Rewa News : रीवा: प्रार्थना अस्पताल का 'डर्टी गेम' उजागर! भ्रूण हत्या पर नोटों से पर्दा, क्या रीवा का स्वास्थ्य विभाग सोया है?

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो)  रीवा, मध्य प्रदेश: रीवा के प्रार्थना अस्पताल में हुए कथित भ्रूण हत्या के सनसनीखेज मामले ने एक बार फिर निजी अस्पतालों की मनमानी और अवैध गतिविधियों को उजागर कर दिया है। आरोप है कि यह जघन्य अपराध करने के बाद, अस्पताल प्रबंधन ने इस संगीन मामले को दबाने के लिए लाखों-करोड़ों के नोटों का सौदा करने की नापाक कोशिश की। हालांकि, जिला कलेक्टर ने तत्काल जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन यह सिर्फ एक अस्पताल का मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक बड़ा सवाल है।

पैसों के दम पर 'जिंदगियों का सौदा'?
प्रार्थना अस्पताल पर आरोप है कि उसने न सिर्फ अवैध रूप से भ्रूण हत्या को अंजाम दिया, बल्कि जब मामला सामने आया, तो इसे रफा-दफा करने के लिए खुलेआम पैसों का खेल खेला। यह दर्शाता है कि कुछ निजी अस्पताल सिर्फ व्यापारिक प्रतिष्ठान बन चुके हैं, जहाँ नैतिकता, कानून और मानवीय मूल्यों की कोई जगह नहीं है। क्या इन अस्पतालों में इंसानी जिंदगियों की कीमत नोटों से तय की जाती है? यह सवाल अब हर किसी की जुबान पर है।

'विवादों का गढ़' है प्रार्थना अस्पताल!
यह पहली बार नहीं है जब प्रार्थना अस्पताल विवादों में आया है। यह अस्पताल पहले भी नियमों के विपरीत काम करने और विवादों में रहने के लिए जाना जाता है। ऐसे में, इस तरह के गंभीर आरोप सीधे तौर पर अस्पताल प्रबंधन की कार्यप्रणाली और उसकी निगरानी करने वाले तंत्र पर सवाल उठाते हैं। यह दर्शाता है कि नियमों को ताक पर रखकर काम करना इनके लिए कोई नई बात नहीं है।

रीवा में 'डर्टी पिक्चर' का सिर्फ एक सीन!
यह सिर्फ प्रार्थना अस्पताल का मामला नहीं है। रीवा सहित प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसे दर्जनों निजी क्लीनिक और अस्पताल बेखौफ होकर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण, गैर-पंजीकृत डॉक्टर, अनधिकृत ऑपरेशन और बिलों में मनमानी - ये सब ऐसे काले धंधे हैं जो अक्सर पैसे और ऊंची पहुंच के दम पर दबा दिए जाते हैं। सवाल यह है कि प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इन पर नकेल कसने में इतना ढीला क्यों पड़ता है? क्या इन अवैध गतिविधियों में ऊपर बैठे कुछ 'सफेदपोश' भी शामिल हैं, जो इन 'भ्रष्टाचार के अड्डों' को संरक्षण दे रहे हैं?

कलेक्टर का आदेश, लेकिन आगे क्या?
कलेक्टर ने बेशक जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन ऐसे मामलों में अक्सर जांचें फाइलों तक ही सीमित रह जाती हैं। जरूरत इस बात की है कि सिर्फ इस एक मामले की नहीं, बल्कि रीवा के सभी निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की गहन और पारदर्शी जांच हो। उन सभी नर्सिंग होम्स और अस्पतालों के लाइसेंस रद्द किए जाएं, जो नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। दोषियों को सिर्फ खानापूर्ति के लिए नहीं, बल्कि सख्त से सख्त सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई भी अस्पताल इंसानियत के खिलाफ ऐसे अपराध करने की हिम्मत न कर सके।

यह देखना होगा कि क्या प्रशासन इस 'गंदी खेल' पर पूरी तरह से लगाम लगा पाता है, या यह मामला भी कुछ दिनों बाद ठंडे बस्ते में चला जाएगा।