दवा सप्लाई घोटाला: अन्नपूर्णा स्टोर पर घटिया दवाओं से जनता की जान को खतरा, डॉक्टरों की मिलीभगत से नकली और जेनरिक दवाएँ बेचकर कमाई! 

 
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घटिया दवा सप्लाई से जनता की जान से खिलवाड़! प्रशासन ने स्टोर सील किया; CM से उच्चस्तरीय न्यायिक जांच और दोषी डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई की मांग।

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) संजय गांधी अस्पताल के पास स्थित अन्नपूर्णा मेडिकल स्टोर पर हुई कार्रवाई ने रीवा की स्वास्थ्य व्यवस्था में व्याप्त अनैतिकता की सारी हदें तोड़ दी हैं। वायरल वीडियो और संचालक के बयान से स्पष्ट होता है कि यहाँ केवल घटिया दवाइयाँ नहीं, बल्कि एक संगठित रैकेट काम कर रहा था जहाँ डुप्लीकेट दवाइयों को कमीशन के आधार पर बेचा जा रहा था, भले ही मरीज को उनकी ज़रूरत न हो।

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मेडिकल स्टोर संचालक का पक्ष: जेनरिक दवाइयाँ नकली क्यों लगती हैं?

मेडिकल स्टोर संचालक ने अपने पक्ष में बताया कि वे वास्तव में नकली दवाइयाँ (Fake Medicines) नहीं बेच रहे थे, बल्कि वे नए और बाहरी ब्रांड्स की जेनरिक दवाइयाँ सप्लाई कर रहे थे। उनका तर्क था कि:

  • पहचान की कमी: ग्रामीण इलाकों में लोग केवल कुछ बड़े और प्रसिद्ध ब्रांड्स को ही असली दवा मानते हैं। जब उन्हें नए या कम-ज्ञात ब्रांड के नाम वाली जेनरिक दवाइयाँ दी जाती हैं, तो वे उन्हें नकली समझ बैठते हैं।

  • कम गुणवत्ता का संदेह: जेनरिक दवाइयाँ अक्सर ब्रांडेड दवाओं से बहुत सस्ती होती हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता (Generic Medicine Quality) पर संदेह होना स्वाभाविक है।

संचालक का यह बयान स्वास्थ्य विभाग की एक बड़ी समस्या की ओर ध्यान खींचता है, जहाँ जेनरिक दवाओं को लेकर आम जनता में जागरूकता (Generic Drugs Awareness) और विश्वास की कमी है। हालांकि, प्रशासन का कहना है कि सैंपल की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि दवाइयाँ वास्तव में घटिया थीं, नकली थीं, या सिर्फ जेनरिक थीं जिनकी गुणवत्ता पर सवाल थे।

संचालक ने खुद स्वीकार किया कि:

  • कमीशन का गणित: "ऐसी दवाइयाँ कमीशन के हिसाब से चलती हैं जिनकी ज़रूरत भी नहीं होती।"
  • डुप्लीकेसी की स्वीकारोक्ति: संचालक ने साफ कहा, "हमारे पास भी नकली दवाइयाँ हैं।"

डॉ. अखिलेश तिवारी पर सीधा आरोप: सिर्फ अन्नपूर्णा स्टोर से दवा लेने का दबाव 
इस पूरे जानलेवा गठजोड़ में डॉ. अखिलेश तिवारी (Dr. Akhilesh Tiwari) का नाम भी सामने आया है। आरोपों के अनुसार, डॉ. तिवारी सीधे अन्नपूर्णा मेडिकल स्टोर से सेटिंग पर काम कर रहे थे।

  • रेफरल का दबाव: वे मरीजों को ऐसी दवाइयाँ लिखते थे जो सिर्फ उसी मेडिकल स्टोर पर मिलती थीं, जिससे मरीज मजबूर होकर वहीं से महँगी और डुप्लीकेट दवाइयाँ खरीदने को मजबूर हो।
  • नैतिकता का पतन: सरकारी डॉक्टर का इस तरह दलाली और कमीशन के लिए एक विशेष स्टोर से जुड़ना चिकित्सा पेशे की नैतिकता का सबसे बड़ा उल्लंघन है।

संचालक का अपमानजनक बयान: "रीवा के डॉक्टर साले सनकी और पैसे के भूखे" 
वायरल वीडियो में अन्नपूर्णा स्टोर संचालक ने रीवा के डॉक्टरों के खिलाफ अपमानजनक और सनसनीखेज बयान दिया है, जो डॉक्टरों की वास्तविक मानसिकता को दर्शाता है।

  • संचालक ने साफ-साफ कहा: "रीवा के सारे डॉक्टर साले सनकी और मादरचोद हैं। इनके अंदर पैसे की हवस है। गरीब आदमी से अच्छे से बात नहीं करते।"
  • यह बयान इस बात का प्रमाण है कि मेडिकल स्टोर संचालक, जो इन डॉक्टरों के साथ मिलकर काम कर रहा था, वह भी उनके लालच और अनैतिक व्यवहार से परिचित था। यह दिखाता है कि डॉक्टरों के लिए मरीज सेवा नहीं, बल्कि पैसा कमाने का जरिया बन गया है।

नकली दवाईयों का रेट चार्ट: ₹300 की जगह ₹50, फिर भी कमीशन का खेल 
संचालक ने डुप्लीकेट दवाइयों की कीमतों का पर्दाफाश किया:

  • सस्ती दवाई पर भी कमीशन: ₹300 रुपये लिखा रहेगा, 50 रुपये में हम देते हैं।
  • महँगी डुप्लीकेट: ₹400 वाली नकली दवाई को ₹200 में देते हैं।

इसका अर्थ है कि मेडिकल स्टोर और डॉक्टर, दोनों तरफ से मार्जिन कमा रहे हैं। मरीज को कम कीमत में नकली दवाई मिलती है, जिससे वह खुश होता है, लेकिन वास्तव में वह ठीक नहीं होता और उसकी जान खतरे में पड़ती है।

सीएमएचओ और स्वास्थ्य मंत्री से प्रश्न: कब होगा लाइसेंस रद्द और गिरफ्तारी? 

  • सीएमएचओ की मिलीभगत: सीएमएचओ (CMHO) पर अवैध अस्पताल सजीवन को पाँच साल तक बिना पंजीयन के चलने देने का सीधा आरोप है, जो सीएमएचओ की वसूली और भ्रष्टाचार में मिलीभगत को साबित करता है।
  • कार्रवाई की मांग: क्या डॉ. अखिलेश तिवारी और अन्य सेटिंगबाज डॉक्टरों का लाइसेंस रद्द किया जाएगा? क्या अन्नपूर्णा स्टोर संचालक के खिलाफ डुप्लीकेसी और सार्वजनिक अपमान के लिए गिरफ्तारी की जाएगी?

संजय गांधी अस्पताल का काला धंधा: गरीब मरीज बने शिकार 
संजय गांधी अस्पताल के आसपास हो रहा यह काला धंधा स्पष्ट करता है कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पूरी तरह से सड़ चुका है। गरीब मरीज, जो इलाज के लिए यहाँ आते हैं, उन्हें डॉक्टरों की दलाली और नकली दवाइयों के चक्रव्यूह में फंसा दिया जाता है, जिससे उनके किडनी-लीवर डैमेज हो रहे हैं। यह मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए सख्त और निर्णायक कार्रवाई का समय है। 

  • प्रशासन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषी पाए जाने वाले सभी पक्षों—चाहे वे मेडिकल स्टोर संचालक हों, दवा कंपनी के प्रतिनिधि हों, या वे डॉक्टर जो घटिया दवाइयाँ लिखते पाए जाएंगे—के खिलाफ सख्त वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।

इस पूरे मामले ने यह अनिवार्य कर दिया है कि स्वास्थ्य तंत्र (Health System) की विश्वसनीयता (Reliability) को बहाल करने के लिए तुरंत और बड़े सुधार किए जाएं। जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह के दवा सप्लाई में भ्रष्टाचार (Drug Supply Corruption) को रोका जा सके।

डॉक्टरों की नैतिकता पर प्रश्न: $\text{नकली/घटिया दवाइयाँ क्यों लिखी जा रही थीं? 

वीडियो रिपोर्ट में मेडिकल स्टोर संचालक का यह स्वीकारोक्ति (Admission) कि कुछ डॉक्टर नकली/घटिया दवाओं के बदले कम गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाइयाँ (Substandard Generic Drugs) लिखते थे, इस संकट की सबसे बड़ी जड़ है।

  • दवा की प्रभावशीलता (Efficacy): ये जेनरिक दवाइयाँ, भले ही तकनीकी रूप से नकली न हों, यदि गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं, तो वे मरीजों के इलाज में अप्रभावी साबित होती हैं।

  • आपराधिक कृत्य (Criminal Act): मरीजों को जानबूझकर अप्रभावी दवाएँ देना, उनके जीवन के साथ एक जघन्य खिलवाड़ है। यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि आपराधिक लापरवाही (Criminal Negligence) का मामला है।

मुख्यमंत्री को इन डॉक्टरों की पहचान करने और उनके लाइसेंस रद्द करने के लिए मेडिकल काउंसिल (Medical Council) को तुरंत निर्देश जारी करने चाहिए।

प्रशासनिक विफलता और तत्काल कार्रवाई: अन्नपूर्णा स्टोर सील, जांच की दिशा क्या हो?

मामला सामने आने के बाद प्रशासन ने अन्नपूर्णा मेडिकल स्टोर को सील (Sealed) कर दिया है और दवाओं के सैंपल जांच के लिए भेजे हैं। हालांकि, यह कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। मुख्यमंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि:

  • टाइम-बाउंड जांच (Time-Bound Probe): जांच दल को दवाओं के नमूनों की गुणवत्ता की रिपोर्ट एक सख्त समय सीमा (Strict Timeline) के भीतर जमा करने का आदेश दिया जाए।

  • वितरण श्रृंखला की जाँच (Supply Chain Audit): यह जांच केवल मेडिकल स्टोर तक सीमित न रहे। इसमें दवा कंपनी के उत्पादन संयंत्र (Manufacturing Unit) और वितरण श्रृंखला (Distribution Chain) में शामिल सभी बिचौलियों की गहराई से जाँच होनी चाहिए।

  • दोषियों पर रासुका (NSA) की मांग: जन स्वास्थ्य को खतरे में डालने के आरोप में दोषियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) जैसे सख्त प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए, जैसा कि जांच रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

CM को जनहित में $\text{क्या कदम उठाने चाहिए? 

राज्य के मुखिया होने के नाते, मुख्यमंत्री को इस संकट से निपटने के लिए निम्नलिखित युद्ध स्तर के कदम (Wartime Measures) उठाने चाहिए:

  1. स्वतंत्र आयोग का गठन: स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग (Independent Judicial Commission) का गठन करना।

  2. जेनरिक दवा जागरूकता अभियान: जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता और ब्रांड पहचान पर जनता के बीच विश्वास बनाने के लिए एक व्यापक, राज्यव्यापी जागरूकता अभियान (Awareness Campaign) चलाना।

  3. व्हिसलब्लोअर सुरक्षा (Whistleblower Protection): स्वास्थ्य और फार्मा सेक्टर में भ्रष्टाचार उजागर करने वाले कर्मचारियों और डॉक्टरों के लिए सुरक्षा और पुरस्कार योजना लागू करना।

  4. दवा ऑडिट अनिवार्य: सभी निजी और सरकारी मेडिकल स्टोर की दवाओं की गुणवत्ता का नियमित और अनिवार्य ऑडिट (Mandatory Audit) सुनिश्चित करना।

इस गंभीर मामले में मुख्यमंत्री का त्वरित और सख्त हस्तक्षेप ही स्वास्थ्य तंत्र की विश्वसनीयता (Health System's Reliability) को बचा सकता है और जनता के जीवन के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को सुनिश्चित कर सकता है।

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