सोहागी से प्रयागराज तक: "कमीशन खाओ और सो जाओ": थाने से RTO तक 'पैसे के कंबल' में लिपटे अधिकारी : किसके पैसों से भरी है RTO और खनिज विभाग के अधिकारियों की तिजोरी? 

 

सोहागी, चाकघाट, जनेह थाना क्षेत्र से टमस नदी का अवैध उत्खनन जारी; करोड़ों का राजस्व नुकसान, 'ऊपर से नीचे तक' कमीशन के कारण नहीं होती कार्रवाई। 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में रेत माफिया ने एक बार फिर अवैध उत्खनन का तांडव मचा रखा है। सोहागी, चाकघाट और जनेह जैसे थाना क्षेत्रों में, जहां कानून व्यवस्था लागू करने की जिम्मेदारी पुलिस की है, वहीं रात के अंधेरे में टमस, सेलर, महाना और चिंताली जैसी नदियों का सीना चीरा जा रहा है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह पूरा अवैध कारोबार पुलिस थानों के ठीक सामने से, अधिकारियों की नाक के नीचे से बेखौफ संचालित हो रहा है। यह मामला केवल अवैध उत्खनन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर प्रशासन, पुलिस, खनिज विभाग और आरटीओ की मिलीभगत और ऊपर से नीचे तक फैले भ्रष्टाचार के जाल को उजागर करता है, जिससे प्रदेश को हर दिन करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो रहा है।

ये वाहन मध्यप्रदेश से निकलकर सीधे उत्तरप्रदेश के प्रयागराज तक निर्बाध तरीके से पहुंच जा रहे हैं।

माफिया-अधिकारी गठजोड़: 'कमीशन' की परतें और गहरी होती चुप्पी
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का सीधा और गंभीर आरोप है कि इस संगठित अपराध को पुलिस और प्रशासन का सीधा संरक्षण प्राप्त है। यह सिर्फ लापरवाही नहीं है; यह एक सुनियोजित मौन है, जो 'कमीशन' की मोटी रकम के कारण साधा जाता है। रीवा में रेत माफिया को कौन संरक्षण दे रहा है? यह सवाल हर उस नागरिक के मन में है जो बिना नंबर प्लेट वाले डंपरों को रातभर दौड़ते देखता है।

स्थानीय निवासी अजय मिश्रा के अनुसार, "रेत कारोबारियों द्वारा न केवल थाना प्रभारियों, बल्कि आरटीओ और खनिज विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों तक एक निश्चित कमीशन पहुंचाया जाता है।" यह कमीशन ही वह 'लाइसेस फीस' है, जिसके बदले में इन अवैध वाहनों को मध्यप्रदेश से सीधे उत्तरप्रदेश के प्रयागराज तक निर्बाध परिवहन की अनुमति मिलती है। जब कमीशन का पैसा ऊपर से नीचे तक सबको संतुष्ट कर रहा हो, तो अधिकारी क्यों कार्रवाई करेंगे? यह गठजोड़ ही इस भ्रष्टाचार के दलदल को और मजबूत कर रहा है।

रात से लेकर भोर तक बिना नंबर प्लेट वाले डंपर और ट्रैक्टर-ट्रॉलियां बड़ी मात्रा में रेत लेकर सड़कों पर दौड़ती हैं।

टमस से प्रयागराज तक: अवैध परिवहन का निर्बाध कॉरिडोर
रीवा की टमस और अन्य नदियों से निकाली गई रेत को सीधे उत्तरप्रदेश के प्रयागराज जैसे बड़े बाजारों तक पहुंचाया जा रहा है। यह एक अंतरराज्यीय तस्करी का मामला है, जो दिखाता है कि रेत माफिया का नेटवर्क कितना मजबूत और संगठित है।

बिना नंबर प्लेट वाले डंपर कैसे चल रहे हैं? इसका एकमात्र जवाब है - प्रशासनिक संरक्षण।

रात से लेकर भोर तक ये बिना नंबर प्लेट वाले डंपर और ट्रैक्टर-ट्रॉलियां सड़कों पर यमदूत बनकर दौड़ते हैं। बिना नंबर प्लेट वाले वाहनों का उपयोग इसलिए किया जाता है ताकि दुर्घटना या पकड़े जाने पर इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाए। इन अवैध रेत से भरे वाहनों का थानों के सामने से गुजरना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि रीवा पुलिस कमीशन कैसे ले रही है और पूरी व्यवस्था को कैसे अनदेखा कर रही है। यह सीधे तौर पर यह स्थापित करता है कि क्या पुलिस और रेत माफिया मिले हुए हैं, और इसका उत्तर दुखद रूप से 'हाँ' है।

नदियों का चीरहरण: पर्यावरण और राजस्व को गहरा घाटा
टमस, सेलर, महाना और चिंताली – ये चार नदियाँ इस अवैध उत्खनन का शिकार हो रही हैं। नदी तल से बड़े पैमाने पर रेत निकालने से न केवल जलीय जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है, बल्कि भूजल स्तर भी तेज़ी से नीचे गिर रहा है।

अवैध रेत उत्खनन पर शिकायत कैसे करें जब खनिज विभाग क्यों कार्रवाई नहीं कर रहा है?

पर्यावरण को हो रहे इस गंभीर नुकसान के अलावा, प्रदेश के खजाने को भी करोड़ों रुपये का सीधा राजस्व घाटा हो रहा है। यह पैसा जो वैध खनन से सरकार के पास आना चाहिए था, वह सीधे रेत माफिया की जेब में और भ्रष्ट अधिकारियों के कमीशन के रूप में जा रहा है। ओवरलोडिंग के कारण सड़कें भी टूट रही हैं, जिससे आम जनता की सुरक्षा और परिवहन व्यवस्था खतरे में पड़ रही है।

डर का माहौल और ग्रामीणों की बेबसी
स्थानीय ग्रामीण, जो इस प्राकृतिक संपदा का चीरहरण होते देख रहे हैं, वे डर के कारण सामने नहीं आ पाते। दिलीप मिश्रा जैसे निवासी बताते हैं कि "प्राकृतिक सम्पदा का इस तरह से खत्म होना आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा है, लेकिन लोग रेत माफिया के खौफ के कारण कुछ बोल नहीं पाते।"

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन जल्द सख्त कदम नहीं उठाता, तो यह अवैध कारोबार और भी ज्यादा संगठित और खतरनाक रूप ले लेगा। यह डर केवल माफिया का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम का भी है जो माफिया को खुलेआम संरक्षण दे रहा है।

सत्ता और सिस्टम पर सवाल: आखिर कार्रवाई कब?
जब बिना नंबर प्लेट वाले डंपर थानों के सामने से गुजर रहे हैं, तो कार्रवाई न होना शासन और प्रशासन की मंशा पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है। खनिज विभाग और पुलिस अधिकारी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं, जो इस बात का सीधा प्रमाण है कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।

रीवा आरटीओ की भूमिका पर भी गंभीर सवाल हैं, क्योंकि बिना नंबर प्लेट वाले वाहनों पर कार्रवाई करना सीधे तौर पर उनका काम है।

स्थानीय लोगों की मांग है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिए, न सिर्फ अवैध उत्खनन पर, बल्कि इसमें शामिल पुलिस, खनिज, और आरटीओ अधिकारियों की संपत्ति की भी जाँच की जानी चाहिए। केवल छोटी-मोटी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा; भ्रष्टाचार के इस नेक्सस को तोड़ने के लिए ऊपर से नीचे तक की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि प्रदेश की प्राकृतिक संपदा और राजस्व को बचाया जा सके।