बेहोश सिस्टम! प्राइवेट में 'ईमानदारी' और सरकारी में 'हत्या'! रीवा में हर मौत के लिए ज़िम्मेदार कौन?

 
सतना से रेफर दीपा गुप्ता और गर्भस्थ शिशु की मौत पर परिजनों का गंभीर आरोप- 2 दिन इलाज नहीं किया, मारपीट की। अस्पताल ने आरोप नकारे।

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल (SGMH) में एक बार फिर चिकित्सा लापरवाही का एक हृदय विदारक मामला सामने आया है। सतना से रेफर होकर आईं गर्भवती महिला दीपा गुप्ता (पति- राजकुमार गुप्ता) और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। इस घटना ने एक बार फिर SGMH की चिकित्सा व्यवस्था और डॉक्टरों के गैर-जिम्मेदाराना रवैये पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

घटना के बाद, गुस्साए परिजनों ने अस्पताल के गेट पर शव रखकर जबरदस्त हंगामा किया और डॉक्टरों पर इलाज न करने और मारपीट के संगीन आरोप लगाए। वहीं, अस्पताल प्रबंधन ने इन सभी आरोपों को निराधार बताते हुए अपना बचाव किया है। यह दोहरा विवाद अस्पताल की गिरती साख को और भी अधिक नुकसान पहुँचा रहा है।

परिजनों के गंभीर आरोप: '2 दिन तक भर्ती रखा, इलाज नहीं किया और मारपीट' 
मृतक दीपा गुप्ता के परिजनों ने SGMH प्रशासन पर अत्यंत गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनकी जांच आवश्यक है:

  • इलाज में घोर देरी: मृतका की मां के अनुसार, वे दीपा को 7 अक्टूबर को सतना जिला अस्पताल से रेफर कराने के बाद SGMH लाए थे। आरोप है कि दो दिनों तक (48 घंटे) दीपा को वॉर्ड में सिर्फ लिटाकर रखा गया और कोई सही इलाज शुरू नहीं किया गया।
  • समय पर इलाज न मिलना: परिजनों का साफ कहना है कि समय पर इलाज न मिलने के कारण ही दीपा और उसके अजन्मे बच्चे की मौत हुई है।
  • मारपीट और जबरन इंजेक्शन: दीपा की मां ने रोते हुए आरोप लगाया कि इलाज की गुहार लगाने पर अस्पताल के कर्मचारियों ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें एक खाली इंजेक्शन (Empty injection) तक लगा दिया। यह आरोप सरकारी अस्पताल में मारपीट पर क्या करें, इस सवाल को खड़ा करता है।

परिजनों का यह आक्रोश SGMH की चिकित्सा प्रणाली के प्रति अविश्वास को दर्शाता है।

अस्पताल का बचाव: 'पीलिया था, हालत पहले से गंभीर थी' 
इस पूरे मामले में अस्पताल प्रबंधन ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। अस्पताल की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण निम्नलिखित है:

  • गंभीर हालत में रेफर: प्रबंधन ने कहा कि महिला को जब यहाँ लाया गया था, तब उसे पीलिया (Jaundice) था और वह यूरिन पास नहीं कर पा रही थी। उसकी हालत बेहद गंभीर (Extremely critical) थी।
  • ऑपरेशन और प्रयास: डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर बच्चे को निकालने का प्रयास किया, लेकिन महिला का ब्लड प्रेशर काफी बढ़ गया था।
  • वेंटिलेटर पर रखा गया: हालत बिगड़ने पर उसे वेंटिलेटर (Ventilator) पर रखा गया। प्रबंधन ने दावा किया कि डॉक्टरों ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई।
  • आरोपों का खंडन: अस्पताल ने मारपीट के आरोप को भी पूरी तरह गलत बताया है और डॉक्टरों की लापरवाही (Doctors' negligence) के आरोप को भी निराधार ठहराया है।

जिम्मेदारों पर सवाल: 13 साल के बच्चे की मौत का मामला अभी थमा भी नहीं था 
यह दुखद घटना ऐसे समय में हुई है जब SGMH पहले से ही सवालों के घेरे में है।

  • पुनरावृत्ति का खतरा: कुछ ही दिन पहले, 13 वर्षीय मनीष साहू की भी कथित तौर पर इलाज में देरी के कारण मौत हो गई थी।
  • तालमेल की कमी: उस मामले में अस्पताल की अपनी जांच रिपोर्ट में विभिन्न विभागों के बीच तालमेल की कमी की बात सामने आई थी।

इस दूसरी घटना ने यह साबित कर दिया है कि पिछली घटना से अस्पताल प्रशासन ने कोई सबक नहीं सीखा है। यह दिखाता है कि संजय गांधी अस्पताल में इलाज कैसा होता है, इस पर उच्च अधिकारियों को गंभीरता से ध्यान देना होगा, क्योंकि चिकित्सा व्यवस्था की साख लगातार गिरती जा रही है।

निष्कर्ष: चिकित्सा व्यवस्था की गिरती साख और आक्रोश 
गर्भवती महिला और उसके बच्चे की मौत का यह मामला SGMH की प्रशासनिक और चिकित्सकीय जवाबदेही पर गहरा प्रश्नचिह्न है। जब तक डॉक्टरों की लापरवाही पर कहाँ शिकायत करें, इस प्रक्रिया को पारदर्शी और कठोर नहीं बनाया जाता, तब तक ऐसे मामलों में परिजनों का आक्रोश और न्याय की मांग जारी रहेगी। यह जरूरी है कि अस्पताल प्रबंधन केवल आरोपों को नकारने के बजाय गहन और निष्पक्ष जांच कराए।