रीवा में बाढ़ नहीं, 'भ्रष्टाचार' का पानी भरा! गरीबों का आशियाना तोड़ा, माफिया को बख्शा: रीवा में बाढ़ नहीं, 'दोहरे मापदंड' का सैलाब!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर एक बार फिर बाढ़ की चपेट में आ गया है, और इसके पीछे सीधे तौर पर नदियों पर कॉलोनाइजरों का बढ़ता अतिक्रमण जिम्मेदार है। बीहर नदी पर बनी एक कॉलोनाइजर की मोटी दीवार ने न केवल गुढ़ विधायक नागेंद्र सिंह के घर को डुबो दिया, बल्कि पूरे रीवा शहर में बाढ़ ला दी। बोदाबाग जैसे इलाके भी डूबने की कगार पर पहुँच गए थे और सड़कें जलमग्न हो चुकी थीं। अगर थोड़ी और बारिश होती तो पूरा रीवा ही पानी में डूब जाता। यह भयावह स्थिति कहीं न कहीं जिला प्रशासन और कॉलोनाइजरों की मिलीभगत का ही नतीजा मानी जा रही है, क्योंकि अगर पहले ही नदी पर बनी अवैध दीवारों और कॉलोनियों पर सख्ती से बुलडोजर चला दिया जाता तो आज ये हालात पैदा न होते।
बाढ़ का तांडव: कैसे एक दीवार ने रोका बीहर का बहाव?
रीवा में साल 2016 में भी भीषण बाढ़ आई थी, जब कहीं ज्यादा पानी गिरने के बावजूद शहर में इतना जलभराव नहीं हुआ था। तब भी नदियों के किनारे किए गए अतिक्रमण को ही मुख्य वजह माना गया था। लेकिन अब हालात और भी विकराल हो गए हैं। कॉलोनाइजरों ने नदियों को पाटकर उन पर कॉलोनियां बना डाली हैं, और नदियों की ज़मीन के किनारे तक प्लाटिंग कर दी है।
एक कॉलोनाइजर ने तो हद ही कर दी। उसने बीहर नदी पर ही एक मोटी दीवार खड़ी कर दी है। अब यही दीवार रीवा में हर थोड़ी बारिश के बाद आने वाली बाढ़ का सबसे बड़ा कारण बन रही है। बोदाबाग-करहिया पुलिस चौकी के पास नदी इस दीवार के कारण संकरी हो गई है। नदी का रास्ता इतना संकरा हो गया है कि पानी को आगे बढ़ने की जगह नहीं मिल पा रही है। एक तरफ यह विवादित दीवार है, तो दूसरी तरफ भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का फार्म हाउस बना हुआ है। कॉलोनाइजर द्वारा पहले से ही पानी को रोकने के लिए किनारे पर खड़ी की गई दीवार के कारण शुक्रवार और शनिवार को हुई बारिश का पानी आगे नहीं बढ़ पाया। नदी का रास्ता संकरा होने से पानी बैक मारने लगा, जिसकी मार शहर के कई बड़े लोगों के साथ-साथ आम मोहल्लेवासियों को भी झेलनी पड़ी। इस गंभीर खतरे और लापरवाही को प्रशासन अब भी नजरअंदाज कर रहा है, और यह मिलीभगत रीवा वालों को बार-बार डूबने की कगार पर ला रही है।
एसडीएम की कार्रवाई के बाद भी 'शांति विला' पर क्यों नहीं हुई पूरी कार्रवाई?
कुछ समय पहले, एसडीएम हुजूर आईएएस वैशाली जैन ने शांति विला कॉलोनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की थी। उन्होंने मौके पर पहुँचकर इस कॉलोनी के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी थी। साथ ही, करहिया ग्राम पंचायत के सचिव और सरपंच के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश दिए थे, क्योंकि शांति विला बिना किसी विधिवत अनुमति के बसाई गई थी। कॉलोनी बसाने के लिए न तो विधिवत अनुमति ली गई थी और न ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के नियमों का पालन किया गया था। इस कॉलोनी को रेरा (RERA) की अनुमति भी नहीं मिली थी।
आईएएस वैशाली जैन तब जेसीबी लेकर मौके पर पहुंची थीं और कुछ तोड़फोड़ भी की थी। इसके बाद उन्होंने सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगाकर चेतावनी दी थी और लौट गई थीं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि उसके बाद कॉलोनाइजर पर किसी तरह का कोई ठोस एक्शन नहीं हुआ। नदी पर बनी अवैध दीवार भी नहीं तोड़ी गई, और आज इसी एक दीवार के कारण रीवा के लोगों की जान मुश्किल में पड़ गई है। यह स्थिति जिला प्रशासन की लापरवाही और ढुलमुल रवैये पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
खुद किए अतिक्रमण, अब भुगत रहे सजा: गुढ़ विधायक का बंगला भी डूबा
इस बाढ़ में सिर्फ आम जनता ही नहीं, बल्कि कुछ बड़े नेताओं को भी अपने किए का खामियाजा भुगतना पड़ा है। गुढ़ विधायक नागेंद्र सिंह का बंगला भी बीहर नदी के ठीक किनारे स्थित है, जो वन विभाग की नर्सरी से सटा हुआ है। आरोप है कि उन्होंने भी बीहर नदी का दोहन करते हुए पहले नदी के हिस्से को पाटकर अतिक्रमण किया था। उन्होंने अपने बंगले के पीछे नदी में मिट्टी और पत्थर डालकर उसे पाट दिया था।
उनके इस अतिक्रमण को देखकर ही शायद दूसरों ने भी नदी को पाटना शुरू कर दिया। अब इसका सीधा परिणाम गुढ़ विधायक को ही झेलना पड़ रहा है, क्योंकि उनका बंगला भी पानी में डूब गया है। इस हालत को देखकर तो बस यही कहावत सटीक बैठती है, "जैसी करनी वैसी भरनी।"
नियम और कायदे सबके लिए अलग-अलग? प्रशासन पर मिलीभगत के आरोप
रीवा में प्रशासन और शासन पर शांति विला जैसे बड़े कॉलोनाइजरों पर मेहरबान होने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। शांति विला कॉलोनी को शासन से किसी तरह का टैक्स नहीं मिल रहा है, और इसका सारा काम अवैध तरीके से हो रहा है। प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी है, इसके बावजूद इस कॉलोनाइजर को 'शरण' दी जा रही है। रीवा शहर बाढ़ में डूब रहा है, लेकिन यह समझ से परे है कि सभी इस कॉलोनाइजर को बचाने में क्यों लगे हैं।
यह हद तो तब हो जाती है जब एक तरफ नगर निगम छोटे-छोटे कॉलोनाइजरों पर कहर बरपा रहा है, उनकी कॉलोनियां उजाड़ रहा है, वहीं अरबों का निवेश करने वाले शांति विला पर कार्रवाई करने से उसके "हाथ-पैर फूल रहे हैं।" नगर निगम और प्रशासन गरीबों के आशियाने उजाड़ने में भी देरी नहीं करते। अतिक्रमण बताकर निराला नगर में गरीबों की बस्तियां उजाड़ दी गईं, करहिया तिराहे पर सड़कों के किनारे बसे गरीबों के घर और दुकानें तोड़ दी गईं, और चिरहुला मंदिर के सामने भी अतिक्रमण हटाया गया। लेकिन जहाँ रीवा के बड़े हित या बड़े कॉलोनाइजरों की बात आती है, वहाँ प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। यह दोहरा मापदंड स्थानीय लोगों में आक्रोश पैदा कर रहा है।
2016 की बाढ़ के बाद भी नहीं सीखा सबक: टीएनसीपी नोटिस और अवैध कनेक्शन
वर्ष 2016 में रीवा में आई भीषण बाढ़ के बाद, नदी के किनारे घर बनाने वाले सभी लोगों को नगर तथा ग्राम निवेश (TNCP) द्वारा नोटिस जारी किए गए थे। 50 मीटर के दायरे में आने वाले सभी घरों के लोगों को अल्टीमेटम दिया गया था, और नगर निगम ने भी ऐसे क्षेत्रों में निर्माण अनुमति देने पर रोक लगा दी थी। लेकिन, कुछ समय बाद यह पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इसके परिणामस्वरूप, नदी के किनारे ही कई नई कॉलोनियां बस गईं। हद तो यह है कि इन अवैध कॉलोनियों को बिना अनुमति के ही विद्युत विभाग ने बिजली कनेक्शन दे दिए, ट्रांसफार्मर लगवा दिए और 11 केवी लाइन तक पहुंचा दी। सारा काम अवैध तरीके से कर दिया गया, लेकिन प्रशासन कुछ नहीं कर पाया। यह दर्शाता है कि कैसे सरकारी विभाग आपस में समन्वय नहीं बिठा पा रहे हैं या जानबूझकर नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, जिसका खामियाजा अंततः रीवा की जनता को बाढ़ के रूप में भुगतना पड़ रहा है।