रीवा का रहस्यमयी शिव धाम: श्मशान में विराजते हैं भोलेनाथ और बढ़ता है शिवलिंग का आकार
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। सावन के अंतिम सोमवार के शुभ अवसर पर आज हम आपको रीवा के एक ऐसे दिव्य और रहस्यमयी शिवधाम के बारे में बता रहे हैं, जो अपनी अलौकिक घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर विंध्य की पवित्र भूमि पर स्थित है, जिसे ऋषि-मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। यहाँ की पर्वत श्रृंखलाएँ, नदियाँ और घने जंगल आज भी कई दिव्य रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए हैं। इन्हीं में से एक है रीवा शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक अनोखा शिवधाम, जिसके बारे में जानकर आप दंग रह जाएँगे। यह मंदिर श्मशान भूमि पर स्थापित है, जो स्वयं महादेव को अत्यंत प्रिय है।
अनोखा छतुरिया नाथ शिवधाम और उसका अद्भुत रहस्य
हम बात कर रहे हैं गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के उमरी गांव में स्थित छतुरिया नाथ शिव धाम की। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहाँ स्थापित शिवलिंग है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग का आकार और वजन हर साल लगातार बढ़ रहा है। यह एक ऐसा चमत्कार है, जिसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन भक्तों की आस्था इसे सच मानती है।
रीवा के उमरी गांव में स्थित छतुरिया नाथ शिव मंदिर की तस्वीर, जो श्मशान घाट में बना है और जहाँ शिवलिंग का आकार बढ़ता है।
महंत रामाचार्य पाठक, जो इस मंदिर के वर्तमान संरक्षक हैं, बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास उनके पूर्वजों से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर रौरियानाथ महादेवालय से भी जुड़ा हुआ है, जिसका निर्माण 9वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। महंत के अनुसार, उनके पूर्वजों ने ही इस छतुरिया नाथ शिव मंदिर का निर्माण कराया था।
कैसे हुई इस मंदिर की स्थापना: महंत के पूर्वजों का स्वप्न
इस अद्भुत मंदिर का निर्माण आज से लगभग 150 से 200 साल पहले हुआ था। महंत रामाचार्य बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना का श्रेय उनके बाबा छत्ते पाठक को जाता है। छत्ते पाठक शिव के परम उपासक थे। एक रात स्वयं भगवान शिव ने उनके स्वप्न में आकर उन्हें बताया कि उनके खेत में स्थित श्मशान घाट के पास एक तालाब में एक शिवलिंग छिपा है। शिव ने उनसे उस शिवलिंग को निकालकर उसी श्मशान में स्थापित करने को कहा।
यह तस्वीर मंदिर के बाहरी दृश्य को दर्शाती है, जहाँ सावन के महीने में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
जब छत्ते पाठक ने बताए गए स्थान पर जाकर खोजबीन की, तो उन्हें तालाब में एक छोटे आकार का दिव्य शिवलिंग मिला, जिसका वजन केवल 1 से 2 किलो के आसपास था। उनके पूर्वजों ने उसी स्थान पर एक छोटा मंदिर बनवाया और शिवलिंग को पूरे विधि-विधान से स्थापित किया। आज इस शिवलिंग का वजन लगभग 25 से 30 किलो हो चुका है, जो इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है।
प्राचीन मूर्तियों का खजाना: 6ठी शताब्दी की पंच गौरी
इस रहस्यमयी मंदिर में न केवल शिवलिंग की दिव्यता है, बल्कि यहाँ स्थापित कई प्राचीन मूर्तियाँ भी हैं जो इसके इतिहास को और भी गहरा बनाती हैं। महंत रामाचार्य के अनुसार, इस मंदिर में एक पंच गौरी की मूर्ति स्थापित है जो 6ठी शताब्दी की है। इसके अलावा, यहाँ एक ऐसी मूर्ति भी है, जिसमें शार्दुल पक्षी की आकृति बनी हुई है। इस पक्षी का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जिसे देवता अपनी सवारी के रूप में इस्तेमाल करते थे। यह मूर्ति 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। इन प्राचीन मूर्तियों की मौजूदगी से यह सिद्ध होता है कि यह स्थान सैकड़ों वर्षों से पूजा का केंद्र रहा है।
संकटमोचन श्मशान वाले शिव: भक्तों के लिए आशा का केंद्र
यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि यहाँ के ग्रामीणों के लिए एक संकटमोचन धाम भी है। महंत रामाचार्य बताते हैं कि जब भी गाँव के लोगों पर कोई संकट आता है या वे किसी बीमारी से ग्रस्त होते हैं, तो वे इसी श्मशान वाले शिव की शरण में आते हैं। भगवान शिव अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं और उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करते हैं।
इस मंदिर से जुड़ी कई चमत्कारिक कहानियाँ हैं। एक बार गाँव में हैजा (कोलरा) की बीमारी फैल गई, जिससे कई लोगों की जान जाने लगी। जब लोग मरणासन्न हालत में इस शिवधाम पर लाए गए और उन्हें कुएँ का पानी पिलाया गया, तो वे अचानक ठीक हो गए। इसी तरह एक बार 'हुलकी' (डायरिया) नामक महामारी ने पूरे गाँव को अपनी चपेट में ले लिया था। लोग अपनी जान बचाने के लिए गाँव छोड़कर भागने लगे, लेकिन जब उन्होंने इस श्मशान वाले शिव की आराधना की, तो उन्हें उस महामारी से मुक्ति मिल गई। तभी से इस दिव्य शिवधाम की महिमा और भी बढ़ गई।