रीवा पुलिस पर हड़कंप: जिन पर भरोसा, वही रिश्वतखोर! प्रधान आरक्षक और नगर सैनिक रंगे हाथों गिरफ्तार

 
मैहर के युवक की शिकायत पर लोकायुक्त रीवा ने प्रधान आरक्षक और नगर सैनिक को रंगेहाथों दबोचा, 10,000 की रिश्वत मांगने का मामला

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में एक बार फिर लोकायुक्त पुलिस ने अपनी कार्रवाई से प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। इस बार निशाना आम नहीं, बल्कि खाकी वर्दी पर लगा है। मंगलवार को लोकायुक्त टीम ने देहात थाना के दो पुलिसकर्मियों को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया। इस घटना ने न केवल पुलिस प्रशासन की साख पर सवाल खड़ा किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार का यह दीमक किस हद तक हमारी व्यवस्था को खोखला कर रहा है। पकड़े गए आरोपियों में एक प्रधान आरक्षक और दूसरा नगर सैनिक शामिल है, जो एक छोटे से मामले में धाराएं न बढ़ाने के एवज में ₹10,000 की मांग कर रहे थे। इस तरह की घटनाएं जनता के बीच पुलिस के प्रति विश्वास को कम करती हैं और कानून-व्यवस्था के प्रति निराशा पैदा करती हैं।

शिकायतकर्ता की आपबीती: ₹10,000 की रिश्वत का मामला
यह पूरा मामला मैहर जिले के ग्राम देवरा निवासी आनंद कुमार कुशवाहा की शिकायत के बाद सामने आया। 32 वर्षीय आनंद ने लोकायुक्त रीवा के कार्यालय में जाकर एक लिखित शिकायत दी। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया कि देहात थाना में दर्ज एक प्रकरण में धाराएं नहीं बढ़ाने के लिए प्रधान आरक्षक श्यामलाल चौधरी और नगर सैनिक बृजेन्द्र मिश्रा लगातार ₹10,000 की रिश्वत की मांग कर रहे थे। पुलिसकर्मियों की यह मांग पूरी तरह से अनैतिक और गैरकानूनी थी, लेकिन मजबूरी में आनंद को उनकी शर्तें माननी पड़ी। हालांकि, अन्याय के खिलाफ खड़े होने का निर्णय लेते हुए उन्होंने लोकायुक्त से संपर्क किया और इस भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लोकायुक्त का जाल: 5500 की पहली किस्त, 4500 में रंगेहाथों गिरफ्तारी कैसे हुई
आनंद कुमार कुशवाहा की शिकायत की गंभीरता को देखते हुए लोकायुक्त की टीम ने तुरंत सत्यापन की प्रक्रिया शुरू की। लोकायुक्त टीम ने पीड़ित को प्रधान आरक्षक और नगर सैनिक से संपर्क करने के लिए कहा। सत्यापन के दौरान ही आनंद ने रिश्वत की पहली किस्त के रूप में ₹5500 आरोपियों को दिए। इस लेन-देन का प्रमाण मिलते ही लोकायुक्त ने पूरी योजना तैयार कर ली। शेष ₹4500 देने का समय और स्थान तय किया गया। लोकायुक्त की टीम, जिसमें उप-पुलिस अधीक्षक प्रवीण सिंह परिहार और निरीक्षक उपेन्द्र दुबे शामिल थे, ने अपनी टीम के साथ मौके पर पहुँचकर जाल बिछाया। जैसे ही शिकायतकर्ता ने शेष ₹4500 पुलिसकर्मियों को दिए, लोकायुक्त टीम ने उन्हें रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया। इस तरह, भ्रष्टाचार के इस खेल का अंत हुआ और दोनों पुलिसकर्मी कानून के शिकंजे में आ गए।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई: क्या हैं प्रावधान?
गिरफ्तारी के बाद लोकायुक्त ने दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। यह अधिनियम सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत रिश्वत लेना एक गंभीर अपराध है, जिसमें आरोपी को जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। यह कार्रवाई एक स्पष्ट संदेश देती है कि सरकारी पदों पर बैठे लोग अगर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करेंगे तो उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। इस मामले में भी दोनों आरोपियों को सख्त सजा मिलने की संभावना है, जिससे भविष्य में अन्य लोगों को इस तरह के गलत कामों से सबक मिलेगा।

पुलिस पर दाग: रीवा में क्यों बढ़ रही हैं रिश्वतखोरी की घटनाएं?
रीवा में पुलिसकर्मियों के रिश्वत लेने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी कई बार ऐसी खबरें सामने आ चुकी हैं, जो पुलिस की छवि पर सवाल खड़े करती हैं। यह दिखाता है कि पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं। पुलिसकर्मियों द्वारा रिश्वत मांगने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि वेतन का कम होना, ऊपरी कमाई की लालच, और अधिकारियों का ढीला रवैया। जब बड़े अधिकारी इस तरह की घटनाओं पर सख्त कार्रवाई नहीं करते, तो निचले स्तर के पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ जाता है। इस मामले में लोकायुक्त की कार्रवाई एक सकारात्मक कदम है, जो उम्मीद जगाती है कि भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर लगाम लगाई जा सकती है।

प्रशासनिक जवाबदेही और जनता का विश्वास कैसे कायम हो
इस तरह की घटनाएं सिर्फ पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं रहतीं, बल्कि इसका असर पूरे प्रशासनिक ढांचे पर पड़ता है। जब पुलिसकर्मी, जिन पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, वही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो जनता का सरकारी व्यवस्था से विश्वास उठ जाता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि प्रशासन अपनी जवाबदेही को समझे और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। नियमित जांच, सख्त निगरानी, और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करना जरूरी है। साथ ही, जनता को भी जागरूक होना चाहिए कि वे किसी भी तरह की रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाएं और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं का सहयोग करें, जैसा कि आनंद कुमार कुशवाहा ने किया। तभी एक स्वच्छ और पारदर्शी व्यवस्था की स्थापना संभव है।