अतिक्रमण हटाने का अधिकार है, की कार्रवाई इस क्षेत्र में पूरी तरह से शून्य रही है।

सड़क चौड़ीकरण की योजना और दुकानदारों की मनमानी
चौड़ीकरण की योजना: यह क्षेत्र सड़क चौड़ीकरण की महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत आता है, जिसके लिए दुकानदारों को नोटिस भी दिए जा चुके हैं और उन्हें अपनी दुकानें खाली करने को कहा गया है।

  • नोटिसें क्यों बेअसर?: सालों-साल से नोटिस दिए जाने के बावजूद आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि या तो अतिक्रमणकारियों को स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, या फिर प्रशासनिक अधिकारियों में कठोर कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति नहीं है।
  • स्थानीय प्रभाव: चूंकि यह क्षेत्र स्वयं उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के प्रभाव क्षेत्र में आता है, इसलिए यह सवाल उठता है कि इतने बड़े वीआईपी नेता के क्षेत्र में ही अतिक्रमणकारी इतने बेखौफ कैसे हैं कि सालों से नोटिसों को दरकिनार कर रहे हैं।

निष्कर्ष: राजनीति बनाम जन-हित
अमाहिया का यह जाम और अतिक्रमण, रीवा शहर की यातायात समस्या का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुका है। यह सिद्ध करता है कि बड़े विकास की योजनाएँ (जैसे सड़क चौड़ीकरण) भी प्रशासनिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक दबाव के आगे दम तोड़ देती हैं।

रीवा प्रशासन और उप-मुख्यमंत्री दोनों के लिए यह एक गंभीर चुनौती है कि वे जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्राथमिकता दें। इस मार्ग पर दैनिक आधार पर ट्रैफिक पुलिस की तैनाती और सख्त अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाना समय की मांग है, न कि सिर्फ फोटो और खबर छपवाकर गायब हो जाना। इस मार्ग को एंबुलेंस के लिए सुरक्षित बनाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।