रीवा शिक्षा विभाग में 'बड़ा धमाका'! रीवा डाइट प्राचार्य से 11 लाख 44 हजार की वसूली से हिला पूरा महकमा, सरकार की बड़ी कार्रवाई से मचा हड़कंप!
तत्कालीन सतना डीईओ (वर्तमान डाइट प्राचार्य) टी.पी. सिंह पर आयुक्त लोक शिक्षण का सख्त एक्शन। बिना जांच के शिक्षक को बहाल करने पर 20 महीने का वेतन अब ब्याज सहित जेब से भरेंगे।
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के शिक्षा जगत में एक बड़ी खबर ने हड़कंप मचा दिया है। वर्तमान डाइट प्राचार्य टी.पी. सिंह पर आयुक्त लोक शिक्षण ने एक सख्त कार्रवाई की है। यह मामला उनके सतना में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) रहते हुए एक सहायक शिक्षक की गलत बहाली से जुड़ा है। इस गलती की कीमत अब उन्हें अपनी जेब से 11 लाख 44 हजार रुपए भरकर चुकानी होगी। यह कार्रवाई उन अधिकारियों के लिए एक बड़ा सबक है जो नियमों को ताक पर रखकर मनमाने फैसले लेते हैं।
11.44 लाख की वसूली: मामला क्या है?
यह पूरा मामला वर्ष 2010-11 का है, जब टी.पी. सिंह सतना में प्रभारी डीईओ के पद पर थे। उन्होंने सहायक शिक्षक राकेश कुमार मिश्रा की सेवाएं समाप्त कर दी थीं। इसके बाद राकेश कुमार मिश्रा ने एक आवेदन दिया, जिस पर टी.पी. सिंह ने बिना किसी विभागीय जांच के, 29 अगस्त 2010 को उनकी सेवाएं बहाल कर दीं। इस गलत बहाली के कारण राकेश कुमार मिश्रा को 20 महीने का वेतन भुगतान किया गया, जिसकी राशि 4 लाख 19 हजार 192 रुपए थी। अब लोक शिक्षण आयुक्त ने इस राशि को ब्याज सहित वसूलने का आदेश दिया है, जो बढ़कर 11 लाख 44 हजार 477 रुपए हो गई है।
बिना जांच के शिक्षक को बहाल करने की गलती
आयुक्त लोक शिक्षण के आदेश में साफ कहा गया है कि तत्कालीन डीईओ टी.पी. सिंह ने लोक सेवक राकेश कुमार मिश्रा को बहाल करने से पहले किसी भी तरह की विभागीय जांच नहीं कराई। इतना ही नहीं, उन्होंने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी नहीं दी। यह सीधा-सीधा नियमों का उल्लंघन था, जिसकी वजह से सरकार को 20 महीने का वेतन भुगतान करना पड़ा। इस गंभीर लापरवाही को देखते हुए ही उन पर यह कठोर कार्रवाई की गई है।
विधानसभा तक पहुंचा मामला और जांच
टी.पी. सिंह द्वारा बिना जांच के की गई इस बहाली ने तूल पकड़ लिया और यह मामला मध्य प्रदेश विधानसभा तक पहुंच गया। विधानसभा में तारांकित प्रश्न क्रमांक 3225 के तहत इस मामले की जांच के आदेश दिए गए। जब जांच हुई, तो संचालनालय ने वर्तमान डाइट प्राचार्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा, लेकिन उनका जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया। इसी के बाद आयुक्त शिल्पा गुप्ता ने टी.पी. सिंह पर जुर्माने की यह बड़ी कार्रवाई की है।
'बोलता हुआ आदेश' बना गले की फांस
सबसे दिलचस्प बात यह है कि टी.पी. सिंह ने 1 मई 2010 को कोर्ट के आदेश के बाद एक 'बोलता हुआ आदेश' जारी कर राकेश कुमार मिश्रा की सेवाएं समाप्त की थीं, लेकिन 29 अगस्त 2010 को उन्हीं के आवेदन पर बिना जांच के उन्हें बहाल भी कर दिया। यह आदेश ही उनके गले की फांस बन गया। इस एक फैसले ने न सिर्फ एक सरकारी अधिकारी की लापरवाही को उजागर किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि नियम-कानूनों की अनदेखी करने पर सख्त सजा भी मिल सकती है।
निष्कर्ष: गलती की कीमत, जनता का पैसा वापस
टी.पी. सिंह पर हुई यह कार्रवाई एक स्पष्ट संदेश देती है कि सरकारी पदों पर बैठे अधिकारियों को अपने फैसलों में पूरी पारदर्शिता और नियमों का पालन करना होगा। यह राशि सरकार की नहीं, बल्कि जनता की है और किसी भी अधिकारी को इसे बर्बाद करने का अधिकार नहीं है। 11 लाख 44 हजार की यह वसूली न सिर्फ एक अधिकारी को सबक सिखाएगी, बल्कि अन्य अधिकारियों को भी नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगी।