ब्रेकिंग! रीवा GMH में डीन ने डिप्टी सीएम की शिकायत को कचरे में फेंका : गोपनीय जवाब का मतलब क्या? 7 महिला डॉक्टरों को टॉर्चर!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के श्याम शाह मेडिकल कॉलेज (SSMC), रीवा में चल रहा हाई-प्रोफाइल विवाद अब एक नया और विस्फोटक मोड़ ले चुका है। प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एच.ओ.डी. डॉ. बीनू सिंह के खिलाफ डिप्टी सीएम से शिकायत करने वाली 7 महिला चिकित्सकों को अब सजा मिलनी शुरू हो गई है। आरोप है कि कॉलेज के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल ने इन शिकायतकर्ता डॉक्टरों को टार्चर करना शुरू कर दिया है। डीन ने एचओडी के स्पष्टीकरण के आधार पर, सभी 7 महिला चिकित्सकों (जिनमें नौकरी छोड़ने वाली डॉक्टर भी शामिल हैं) को नोटिस जारी कर दिया है और उनसे गोपनीय तथा बंद लिफाफे में जवाब मांगा है। यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से न्याय मांग रहे डॉक्टरों के उत्पीड़न को दर्शाती है और पूरे चिकित्सा जगत में हड़कंप मचाने वाली है।
क्षेत्रवाद की आंच: ग्वालियर लॉबी और रीवा के डॉक्टर
इस पूरे मामले को अब क्षेत्रवाद की नजर से भी देखा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, मेडिकल कॉलेज में ग्वालियर की लॉबी भारी पड़ रही है, जिसके कारण रीवा क्षेत्र के चिकित्सकों को जानबूझकर प्रताड़ित किया जा रहा है। 7 महिला चिकित्सकों द्वारा डिप्टी सीएम से की गई 11 बिंदुओं की शिकायत के बाद, एचओडी डॉ. बीनू सिंह ने डीन को अपना स्पष्टीकरण दिया। हैरानी की बात यह है कि डीन ने बिना किसी निष्पक्ष जांच के, एचओडी के कहने पर ही शिकायतकर्ता डॉक्टरों को नोटिस थमा दिया है। यह कार्रवाई बताती है कि श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में क्षेत्रवाद क्या है और कैसे एक विशेष समूह के लोगों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
डीन डॉ. सुनील अग्रवाल की संदिग्ध मंशा
डीन डॉ. सुनील अग्रवाल की मंशा पर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। शिकायत सीधे डिप्टी सीएम के नाम से की गई थी, लेकिन जवाब डीन मांग रहे हैं। इतना ही नहीं, यह जवाब गोपनीय और बंद लिफाफे में मांगा जा रहा है। डीन ने गोपनीय जवाब क्यों मांगा, यह बात किसी को समझ नहीं आ रही है। आमतौर पर, ऐसी शिकायतों की जांच एक उच्च-स्तरीय कमेटी द्वारा की जाती है न कि शिकायतकर्ता से ही गोपनीय स्पष्टीकरण मांगा जाता है। यह कदम शिकायतकर्ता डॉक्टरों को डराने और पूरे मामले को दबाने की संदिग्ध कोशिश की ओर इशारा करता है। यह स्थिति भाजपा के राज में न्याय की स्थिति पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है, जहाँ न्याय मांगना ही अपराध बन गया है।
7 महिला चिकित्सकों पर नोटिस का वार
डीन ने जिन 7 महिला चिकित्सकों को नोटिस जारी किया है, उनमें डॉ. पदमा शुक्ला, डॉ. सरिता सिंह, डॉ. नेहा खटीक, डॉ. क्षमा विश्वकर्मा, डॉ. सोनल अग्रवाल, डॉ. शीतल पटेल, और इस्तीफा दे चुकी डॉ. पूजा गंगवार शामिल हैं। इन सभी ने मिलकर एचओडी डॉ. बीनू सिंह कुशवाह पर मानसिक प्रताड़ना और विभाग में खराब माहौल बनाने के 11 गंभीर आरोप लगाए थे। शिकायत करने पर डॉक्टरों को क्या सजा मिली, इसका ज्वलंत उदाहरण यह नोटिस है। डीन की इस कार्रवाई से साफ है कि वह शिकायतकर्ता डॉक्टरों को सजा दे रहे हैं, न कि समस्याओं का समाधान कर रहे हैं।
मामला शांत करने की जगह आग में घी
यह मुद्दा अब केवल मेडिकल कॉलेज का आंतरिक विवाद नहीं रहा है; यह डिप्टी सीएम के जिले का मुद्दा होने के कारण प्रदेशभर में सुर्खियों में है। 7 शिकायतकर्ता डॉक्टरों में से पहले ही दो ने नौकरी छोड़ दी है, और एक वरिष्ठ चिकित्सक पहले ही इस्तीफा दे चुकी हैं। इतना बड़ा विवाद बिगडऩे के बाद भी, डीन डॉ. सुनील अग्रवाल ने स्थिति को सम्हालने के बजाय, सभी शिकायतकर्ताओं को नोटिस जारी करके विवाद को आग में घी डालने का काम किया है।
डीन का यह रुख दिखाता है कि उन्हें न तो विंध्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की चिंता है और न ही डॉक्टरों के मनोबल की। उनकी यह कार्रवाई यह सुनिश्चित करती है कि महिला चिकित्सकों का उत्पीड़न कैसे हो रहा है और कैसे एक प्रशासनिक अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करके सत्य को दबाने की कोशिश कर रहा है। डीन ने क्या नोटिस दिया, इसका सीधा उद्देश्य डॉक्टरों को चुप कराना प्रतीत होता है।
चिकित्सा शिक्षा पर धब्बा: भाजपा राज में न्याय की स्थिति
यह पूरा घटनाक्रम चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य प्रशासन पर एक बड़ा धब्बा है। जब डॉक्टर, जो दिन-रात मरीजों की सेवा करते हैं, खुद ही प्रताड़ित महसूस कर रहे हों, तो वे मरीजों को क्या बेहतर सेवा देंगे? डिप्टी सीएम से अपील की गई थी, लेकिन कार्रवाई के नाम पर शिकायतकर्ता पर ही पलटवार किया जा रहा है।
यह मामला दिखाता है कि यदि उच्चाधिकारी, जैसे कि डीन डॉ. सुनील अग्रवाल, भ्रष्टाचार और अराजकता को बढ़ावा दें, तो कोई भी विभाग पूरी तरह से बिखर सकता है। यह न केवल रीवा के डॉक्टरों का मामला है, बल्कि यह पूरे सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम की प्रशासनिक विफलताओं को उजागर करता है। सरकार को तुरंत डीन को पद से हटाने और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाने की आवश्यकता है ताकि डॉक्टरों को न्याय मिल सके और मरीजों का इलाज बाधित न हो।