क्या आपने भी रीवा में नकली दवाई खरीदी? स्टिंग में पकड़े गए Medical Mafia! अब चुप्पी नहीं, जनता जागे! कौन हैं वे मंत्री-खास जो इन्हें बचा रहे?

 
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कमीशन के लालच में सरकारी डॉक्टर मरीजों को लिख रहे नकली और घटिया दवाइयाँ, वरिष्ठ डॉक्टर नदारद; गरीब जनता संपत्ति बेचकर निजी क्लीनिकों में इलाज को मजबूर।

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा की स्वास्थ्य व्यवस्था में व्याप्त मेडिकल माफिया नेटवर्क का खुलासा न केवल भ्रष्टाचार है, बल्कि यह सीधे-सीधे जनता की जान से किया गया खिलवाड़ है! जब एक स्टिंग ऑपरेशन में मेडिकल स्टोर संचालक स्वयं यह कबूल कर रहा है कि डॉक्टर की लिखी हुई फर्जी/नकली दवाइयाँ ही वे मरीजों को बेचते हैं, तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है: क्या यह व्यवस्था आम जनता के लिए है या कमीशनखोरों के लिए?

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यह धोखाधड़ी उस स्वास्थ्य विभाग में हो रही है, जिसकी जिम्मेदारी लोगों को जीवन देना है। सवाल यह है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और विभाग के अधिकारी क्या कर रहे हैं, जबकि रीवा में यह मनमानी खुलेआम चल रही है?

जब मेडिकल स्टोर संचालक खुद कबूल रहा: नकली दवाइयों की बिक्री पर चुप्पी क्यों? 
यह सबसे बड़ा सबूत है! जब मेडिकल स्टोर संचालक खुद यह बात स्वीकार कर रहा है कि नकली दवाइयों की बिक्री में डॉक्टर भागीदार हैं, तो फिर नकली दवाई बेचने वाले मेडिकल स्टोर वालों के खिलाफ क्यों कार्रवाई नहीं होती?

  • जनता की जान का खतरा: यह सीधा प्रमाण है कि रीवा में नकली और घटिया दवाइयाँ धड़ल्ले से बेची जा रही हैं, जिससे गरीब मरीज अपनी संपत्ति बेचकर भी इलाज की जगह जहर खरीद रहे हैं।
  • कानूनी विफलता: स्वास्थ्य विभाग और ड्रग कंट्रोलर की ओर से ठोस एक्शन न होना इस गठजोड़ को मजबूत कर रहा है। यह सीधे कानून की धज्जियां उड़ाना है।

सरकारी डॉक्टर का दोहरा चरित्र: निजी क्लिनिक में व्यस्त, सरकारी सेवा से मुक्ति क्यों नहीं? 
रीवा की स्वास्थ्य व्यवस्था का दूसरा सबसे बड़ा दाग है सरकारी डॉक्टरों का दोहरा चरित्र।

हकीकत यह है कि अनेक सरकारी डॉक्टर वरिष्ठ होकर भी सरकारी अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर नहीं आते, जबकि वे पूरा समय निजी क्लिनिकों और नर्सिंग होमों में दे रहे हैं।

  • जवाबदेही की मांग: ऐसे अनैतिक डॉक्टरों की तुरंत जाँच की जाए कि वे कितने असली डॉक्टर हैं और कितने नकली।
  • सीधा एक्शन: जो डॉक्टर सरकारी वेतन ले रहे हैं, लेकिन निजी क्लिनिक चलाकर कमीशन का खेल कर रहे हैं, उनका निजी क्लिनिक तुरंत बंद किया जाए और उन्हें सरकारी सेवा से मुक्त किया जाए। सीधा एक्शन होना चाहिए, तभी यह मजाक खत्म होगा।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का ध्यान दें: रीवा स्वास्थ्य व्यवस्था बनी मजाक, त्वरित एक्शन आवश्यक 
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी, यह मामला रीवा शहर में एक बड़ी कार्रवाई की मांग करता है! आपकी विकास-उन्मुख और भ्रष्टाचार-विरोधी सरकार में, स्वास्थ्य व्यवस्था का इस तरह मजाक बनकर रह जाना स्वीकार्य नहीं है।

हमारा आग्रह है:

  • त्वरित हस्तक्षेप: इस मेडिकल माफिया के खिलाफ सीधे एक्शन का निर्देश दिया जाए।
  • जाँच टीम: एक उच्च स्तरीय जाँच टीम गठित की जाए जो रीवा के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों की जाँच करे।

जाँच की मांग: कौन मंत्री-संतरी के खास हैं जो नियम तोड़ रहे? 
यह भी संदेह है कि इस भ्रष्टाचार में राजनीतिक संरक्षण शामिल है।

  • सत्ता का संरक्षण: यह पता लगाया जाए कि कौन से निजी अस्पताल और मेडिकल स्टोर किसी मंत्री या संत्री के खास या रिश्तेदार हैं।
  • पैसे लेकर भी काम नहीं: हर जगह घुसपैठ और गोलमाल करने वाले ये लोग पैसे लेकर भी लोगों का काम नहीं कर रहे, बल्कि उनकी जान खतरे में डाल रहे हैं।

यह पूरा सिस्टम लाचार हो चुका है। अब सिर्फ जाँच और कागजी कार्रवाई नहीं, बल्कि ठोस और निर्णायक एक्शन की जरूरत है!

सिस्टम की लाचारी खत्म हो: रीवा में हो एक 'सर्जिकल स्ट्राइक' 
रीवा को इस मेडिकल माफिया के चंगुल से निकालने के लिए सिस्टम की लाचारी को खत्म करना होगा। स्वास्थ्य व्यवस्था को मजाक बनने से रोकने के लिए, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को रीवा में एक 'सर्जिकल स्ट्राइक' करने की जरूरत है, जिसमें:

  • नकली दवाइयाँ लिखने वाले सभी डॉक्टरों की सूची सार्वजनिक हो।
  • अवैध रूप से निजी क्लिनिक चलाने वाले सरकारी डॉक्टरों की सेवा तत्काल समाप्त की जाए।
  • नकली दवाइयाँ बेचने वाले मेडिकल स्टोरों के लाइसेंस रद्द हों।

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