Rewa News : "कानूनी शिकंजे में रीवा का मेट्रो हॉस्पिटल: ₹4 लाख वसूली और डॉक्टर बीपी सिंह के खिलाफ मरीज की हत्या का आरोप!"

 
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"क्या मेट्रो हॉस्पिटल में मरीजों से ₹4 लाख की वसूली की जाती है? डॉक्टर बीपी सिंह पर गंभीर आरोप!"

ऋतुराज द्विवेदी। रीवा का मेट्रो हॉस्पिटल एक और गंभीर आरोप के घेरे में है। अस्पताल में इलाज के नाम पर ₹4 लाख की जबरन वसूली के बाद डॉ. बीपी सिंह का नाम सामने आया है, जिन्होंने मरीज की मौत के बाद भी इलाज जारी रखने का दावा किया और परिजनों से वसूली की रकम मांगी। इस घटना ने अस्पताल के खिलाफ भारी विवाद उत्पन्न कर दिया है। आरोप है कि डॉक्टर बीपी सिंह ने इलाज के दौरान मरीज से भारी रकम ली, लेकिन इलाज के दौरान मरीज की मौत हो गई और फिर डॉक्टर ने परिजनों से कहा, "ले जाओ एसजीएमएच।"
यह घटना स्वास्थ्य सेवा के नाम पर धोखाधड़ी और शोषण की एक नई मिसाल पेश कर रही है, जिसे कानूनी रूप से गंभीर अपराध माना जा सकता है।

मेट्रो हॉस्पिटल की लापरवाही और चिकित्सकीय मनमानी
मेट्रो हॉस्पिटल के डॉ. बीपी सिंह पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। आरोपों के अनुसार, उन्होंने इलाज के नाम पर मरीज को न केवल मानसिक और शारीरिक यातनाएं दीं, बल्कि जबरन रकम भी वसूली। अस्पताल ने बिना किसी स्पष्ट जानकारी के मरीज के परिजनों से ₹4 लाख की भारी रकम ली और बाद में इलाज की स्थिति में भी गलत बयानी की।

यह पूरी घटना प्रोफेशनल एथिक्स और चिकित्सा सेवाओं के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। डॉक्टर का यह व्यवहार न केवल मरीज के जीवन के साथ खिलवाड़ है, बल्कि अस्पताल की विश्वसनीयता और मरीजों के अधिकारों का भी उल्लंघन है।

क्या है पूरा मामला?
मरीज के परिजनों का आरोप है कि इलाज के दौरान डॉक्टर बीपी सिंह ने ₹4 लाख की भारी रकम वसूली। जब परिजनों ने भुगतान किया, तो डॉक्टर ने मरीज को एसजीएमएच भेजने की सलाह दी। परंतु, यह स्थिति तब गंभीर हो गई जब इलाज के दौरान मरीज की मौत हो गई और डॉक्टर ने इससे संबंधित कोई जानकारी नहीं दी।

क्या कहता है कानून?
भारतीय दंड संहिता (IPC):

धारा 384 – जबरन वसूली: अस्पताल और डॉक्टर पर आरोप है कि उन्होंने मरीज और परिजनों से जबरन पैसे वसूले, जो कि एक गंभीर अपराध है।
धारा 342 – गैरकानूनी रूप से रोकना: मरीज को बिना सहमति के रोककर उसकी मौत के बाद भी इलाज जारी रखना और पैसे मांगना, यह भी कानूनन अपराध है।
धारा 304 – गैर इरादतन हत्या: इलाज के नाम पर मरीज की लापरवाही से मौत हो जाना भी गंभीर आरोप है, जिससे यह धारा लागू हो सकती है।

क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट:
इस एक्ट के तहत, किसी भी चिकित्सक या अस्पताल द्वारा अनावश्यक इलाज या जबरन इलाज से मना किया जा सकता है। मेट्रो हॉस्पिटल के डॉक्टर बीपी सिंह ने यह नियम उल्लंघन किया और इलाज के नाम पर मरीज के परिजनों से जबरन पैसे वसूले, जो एक गंभीर अपराध है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019:
मरीज को उपभोक्ता माना जाता है और अस्पताल द्वारा दी गई सेवाओं की गुणवत्ता, पारदर्शिता और नियमों का पालन किया जाना चाहिए। मेट्रो हॉस्पिटल के खिलाफ यह अधिनियम भी लागू हो सकता है क्योंकि इलाज में घोर लापरवाही और धोखाधड़ी का आरोप है।

स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन से मांग
स्थानीय नागरिक और सामाजिक संगठनों ने सरकार और प्रशासन से इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि इस तरह की घटनाएं स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं, और ऐसे मामलों में दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

अस्पताल बंद करने की मांग और सख्त कार्रवाई
इस पूरे प्रकरण के बाद, कई नागरिकों और संस्थाओं ने मेट्रो हॉस्पिटल को तत्काल बंद करने की मांग की है। उन्हें विश्वास है कि इस मामले में अगर उचित कदम नहीं उठाए गए तो यह अस्पताल आगे भी मरीजों के साथ इस प्रकार की लापरवाही और धोखाधड़ी कर सकता है।

निष्कर्ष:
मेट्रो हॉस्पिटल और उसके चिकित्सक डॉ. बीपी सिंह द्वारा किए गए कृत्य ने एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले की तत्काल जांच कर कड़ी कार्रवाई करे और ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कड़ी निगरानी रखे।

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