शिक्षा के मंदिर को बनाया 'ससुराल'! स्कूल में चूल्हा-चौका, कूलर, और पलंग... हेडमास्टर की 'बेडरूम क्लास' पर डीपीसी ने लिया एक्शन!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले से शिक्षा के मंदिर की पवित्रता और उसके मूल उद्देश्य पर गहरा आघात करने वाला एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। शिक्षा व्यवस्था को शर्मसार करने वाली यह घटना कुल्लू पूर्व माध्यमिक विद्यालय की है, जहां की महिला हेडमास्टर पद्मा शर्मा पर गंभीर आरोप लगे हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और भविष्य की नींव रखने की जगह, एक क्लासरूम को हेडमास्टर द्वारा निजी बेडरूम में बदल दिया गया।
मामले की पूरी जानकारी और घटनास्थल की स्थिति
स्कूल परिसर में बच्चों के सीखने के स्थान को निजी उपयोग के लिए रूपांतरित कर दिया जाना ही इस मामले का मूल है। उपलब्ध वीडियो फुटेज और निरीक्षण से यह स्पष्ट हुआ है कि जिस कमरे को छात्रों के ज्ञानार्जन के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए था, वह अब किसी आरामगाह से कम नहीं लगता।
- क्लासरूम का स्वरूप: कमरा अब क्लासरूम कम, बल्कि एक व्यक्तिगत आवास अधिक दिखाई दे रहा है।
- निजी सामान की मौजूदगी: क्लासरूम के अंदर तख्त, आरामदायक बिस्तर, कूलर, पंखा, और यहाँ तक कि गैस चूल्हा जैसे निजी घरेलू सामान सजे हुए पाए गए।
- शैक्षणिक सामग्री का अभाव: जहाँ ब्लैकबोर्ड, डस्टर और बच्चों की किताबें होनी चाहिए थीं, वहाँ आराम करने की पूरी व्यवस्था ने ले ली थी। यह स्थिति स्पष्ट रूप से शैक्षणिक नियमों और मर्यादाओं का उल्लंघन है।
- हेडमास्टर का पद: आरोपी महिला, पद्मा शर्मा, इस विद्यालय की हेडमास्टर हैं, जिससे इस कृत्य की गंभीरता और भी बढ़ जाती है।
यह दृश्य न केवल विभागीय नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह उन गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों के साथ भी अन्याय है, जो सरकारी स्कूलों पर अपने भविष्य के लिए निर्भर करते हैं।
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल और नियमों का उल्लंघन
यह मामला कई गंभीर सवाल खड़े करता है:
- स्कूल किसके लिए है?: क्या विद्यालय बच्चों को शिक्षा देने के लिए हैं या फिर अधिकारियों के व्यक्तिगत आराम के लिए?
- कर्तव्य में लापरवाही: एक हेडमास्टर, जो पूरे स्कूल के लिए जिम्मेदार होता है, वही यदि नियमों को ताक पर रखे, तो बाकी स्टाफ से क्या अपेक्षा की जा सकती है?
- सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग: क्लासरूम जैसी सरकारी संपत्ति का निजी निवास के रूप में इस्तेमाल करना एक अक्षम्य दुरुपयोग है। यह सीधे तौर पर विभागीय नियमों का उल्लंघन है, जिसके तहत सार्वजनिक स्थानों का निजीकरण वर्जित है।
- बच्चों की पढ़ाई पर असर: एक क्लासरूम कम होने का सीधा अर्थ है कि बच्चों की पढ़ाई और बैठने की व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ना।
हेडमास्टर का यह कृत्य शैक्षणिक नैतिकता और दायित्वबोध के विपरीत है। सरकारी स्कूलों में पदस्थ अधिकारी जनता के पैसे से संचालित संसाधनों के संरक्षक होते हैं, उनका दुरुपयोग करना गंभीर कदाचार है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए, प्रशासनिक स्तर पर तत्काल संज्ञान लिया गया है।
- जाँच के आदेश: पूरे मामले पर डीपीसी (जिला परियोजना समन्वयक) विनय मिश्रा ने जाँच के आदेश जारी कर दिए हैं।
- कार्रवाई का आश्वासन: डीपीसी मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि जाँच के परिणाम के आधार पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस तरह का व्यवहार न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि यह अन्य शिक्षकों के लिए भी एक गलत मिसाल पेश करता है।
- उद्देश्य: जाँच का मुख्य उद्देश्य क्लासरूम के इस दुरुपयोग की परिस्थितियों का पता लगाना और यह सुनिश्चित करना है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ न दोहराई जाएँ।
सरकारी अधिकारियों और शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ करें। यह घटना उन सभी के लिए एक चेतावनी है जो अपने पद और सरकारी संसाधनों का निजी लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। उम्मीद है कि इस जाँच के बाद शिक्षा व्यवस्था की पवित्रता को बहाल किया जा सकेगा।