निलंबित सुदामा गुप्ता की धमाकेदार वापसी, कमिश्नर के एक आदेश से JD ऑफिस में मचा भूचाल! फर्जीवाड़े का सच आया सामने, असली गुनहगार कौन?
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा से आई यह खबर प्रशासनिक गलियारों में 'भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं' वाली पुरानी कहावत को चरितार्थ करती है। अनुकम्पा नियुक्ति घोटाले में प्रशासनिक आधार पर निलंबित किए गए पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) सुदामा लाल गुप्ता को अंततः न्याय मिल गया है। उनकी बहाली का आदेश स्वयं कमिश्नर रीवा, बी.एस. जामोद द्वारा जारी किया गया है। कमिश्नर ने न सिर्फ उनका निलंबन समाप्त किया है, बल्कि उनकी पुरानी कुशल कार्यशैली को देखते हुए उन्हें जेडी कार्यालय रीवा (संयुक्त संचालक लोक शिक्षण रीवा संभाग) में सहायक संचालक के महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ किया है।
अनुकम्पा नियुक्ति घोटाला और निलंबन
श्री सुदामा लाल गुप्ता को डीईओ कार्यालय रीवा में अनुकम्पा नियुक्ति प्रकरणों में लापरवाही पूर्वक कार्यवाही करने के आरोप में 23.06.2025 को निलंबित किया गया था। यह निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि अनुकम्पा नियुक्ति के प्रकरणों में निहित प्रावधानों के अनुसार, प्रकरणों की अंतिम स्वीकृति देने वाला नियोक्ता (DEO) ही प्रशासनिक रूप से दोषी माना जाता है, भले ही गलती अधीनस्थ कर्मचारियों की हो। इसी प्रशासनिक आधार पर कमिश्नर द्वारा डीईओ को निलंबित कर दिया गया था।
निर्दोषता का प्रमाण और मुख्य दोषियों का विवरण
खबर के अनुसार, सुदामा लाल गुप्ता सीधे तौर पर दोषी नहीं थे। यह लापरवाही दो मुख्य कर्मचारियों द्वारा की गई थी:
- लिपिक (Clerk): रमा प्रसन्नधर द्विवेदी, जिसने नस्ती तैयार की थी।
- लिंक अधिकारी (Link Officer): अखिलेश मिश्रा, जिसने नस्ती एवं अभिलेखों की जांच कर अनुकम्पा नियुक्ति दिए जाने की गलत अनुशंसा की थी।
मुख्य दोषी कौन था?
इस पूरे प्रकरण में मुख्य रूप से लिंक अधिकारी अखिलेश मिश्रा की बड़ी लापरवाही उजागर हुई थी। उन्हें भी कमिश्नर द्वारा निलंबित किया गया था, किंतु वह कानूनी राहत पाने में सफल रहे। अखिलेश मिश्रा ने न्यायालय से स्थगन (Stay) प्राप्त कर लिया और वे पुनः अपने पद पर विराजमान हो गए।
तत्कालीन डीईओ की ईमानदार कार्यवाही
यह महत्वपूर्ण है कि मामला उजागर होने के बाद तत्कालीन डीईओ सुदामा गुप्ता ने ही ईमानदारी दिखाते हुए जांच शुरू कराई और स्वयं सिविल लाइन थाने जाकर दोषी लिपिक एवं 06 अन्य के विरुद्ध एफआईआर (FIR) दर्ज कराई थी। यह तथ्य उनकी नीयत और निर्दोषता का सबसे बड़ा प्रमाण था।
बहाली का आधार और नई पदस्थापना
निलंबन के पश्चात, श्री गुप्ता को आरोप पत्रादि जारी किए गए थे। इसके जवाब में, श्री गुप्ता द्वारा 08.08.2025 को आरोपों का बिंदुवार प्रतिवाद (Point-wise rebuttal) प्रस्तुत किया गया, जिसमें निलंबन से बहाली का अनुरोध किया गया था। कमिश्नर रीवा ने उनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवाद पर पूर्ण विचारोपरांत उन्हें बहाल करने का निर्णय लिया।
सहायक संचालक पद पर पदस्थापना क्यों हुई?
कमिश्नर ने सिर्फ बहाली नहीं की, बल्कि उनकी कुशल कार्यशैली को पुरस्कृत भी किया। डीईओ पद पर अपनी पदस्थापना के दौरान श्री गुप्ता द्वारा शिक्षकों के हित में भरपूर कार्य किया गया था। उनके अच्छे कार्यों में शामिल हैं:
शिक्षकों की क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान का निराकरण।
- उच्चपद प्रभार संबंधी मामलों में तत्परता।
- अतिशेष शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण।
- लंबित अन्य मामलों के निराकरण में तेजी।
इन्हीं सकारात्मक कार्यों को देखते हुए उन्हें कार्यालय संयुक्त संचालक लोक शिक्षण रीवा संभाग में सहायक संचालक के पद पर पदस्थ किया गया है।
सेवाकाल के अच्छे कार्य और विभागीय जांच
हालांकि श्री गुप्ता को बहाल कर दिया गया है और उन्होंने सहायक संचालक का पदभार ग्रहण कर लिया है, उनके विरुद्ध नियमित विभागीय जांच अभी भी जारी है। सरकारी नियमों के अनुसार, निलंबन अवधि के स्वत्वों (Arrears/Dues) का भुगतान विभागीय जांच के निराकरण के बाद ही किया जाएगा। यह प्रशासनिक प्रक्रिया का एक मानक हिस्सा है।
लालची प्रवृत्ति के लोगों का विरोध
खबर में स्पष्ट किया गया है कि अच्छे आदमी के दुश्मन भी बहुत होते हैं। श्री गुप्ता की बहाली से कुछ लालची प्रवृत्ति के लोग संतुष्ट नहीं हैं। ये लोग चंद पैसों की लालच के लिए सोशल मीडिया या समाचार पत्रों में अनाप-शनाप खबरें छपवाकर उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।
बहाली पर कोई प्रभाव नहीं
यह भी सुनिश्चित किया गया है कि इन विरोधों का सुदामा लाल गुप्ता की पदस्थापना पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि बहाली के बाद उन्होंने सहायक संचालक पद पर अपनी आमद (Joining) दर्ज कर दी है और विधिवत रूप से कार्य कर रहे हैं।