रीवा अस्पताल चौराहे पर हाहाकार: कलेक्टर की सख्ती के खिलाफ एकजुट हुए Medical Store Operators, प्रशासन और जनता में आर-पार की लड़ाई!

 
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प्रशासन की 'मानवीय संवेदनाओं' के बिना छापामार कार्रवाई! कलेक्टर प्रतिभा पाल के निर्देश पर क्यों भड़के संचालक? फार्मासिस्ट अनिवार्यता और एक्सपायरी दवाओं पर छिड़ा विवाद। 

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर के अस्पताल चौराहा पर उस समय अफरातफरी मच गई, जब प्रशासन ने कलेक्टर प्रतिभा पाल के निर्देश पर बिना किसी पूर्व सूचना के मेडिकल स्टोरों पर छापामार कार्रवाई करते हुए कई दुकानों को सील कर दिया। इस अंधाधुंध सख्ती के खिलाफ मेडिकल स्टोर संचालकों में गहरा असंतोष फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने विरोध स्वरूप अपनी सभी दुकानें अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी हैं।

इस सामूहिक बंद से मरीजों और उनके परिजनों को दवाइयां लेने में कठिनाई हो रही है। अस्पताल के पास स्थित दुकानें बंद होने से विशेष रूप से गंभीर मरीजों के लिए दवा उपलब्धता में बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है।

प्रशासन और व्यवसायियों के बीच भरोसे की कमी
संचालकों का स्पष्ट आरोप है कि यह कार्रवाई अमानवीय और पूर्वाग्रह से प्रेरित है। उनका कहना है कि:

  • "हम कोई अपराधी नहीं हैं, बल्कि कोविड काल में हमने अपने जीवन की परवाह किए बिना सेवा दी है। प्रशासन द्वारा हमें अपराधी की तरह ट्रीट करना न केवल अनुचित है, बल्कि हमारी सेवा भावना का अपमान है।"

संचालकों का मानना है कि इस तरह की बिना सूचना के छापामार कार्रवाई ने मेडिकल व्यवसायों में भरोसे की कमी पैदा की है, जो न केवल व्यापार को प्रभावित करती है बल्कि आपात स्थिति में मरीजों को सेवा उपलब्ध कराने में भी बाधा डालती है।

फार्मासिस्ट की अनिवार्यता क्या है और अनुभव बनाम नियम का विवाद
कार्रवाई के मुख्य बिंदुओं में से एक था फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति। प्रशासन हर दुकान में Drug and Cosmetic Act के तहत फार्मासिस्ट की अनिवार्य उपस्थिति पर जोर दे रहा है, लेकिन मेडिकल स्टोर संचालकों ने इस पर कड़ा तर्क दिया है:

  • मानवीय दृष्टिकोण: संचालकों का तर्क है कि फार्मासिस्ट भी व्यक्ति होते हैं और वे कभी-कभी अस्थायी रूप से अनुपस्थित हो सकते हैं (जैसे भोजन या शौचालय के लिए)। प्रशासन को इस मानवीय पहलू को समझना चाहिए। 
  • अनुभव बनाम डिग्री: कई संचालकों का कहना है कि उनके अनुभव वाले सहायक, जो लंबे समय से काम कर रहे हैं, कई बार फार्मासिस्ट से बेहतर ज्ञान रखते हैं। इस स्थिति में, केवल तकनीकी नियम के आधार पर सीलिंग करना उचित नहीं है।

संचालक संघ के महासचिव शशि मिश्रा ने प्रशासन की कठोर कार्रवाई और पूर्वाग्रह की आलोचना करते हुए कहा कि जांच मानवीय संवेदनाओं के साथ की जानी चाहिए। यह दर्शाता है कि नियमों के पालन में लचीलापन और संवेदनशील दृष्टिकोण कितना आवश्यक है।

एक्सपायरी दवाओं पर आरोप और प्रशासन की जांच कैसी होनी चाहिए?
प्रशासन ने कार्रवाई के दौरान कुछ दुकानों पर एक्सपायरी दवाएं पाए जाने का आरोप भी लगाया है, जिसका संचालकों ने पुरजोर खंडन किया है।

  • एक्सपायरी दवाओं पर बचाव: शशि मिश्रा ने स्पष्ट किया कि एक्सपायरी उत्पादों को समय-समय पर थोक विक्रेताओं को वापस भी किया जाता है। एक्सपायरी दवाओं को सुरक्षित तरीके से संग्रहित करना दवा विक्रेताओं की ईमानदारी और नियमों का पालन दर्शाता है। यह आरोप लगाना कि वे जानबूझकर एक्सपायरी दवाएं बेच रहे थे, गलत और हतोत्साहित करने वाला है।
  • पूर्वाग्रह का आरोप: संचालकों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन केवल दवा विक्रेताओं को टारगेट कर रहा है, जबकि अन्य विभागीय अधिकारियों या अनियमितताओं की जांच नहीं होती। यह असमान व्यवहार व्यवसायों के लिए अनुचित और हतोत्साहित करने वाला है।

संचालकों की मांग है कि प्रशासन इस मामले में सम्मानजनक और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए। वे मांग करते हैं कि प्रशासन उनकी सेवाओं और Covid काल के योगदान को ध्यान में रखते हुए उनके साथ न्याय करे।

अंतिम चेतावनी: सामूहिक बंद से स्वास्थ्य सेवा ठप, प्रशासन का अगला कदम क्या होगा?
मेडिकल स्टोर संचालकों ने प्रशासन को स्पष्ट चेतावनी दी है: यदि उनकी मांगों पर संवेदनशीलता से विचार नहीं किया गया और अनुचित तरीके से सील की गई दुकानें नहीं खोली गईं, तो वे अपनी दुकानें बंद रखेंगे।

यह सामूहिक बंद न केवल उनके विरोध का प्रतीक है, बल्कि यह रीवा की स्वास्थ्य सेवाओं पर सीधा असर डाल रहा है। मरीजों और उनके परिजनों को तत्काल दवाइयां उपलब्ध न होने के कारण स्वास्थ्य सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। यह स्थिति कलेक्टर और जिला प्रशासन के लिए बड़ी चिंता का विषय होनी चाहिए, ताकि इस गतिरोध को तुरंत समाप्त किया जा सके और आम जनता को राहत मिल सके। प्रशासन को अब एक संतुलित राह अपनानी होगी, जिसमें कानून का पालन भी हो और मानवीय संवेदनाएं भी बरकरार रहें।

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