REWA : पिता की हरकत से SP से लेकर कलेक्टर तक सब परेशान : पति पत्नी में अनबन, इंश्योरेंस कंपनी से एक लाख का बीमा क्लेम निकालने पिता ने जिंदा बेटी को बताया मृत

 

REWA : पिता की हरकत से SP से लेकर कलेक्टर तक सब परेशान : पति पत्नी में अनबन, इंश्योरेंस कंपनी से एक लाख का बीमा क्लेम निकालने पिता ने जिंदा बेटी को बताया मृत

रीवा शहर में एक मानसिक रूप से कमजोर पिता की हरकत से एसपी से लेकर कलेक्टर व पूरा जिला प्रशासन परेशान हो गया। पुलिस के मुताबिक पत्नी की पति से अनबन हो गई थी। ऐसे में वह 6 वर्षीय बेटी को लेकर अपने मायके चली गई। इधर इंश्योरेंस कंपनी से 1 लाख रुपए बीमा क्लेम निकालने के लिए पिता जिन्दा बेटी को मृत बताया दिया।

हालांकि जब गलती का अहसास हुआ तो वह बीमारी के पर्चे को लगाकर मृत्यु प्रमाण पत्र नगर निगम में जाकर निरस्त कराया दिया। 15 दिन पहले पत्नी किसी के बहकावे में आकर एसपी से​ शिकायत करने पहुंची। तो जांच शुरू हो गई। वहीं बीते मंगलवार को जनसुनवाई में महिला ने आवेदन देकर सनसनी फैला दी। ऐसे में कलेक्टर ने पूरे मामले को संज्ञान लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने वाली टीम के खिलाफ एफआईआर के निर्देश सिटी कोतवाली थाने को दे दिए।

कोतवाल की जुबानी असली कहानी

निरीक्षक एपी सिंह के मुताबिक, सिटी कोतवाली थाना अंतर्गत लखौरी बाग निवासी मनोज यादव की 6 माह पहले पत्नी रेणुका यादव से विवाद हो गया था। जिससे 4 माह पहले पत्नी 6 वर्षीय बेटी को लेकर मायके चली गई। इसी बीच मानसिक रूप से बीमार मनोज यादव के मन में सनक सवार हो गई। वह गुस्से में आकर बेटी के इंश्योरेंस का क्लेम निकालने का प्लान बनाया। राशि हथियाने के लिए नगर निगम में मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने का आवेदन कर दिया। इसके बाद मृत्यु प्रमाण पत्र उसको मिल भी गया। इसी बीच उसको गलती का अहसास हो गया। चर्चा है कि एलआईसी ने पैसे देने से मना कर दिया था। हो सकता है उनको वह मानसिक बीमार लगा हो।

स्वयं पहुंचा मृत्यु प्रमाण पत्र निरस्त कराने

दावा है कि मनोज यादव एक बार​ फिर नगर निगम पहुंचकर बेटी के मृत्यु प्रमाण पत्र को निरस्त कराने का आवेदन अधिकारियों को दिया। निगम के जिम्मेदारों ने जब निरस्ती का कारण पूछा तो उसने अपनी मानसिक बीमारी का हवाला देकर पर्चा आदि जमा कर दिए। नगर निगम के अधिकारियों ने 6 वर्षीय जिंदा बेटी के मृत्यु प्रमाण निरस्त कर दिया। साथ ही मनोज यादव से मा​​नसिक बीमारी से संबंधित सभी दस्तावेज फाइल में लगाकर बंद कर दिया।

सबसे पहले पहुंची एसपी के पास शिकायत

थाना प्रभारी की मानें तो 15 दिन पहले रेणुका यादव एसपी नवनीत भसीन के पास शिकायत लेकर पहुंची थी। उसने कहा था कि फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर बेटी के नाम का पैसा उसका पति निकाल चुका है। शिकायत कापी जब थाने पहुंची तो निरीक्षक ने जांच की। जांच के दौरान उन्होंने नगर निगम की पंजीयन शाखा से रेणुका यादव की बेटी के मृत्यु प्रमाण पत्र के रिकॉर्ड तलब किए। जहां से नगर निगम द्वारा पूरी ​नस्ती भेज दी गई। निगम की ओर से आई फाइल में मृत्यु प्रमाण पत्र बनना, फिर निरस्त होना, साथ ही पति के मानसिक बीमार होने के दस्ताबेज लगे मिले। दूसरी तरह बीमा कंपनी ने बेटी के नाम का कोई भी क्लेम नहीं निकलने की बात बताई है।

मंगलवार को जनसुनवाई में हुई शिकायत

बीते मंगलवार को रेणुका यादव जनसुनवाई में कलेक्टर इलैयाराजा टी के सामने पिता द्वारा बेटी का फर्जी तरीके से मृत्यु प्रमाण पत्र बनने व एलआईसी से पैसा निकल जाने का दावा किया। रेणुका की बात सुनकर कलेक्टर हरकत में आ गए। उन्होंने तुरंत नगर निगम आयुक्त मृणाल मीणा को पत्र लिखकर संबंधित निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए। निगमायुक्त ने कलेक्टर के आदेश के बाद तुरंत एफआईआर के लिए सिटी कोतवाली थाने संबंधित शाखा प्रभारी को भेजे।

पार्षद और पिता सहित 7 पर FIR के आदेश

फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करने के मामले में नगर निगम ने सात लोगों के खिलाफ कार्यवाही के लिए थाना सिटी कोतवाली को पत्र लिखा है। जिसमे 6 वर्षीय बच्ची का पिता मनोज यादव, वार्ड क्रमांक दो के तत्कालीन पार्षद क्षितिज मणि त्रिपाठी, सज्जन पटेल, रुची त्रिपाठी, हरि बुनकर, पुनीत पटेल, महेश वर्मा का नाम शामिल था। तब दावा था कि जांच के दौरान अन्य लोगों की भी गर्दन फंस सकती है।

अब नहीं दर्ज होगा अपराध

निरीक्षक एपी सिंह ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि एसपी की ओर से आई शिकायत की जांच पहले ही पूरी हो गई थी। 25 नवंबर को नगर निगम की ओर से एफआईआर के लिए पत्र आया है। वहीं इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारियों की मानें तो 6 वर्षीय बेटी के बीमा से कोई क्लेम नहीं निकला है। वहीं दूसरी तरफ नगर निगम के जिम्मेदार एक बार मृत्यु प्रमाण पत्र बना दिए। दूसरी बार निरस्त कर दिए। साथ ही मृत्यु प्रमाण पत्र ​कैंसिल होने के कारण पिता की मानसिक स्थित का कमजोर होना बताया है। ऐसे में अपराध नहीं बनता है। इस केस में आगे क्या करना है इसके लिए वरिष्ठ अधिकारियों से मार्गदर्शन मांगा गया है।

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