कोर्ट के अंदर पुलिस और वकील भिड़े, समोसे के झगड़े ने सुलगाई आग! कुर्सी नहीं, पानी नहीं, प्रशासन की धमकियों से आजिज़ आए वकीलों ने भरी हुंकार—चार दिन में चाहिए इंसाफ या होगा 'महासंग्राम'!
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा का नवीन न्यायालय भवन इन दिनों अधिवक्ताओं और पुलिस प्रशासन के बीच उपजे एक गंभीर विवाद का केंद्र बन गया है। लगभग डेढ़ माह से अधिवक्ताओं के लिए उनके मूलभूत कार्य करने हेतु उचित बैठक व्यवस्था का न होना, इस पूरे तनाव की जड़ है। इस अव्यवस्था के कारण न केवल अधिवक्ता असंतुष्ट हैं, बल्कि उनके अनुसार, न्याय प्रक्रिया भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।

विवाद की शुरुआत और घटनाक्रम
यह विवाद उस समय गंभीर रूप ले लिया जब अधिवक्ताओं और पुलिस के बीच एक मामूली घटना को लेकर नोकझोंक शुरू हो गई। विवाद का तात्कालिक कारण न्यायालय परिसर के अंदर समोसा बेचने वाले एक व्यक्ति को पुलिस द्वारा हटाना था, जिससे अधिवक्ताओं का गुस्सा भड़क उठा।
इस छोटी सी झड़प के बाद तनाव इतना बढ़ गया कि थाना प्रभारी सहित भारी पुलिस बल को तुरंत मौके पर पहुंचना पड़ा। पुलिस ने स्थिति को शांत करने और मामले को सुलझाने का प्रयास किया। अधिवक्ताओं ने स्पष्ट रूप से अपनी समस्याओं को पुलिस बल के सामने रखा।
समोसे वाले पर पुलिसिया डंडा और भड़काऊ आरोप
विवाद की चिंगारी तब भड़की जब पुलिस ने कोर्ट परिसर के अंदर से एक समोसा बेचने वाले व्यक्ति को हटा दिया। वकीलों के अनुसार, यह पुलिस की दादागिरी थी, जिसने पहले से ही उबल रहे गुस्से को हवा दे दी। इसके बाद हुई तीखी नोकझोंक में, थाना प्रभारी समेत भारी पुलिस बल को तत्काल मौके पर पहुंचना पड़ा।
अधिवक्ताओं के तीखे वार:
- "हमारे चेंबर बंद हैं, कुर्सी-टेबल में ताला है! हम डेढ़ महीने से खुले आसमान के नीचे हैं।"
- "कोर्ट काम कर रहा है, पर हम वकील क्या दीवारों पर बैठकर काम करें? हमें पीने का पानी तक नहीं मिल रहा।"
वकीलों ने प्रशासन पर सबसे बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें झूठे मामलों में फंसाने और धमकी देने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी: "हम न्याय का काम करते हैं, अब अपने लिए भी न्याय लेंगे!"
प्रशासन की लाचारी: चार दिन की मोहलत
मामला इतना गर्मा गया कि पुलिस प्रशासन को घुटने टेकने पड़े। पुलिस ने अधिवक्ताओं से चार दिन का समय मांगा है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि इस 'डेडलाइन' के भीतर एक नई 'नीति' बनाई जाएगी ताकि वकीलों की बैठक व्यवस्था और सुविधाएं बहाल की जा सकें।
सवाल यह है: क्या प्रशासन चार दिन में इस 'महाभारत' को शांत कर पाएगा? या फिर कुर्सी-पानी का यह विवाद रीवा न्यायालय को और भी गहरे संकट में डालेगा? वकीलों ने साफ कर दिया है कि अगर उन्हें उनका हक नहीं मिला, तो न्याय की लड़ाई अब सड़क से सदन (कोर्ट) तक लड़ी जाएगी!
अधिवक्ताओं की मुख्य शिकायतें: बेघरपन की अनुभूति
अधिवक्ताओं ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि नवीन न्यायालय भवन में स्थानांतरण के बाद भी उनके लिए आवश्यक व्यवस्थाएँ नहीं की गई हैं। उनकी मुख्य शिकायतें निम्नलिखित हैं:
- बैठक व्यवस्था का पूर्ण अभाव: अधिवक्ताओं के बैठने के लिए कोई निश्चित या उचित स्थान नहीं है, जिसके कारण उन्हें अपने मुवक्किलों से चर्चा करने में कठिनाई हो रही है।
- चेंबर और सुविधाओं पर ताला: उनके चेंबर बंद हैं, और कुर्सी-टेबल जैसी बुनियादी चीज़ों में भी ताला लगा हुआ है।
- मूलभूत सुविधाओं की कमी: पानी, चाय और नाश्ते जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है, जिसके कारण उन्हें कार्य करना मुश्किल हो रहा है।
- न्यायालय में बेघर की तरह घूमना: एक अधिवक्ता के शब्दों में, "हमारे चेंबर बंद हैं, कुर्सी टेबल में ताला है, न्यायालय परिसर में हम बेघर जैसे घूम रहे हैं।"
अधिवक्ताओं का स्पष्ट मत है कि भले ही न्यायालय काम कर रहा है, परंतु न्यायालय की अभिन्न कड़ी होने के नाते, उनकी उचित व्यवस्था किए बिना न्याय प्रक्रिया को सुचारू रूप से पूरा नहीं किया जा सकता।
पुलिस प्रशासन का रुख और प्रशासनिक दबाव के आरोप
विवाद के दौरान पुलिस प्रशासन ने अपनी तरफ से पक्ष रखते हुए कहा कि न्यायालय परिसर में प्रवेश या किसी भी प्रकार की व्यवस्था के लिए उन्हें न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता होती है।
प्रशासन द्वारा मांगा गया समय
मामले को शांत करने के लिए, पुलिस प्रशासन ने अधिवक्ताओं से चार दिन का समय मांगा है। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि इस समय के भीतर वे एक नई नीति (Policy) बनाएंगे, जिसके आधार पर अधिवक्ताओं के बैठने और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की जा सकेगी।
अधिवक्ताओं द्वारा गंभीर आरोप
अधिवक्ताओं ने पुलिस प्रशासन की इस कार्रवाई और पहले के रवैये पर गंभीर आरोप लगाए हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि प्रशासन उन्हें दबाने के लिए धमकी दे रहा है और उन पर झूठे मामले बनाने की कोशिश कर रहा है।
महत्वपूर्ण उद्धरण: "पुलिस प्रशासन जो धमकी देता है, वह स्वीकार्य नहीं है। हम न्याय काम करते हैं, हम अपने लिए भी न्याय लेंगे।"
विशेष रूप से, अधिवक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन की ओर से एससी/एसटी (SC/ST) कर्मचारियों के संदर्भ में भी कुछ विवादित बातें कही गई हैं, जिसका उन्होंने पुरजोर विरोध किया है।
निष्कर्ष: न्याय और गरिमा का सवाल
रीवा के नवीन न्यायालय भवन का यह विवाद प्रशासनिक शिथिलता और संसाधनों के कुप्रबंधन को दर्शाता है। यह स्थिति न केवल अधिवक्ताओं की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है, बल्कि न्यायालय परिसर में उनके सम्मान और गरिमा का भी सवाल खड़ा करती है।
हालांकि, पुलिस प्रशासन ने चार दिन में नीति बनाकर समस्या समाधान का आश्वासन दिया है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस समय-सीमा के भीतर अधिवक्ताओं की मांग को किस प्रकार पूरा करता है, ताकि न्यायालय परिसर में व्याप्त तनाव को खत्म किया जा सके और न्याय कार्य बिना किसी बाधा के सुचारू रूप से चल सके।
सुझाव और अपेक्षाएँ
- तत्काल समाधान: प्रशासन को अविलंब अधिवक्ताओं के लिए पर्याप्त बैठक स्थल, पीने का पानी और स्वच्छता जैसी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।
- पारदर्शी नीति: पुलिस और न्यायालय प्रशासन को मिलकर पारदर्शी और स्थायी नीति बनानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे विवाद न हों।
- संवाद और सम्मान: सभी हितधारकों के बीच बेहतर संवाद स्थापित किया जाना चाहिए ताकि उनके अधिकारों और गरिमा का सम्मान सुनिश्चित हो सके।