REWA : निजी स्कूल और किताबों का धंधा चालू , अभिभावकों पर किताब खरीदने का बना रहे दबाव

 
REWA : निजी स्कूल और किताबों का धंधा चालू , अभिभावकों पर किताब खरीदने का बना रहे दबाव

रीवा. कोविद-19 के चलते निजी एवं शासकीय स्कूल बंद हंै। बावजूद लॉकडाउन में रियायत मिलने के स्कूल व किताबों को धंधा चालू हो गया है। शहर की बड़ी अंग्रेजी स्कूल ऑनलाइन पाठ्यक्रम चालू कर अभिभावकों से किताबें खरीदने का दबाव बना रही हैं। ऐसे में अभिभावकों को मुश्किल बढ़ गई है। अभिभावक नई किताबें खरीदें, इसके लिए वह कुछ निजी प्रकाशकों की किताबें बदल दी है।बताया जा रहा कि स्कूल के 12 बड़ी अंग्रेजी माध्यम स्कूल है जो सीबीएसई से सम्बद्धता ले रखी है। इन स्कूलों को शैक्षणिक सत्र अप्रेल से प्रांरभ होता है लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों में कक्षा ८ तक छात्रों को जनरल प्रमोशन दे दिया गया है। इसके बाद अभी स्कूल संचालित नहीं हो रही है। लेकिन स्कूल अभिभावकों को फीस जमा करने और नई किताबों को लेकर दबाव बनाने लगे है। इसके लिए वह ऑन लाइन पाठय क्रम में सामग्री भेजने के बाद अभिभावकों को किताबे खरीदने के दबाव बना रहे है। इसे अभिभावकों की मुश्किल बढ़ गई है।

बेखबर विभाग, नहीं दी प्रकाशक की सूची
स्कूल शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक ने निजी स्कूलों संचालकों किताबों की मनमानी रोकने सिर्फ स्कूलों को संबंधित बोर्ड के अतिरिक्त अन्य किताबे लगाने का निर्देश नहीं दिया था। साथ ही इस संबंध में नोटिस जारी कर सभी स्कूलों से प्रकाशकों कीसूची मांगी थी। लेकिन शहर में 12 अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों ने किताबों की सूची नहीं दी। साथ ही बोर्ड से अतिरिक्त निजी प्रकाशकों की किताबे लगा रहे है।

दो दुकानों में उपलब्ध हैं पुस्तकें
शहर की 12 बड़ी अंग्रेजी माध्यमों स्कूलों के किताबों की ब्रिकी शुरु हो गई। लेकिन यह इन स्कूलों की पुस्तके सिर्फ दो दुकानों में उपलब्ध है। इनमें एक-एक दुकानें स्कूल संचालकों ने अधिकृत कर रखी है। इन दुकानों के अतिरिक्त अभिभावकों को किताबे नहंी मिलेगी। परिणाम स्वरुप यह निजी प्रकाशकों की किताबे पिं्रट रेट में दे रही है। जबकि इन किताबों में प्रिंट रेट ३४ से ४० फीसदी तक अधिक रहते है।

एनसीईआरटी की किताबों से परहेज
शहर की निजी स्कूल सीबीएसई से सम्बद्धता के आधार में मोटी फीस वसूलते है। वहीं सीबीएसई की अधिकृत एनसीआरटी की किताबे लगाने में परहेज करते है। दरअसल कक्षा १ की एनसीईआरटी की किताबें जहां २४८ रुपए तक है। वहीं निजी प्रकाशकों की यही किताबेें २४ सौ से अधिक रुपए की है।




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