CM मोहन, इजराइली कंपनी को तुरंत ब्लैकलिस्ट करो! Collector रीवा, 11 माह की वेतन चोरी और कोर्ट अवमानना पर FIR कब? SGMH में श्रम कानूनों का नरसंहार बर्दाश्त नहीं!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान, संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय (SGMH), रीवा में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों का जीवन इजराइली कंपनी के तानाशाही और मनमानी रवैये के कारण नरक बन गया है। यह सिर्फ कर्मचारियों का धरना प्रदर्शन नहीं है, बल्कि श्रम कानूनों (Labour Laws) और मानवाधिकारों का सरेआम उल्लंघन है, जिस पर Collector, Commissioner, और सीधे मुख्यमंत्री (CM) मोहन यादव को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए।

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कर्मचारियों का स्पष्ट आरोप है कि कंपनी न केवल उन्हें वैधानिक लाभों से वंचित कर रही है, बल्कि अदालत के आदेशों की भी खुलेआम अवहेलना कर रही है। यह स्थिति दिखाती है कि कैसे कुछ निजी कंपनियाँ सरकारी संरक्षण का लाभ उठाकर गरीब श्रमिकों का शोषण कर रही हैं।

11 माह का 'कोर्ट ऑर्डर्ड' वेतन क्यों रोका गया? - रीवा प्रशासन पर सवाल
आउटसोर्स कर्मचारियों की सबसे गंभीर शिकायत है कि कंपनी ने 11 माह का लंबित वेतन (Arrears) नहीं दिया है, जबकि कथित तौर पर इसके लिए कोर्ट के आदेश भी हैं। यह कानूनी रूप से एक आपराधिक कृत्य है।

  • प्रश्न: जब माननीय न्यायालय ने भुगतान का आदेश दिया है, तो एक निजी कंपनी में इतनी हिम्मत कहाँ से आई कि वह इस आदेश को लागू न करे?
  • सवाल: Collector और Commissioner रीवा, जो जिले के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी हैं, उन्होंने कोर्ट के आदेशों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए हैं? क्या रीवा में श्रम कानूनों का पालन करने की कोई जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है?

यह 'लंबित वेतन' दरअसल कर्मचारियों के परिश्रम की चोरी है। जिस वेतन पर उनके परिवार की रोटी-रोजी, बच्चों की शिक्षा, और स्वास्थ्य निर्भर है, उसे मनमाने ढंग से रोकना गरीबों के विरुद्ध युद्ध जैसा है।

'स्किल इंडिया' के नाम पर 'वेतन कटौती' का घोटाला क्या है?
कंपनी द्वारा किया जा रहा प्रशिक्षण के नाम पर कटौती एक और बड़ा घोटाला है। कर्मचारियों के वेतन से 'स्किल इंडिया' प्रशिक्षण के लिए राशि काटी जाती है, लेकिन:

  • प्रशिक्षण कहाँ है?: कर्मचारियों को न तो कोई प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही इसकी कोई जानकारी दी जाती है।
  • अवैध कटौती: राष्ट्रीय छुट्टियों (National Holidays) के नाम पर हर कर्मचारी के खाते से ₹230 या उससे अधिक की अवैध कटौती की गई है, जिसे वापस नहीं किया गया है।

यह सीधा-सीधा 'वेतन चोरी' (Wage Theft) और 'सरकारी योजना' का दुरुपयोग है। सरकारी अस्पताल (SGMH) के भीतर यह गोरखधंधा कैसे चल रहा है, इस पर CM मोहन यादव को उच्च-स्तरीय जाँच के आदेश देने चाहिए कि प्रशिक्षण के पैसे कहाँ जा रहे हैं?

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प्रशासनिक दबाव और नौकरी से निकालने की धमकी: कर्मचारी कैसे काम करें?
जब कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं, तो कंपनी का रवैया और भी तानाशाही हो जाता है:

  • बिना जाँच के निष्कासन: शिकायत करने वाले कर्मचारियों को बिना उचित जाँच के नौकरी से निष्कासित किया जा रहा है।
  • कानूनी धमकियाँ: कर्मचारियों को झूठे मुक़दमे लगाने की धमकी दी जा रही है।

क्या रीवा में न्याय के लिए आवाज़ उठाना अपराध है? आउटसोर्स कर्मचारियों को प्रशासनिक संरक्षण मिलना चाहिए, न कि धमकियाँ। Collector रीवा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कर्मचारी को प्रतिशोध (Retaliation) की भावना से नौकरी से न हटाया जाए।

ड्यूटी रोस्टर और तानाशाही रवैया: कर्मचारी कब तक सहेंगे?

  • बिना सहमति ड्यूटी में बदलाव: कंपनी ने कर्मचारियों की सहमति के बिना ड्यूटी में बदलाव किया और नया ड्यूटी रोस्टर लागू करने का प्रयास किया। श्रम कानूनों के अनुसार, कर्मचारियों की सहमति और उचित सूचना आवश्यक है।
  • पारदर्शिता की कमी: कर्मचारियों की नियुक्ति और कार्यभार में कोई पारदर्शिता नहीं है।

कंपनी का यह मनमाना रवैया दिखाता है कि वह कर्मचारियों को सिर्फ एक वस्तु मानती है, जिनके मानवाधिकारों का कोई मूल्य नहीं है। कर्मचारियों की माँग है कि ड्यूटी में बदलाव के लिए उचित सूचना और उनकी सहमति ली जाए, और तानाशाही रवैये को समाप्त किया जाए।

रीवा प्रशासन की चुप्पी और कर्मचारियों का आक्रोश - CM मोहन यादव से सीधी अपील
अस्पताल प्रबंधन ने कर्मचारियों की समस्याओं को समझा है और समाधान का आश्वासन दिया है। लेकिन ये 'आश्वासन' अब तक जमीन पर नहीं उतरे हैं।

  • Commissioner Rewa, क्या यह पर्याप्त है कि कंपनी को 1 जनवरी से नया रोस्टर लागू करने का 'प्रस्ताव' दिया जाए? बकाया वेतन और अवैध कटौती का तुरंत भुगतान क्यों नहीं हो रहा है?
  • CM mohan yadav : आपके प्रदेश में एक विदेशी कंपनी SGMH जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में श्रम कानूनों को कुचल रही है। यह मामला सिर्फ आउटसोर्सिंग का नहीं, बल्कि राज्य की प्रशासनिक क्षमता पर सवालिया निशान है। तत्काल एक उच्च-स्तरीय जाँच कमेटी गठित की जानी चाहिए जो इन आरोपों की गंभीरता से जाँच करे और कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट को रद्द करने पर विचार करे।

जब तक कर्मचारियों की न्यायसंगत मांगें (लंबित वेतन, कटौती की वापसी, और तानाशाही रवैये का अंत) पूरी नहीं होतीं, तब तक संघर्ष और आंदोलन की संभावना बनी रहेगी।

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