चीख उठा रीवा सुपर स्पेशलिटी: 'मंत्रीजी' के गृह जिले में मौत का 'नंगा नाच'! कौन है इस मौत का ज़िम्मेदार? क्या सिस्टम सो रहा है, या पूरा स्वास्थ्य विभाग ही वेंटिलेटर पर है?

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा का सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में है, लेकिन इस बार सवाल इतने गहरे हैं कि सीधे स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव हिला रहे हैं. एक महिला मरीज की उपचार के दौरान हुई मौत और उसके बाद परिजनों के दिल दहला देने वाले हंगामे ने अस्पताल में व्याप्त घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता की पोल खोल दी है. यह कोई एक घटना नहीं, बल्कि स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में 'भगवान' माने जाने वाले डॉक्टरों और 'व्यवस्था' के नाम पर पसरी अराजकता का भयावह सच है.

मौत का जिम्मेदार कौन? जब सीनियर डॉक्टरों ने तीन दिन तक मुड़कर भी नहीं देखा!
मृतिका की ननद, मालती साकेत (निवासी मुकुंदपुर) का दर्द चीख-चीखकर बता रहा है कि उनकी भाभी को 4 दिन पहले संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर सुपर स्पेशलिटी रेफर किया गया. लेकिन अगले तीन दिनों तक, जब उनकी भाभी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं, एक भी सीनियर डॉक्टर ने उन्हें देखा तक नहीं!

परिजनों का आरोप है कि महिला को चक्कर और हाई बीपी की शिकायत पर लाया गया था, और 25 तारीख को सिटी स्कैन में उनके ब्रेन डैमेज की पुष्टि हो चुकी थी. इसके बावजूद, डॉक्टरों ने मरीज पर ध्यान नहीं दिया. क्या यह जानबूझकर की गई लापरवाही नहीं? जब अस्पताल में एक मरीज 'ब्रेन डैमेज' की स्थिति में हो और 72 घंटे तक कोई बड़ा डॉक्टर उसे न देखे, तो इस मौत का जिम्मेदार कौन है? क्या यह चिकित्सीय उपेक्षा नहीं तो और क्या है?

परिजनों को अपनी मरीज को लेकर पूरे अस्पताल में घुमाया जाता रहा, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली. इस असंवेदनशील व्यवहार ने अस्पताल की मानवता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.

क्या सिस्टम सो रहा है, या स्वास्थ्य विभाग ही 'कोमा' में है?
यह घटना तब हुई है जब रीवा, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला है. यहाँ के सबसे बड़े और आधुनिक कहे जाने वाले अस्पताल की यह हालत है तो प्रदेश की बाकी स्वास्थ्य व्यवस्था का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं.

  • क्या सुपर स्पेशलिटी अस्पताल सिर्फ नाम का 'सुपर' है, हकीकत में 'लापरवाही का सुपर-स्पॉट' बन गया है?
  • सीनियर डॉक्टर क्यों नहीं देखते मरीजों को? क्या उन पर कोई लगाम नहीं है?
  • अस्पताल प्रशासन क्या कर रहा है जब मरीज बिना ध्यान दिए मर रहे हैं? क्या वे मरीजों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?
  • स्वास्थ्य विभाग, जिसका काम जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं देना है, क्या खुद 'कोमा' में चला गया है? क्या बड़े अधिकारी सिर्फ कागज़ों पर ही व्यवस्था सुधार रहे हैं?

इस घटना ने जनता के बीच व्याप्त विश्वास को पूरी तरह तोड़ दिया है कि इस अस्पताल में उन्हें सही उपचार मिल पाएगा. मरीजों को इलाज के बजाय सिर्फ घुमाया जा रहा है और मौत के मुंह में धकेला जा रहा है.

तत्काल उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग!
यह समय सिर्फ हंगामा करने का नहीं, बल्कि जवाबदेही तय करने का है. इस मामले की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए. दोषी डॉक्टरों और लापरवाह अस्पताल प्रशासन के खिलाफ मिसाल कायम करने वाली कड़ी कार्रवाई की जाए. स्वास्थ्य मंत्री को खुद इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि रीवा के स्वास्थ्य सिस्टम को वेंटिलेटर से हटाकर दुरुस्त किया जाए. वहीं पूरे मामले में संजय गांधी अस्पताल और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल प्रबंधन ने लग रहे आरोपों को निराधार बताया है और मरीज के इलाज में 100 प्रतिशत देने का दावा किया है।

रीवा की जनता जानना चाहती है: आखिर कब तक मौतें होंगी और कौन लेगा इनकी जिम्मेदारी?