रीवा में 71 जर्जर स्कूल भवनों पर मौत का साया, कलेक्टर का कड़ा रुख- हादसे पर दर्ज होगा आपराधिक मामला; पर सवाल- अब तक कहाँ सो रहे थे रीवा के BEO-DEO?

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो)  रीवा जिले में 71 ऐसे स्कूल भवन हैं, जो 'मौत के टाइम बम' पर टिके हैं। बारिश का मौसम आ चुका है और इन जर्जर इमारतों में पढ़ रहे बच्चों की जान हर पल खतरे में है। कलेक्टर प्रतिभा पाल ने अब सख्त रवैया अपनाते हुए तीन दिन में रिपोर्ट और सात दिन में जर्जर भवनों को गिराने का आदेश दिया है, साथ ही चेतावनी दी है कि दुर्घटना होने पर सीधे आपराधिक मामला दर्ज होगा। लेकिन सवाल यह है कि रीवा के ये 'महान' बीईओ (ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर) और डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी) अब तक कहाँ सो रहे थे?

कलेक्टर का सख्त निर्देश: तीन दिन में रिपोर्ट, सात दिन में ध्वस्तीकरण
जानकारी के अनुसार, रीवा जिले में कुल 71 जर्जर स्कूल भवनों की पहचान की गई है, जो मानसून के मौसम में कभी भी गिर सकते हैं। कलेक्टर प्रतिभा पाल ने जिला शिक्षा अधिकारी (DEO), जिला परियोजना समन्वयक (DPC) और सभी ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों (BEO) व ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर (BRC) को इन भवनों की वर्तमान स्थिति पर तीन दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

इतना ही नहीं, कलेक्टर ने इन 71 जर्जर स्कूलों को तत्काल प्रभाव से वैकल्पिक और सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। साथ ही, जर्जर भवनों को सात दिनों के भीतर गिराकर उसकी रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने को कहा गया है।

हादसा होने पर दर्ज होगा आपराधिक मामला:
कलेक्टर प्रतिभा पाल ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि किसी भी जर्जर भवन में कोई दुर्घटना होती है और बच्चे या कोई अन्य व्यक्ति हताहत होता है, तो इसके लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ सीधे आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा। यह निर्देश प्रशासन की गंभीरता को दर्शाता है, खासकर पिछले साल की दुखद घटना के बाद।

पिछले साल के हादसे से सबक:
यह सख्त कदम पिछले साल रीवा में हुई एक दुखद घटना के मद्देनजर उठाया गया है। पिछले वर्ष, रीवा में एक स्कूल की बगल की दीवार गिर गई थी, जिसके मलबे में दबकर चार मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। यह दर्दनाक हादसा बच्चों के स्कूल से घर लौटते समय हुआ था। इस घटना के बाद से ही जिले में जर्जर स्कूल भवनों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की मांग उठ रही थी, और इस साल प्रशासन ने एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं ताकि ऐसी किसी भी अप्रिय घटना की पुनरावृत्ति न हो।

कलेक्टर के इन निर्देशों के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है और अधिकारी जर्जर भवनों के संबंध में तत्काल कार्रवाई करने में जुट गए हैं।

लापरवाही की इंतहा:
एक तरफ कलेक्टर 'आपराधिक मामला' दर्ज करने की बात कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ यह समझना मुश्किल है कि आखिर रीवा के सभी बीईओ और डीईओ महोदय इतने समय से कर क्या रहे थे? क्या उन्हें इन 71 जर्जर भवनों की जानकारी नहीं थी? क्या बारिश का मौसम आने पर ही उन्हें बच्चों की सुरक्षा याद आती है? पिछले साल रीवा में एक स्कूल की दीवार गिरने से चार मासूमों की जान चली गई थी, क्या उस भयावह हादसे से भी इन अधिकारियों ने कोई सबक नहीं सीखा?

किस जांच का इंतजार?
हर साल बारिश से पहले ऐसी 'रिपोर्ट' और 'जांच' की खानापूर्ति क्यों होती है? यह कोई नई समस्या नहीं है। ये जर्जर भवन रातोंरात नहीं बने हैं। आखिर इन बीईओ और डीईओ के रहते हुए ये स्कूल वर्षों से 'मौत के कुएं' क्यों बने रहे? क्या इनकी ड्यूटी सिर्फ एसी कमरों में बैठकर 'आदेशों' का इंतजार करना है? अगर ये अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, तो इनके खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए? सिर्फ नोटिस या तबादला काफी नहीं है, जब बात मासूम बच्चों की जिंदगी की हो। ऐसे अधिकारियों पर सीधे बर्खास्तगी की तलवार लटकनी चाहिए और इन पर भी लापरवाही के लिए आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज होना चाहिए, क्योंकि इनकी निष्क्रियता ही बच्चों की जान को खतरे में डाल रही है।

अब वक्त है एक्शन का, सिर्फ कागजी कार्रवाई का नहीं! रीवा की जनता जवाब चाहती है कि इन लापरवाह अधिकारियों पर कब और क्या कार्रवाई होगी, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही की हिम्मत कोई और अधिकारी न कर सके।