RAHAT INDORI : मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना

 
RAHAT INDORI : मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना

रायपुर। गजलों की रूह कहे जाने वाले मशहर शायर राहत इंदौरी के यूं अचानक गुजर जाने से छत्तीसगढ़ गहरे सदमे है। इंदौरी साहब का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा है। उनकी मौत की खबर से यहां के कवि-शायर और उन्हें पसंद करने वाले कद्रदान स्तब्ध रह गए। सभी उनकी यादों में खोए रहे। इंदौरी साहब शाश्वत सत्य मौत पर अक्सर लिखते रहे हैं। आज रायपुर शहर के कई लोगों ने उनका ये शेर याद किया-'मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना,लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।'


उर्दू अदब के जहीन शायर, जिनके लहजे की बेबाकी उनकी नज्मों, शेरों और गजलों से झलकती रही है, उनका नाम है राहत इंदौरी। वे आज हमारे बीच नहीं रहे। राहत इंदौरी का जाना साहित्य जगत में कभी न भरने वाला अधूरापन है। राहत इंदौरी ने कभी कहा था- जनाजे पर मिरे लिख देना यारो मोहब्बत करने वाला जा रहा है। इस शायर की जिंदगी भी उतनी ही शफ्फाक और अलहदा रही है, जैसे कि उसकी शायरी।


छत्तीसगढ़ के सुधी श्रोता उन्हें कभी नहीं भूल पाएंगे। उनकी शेर-ओ-शायरी सुनने के लिए जब कभी राजधानी में मुशायरा होता था तो अन्य शहरों से भी उनके चाहने वाले लोग अवश्य आते थे। यदि किसी और शहर में आयोजन होता तो राजधानी से भी अनेक रसिक वहां पहुंच जाते थे। इसी साल वे दो बार छत्तीसगढ़ आए। मुंगेली में आयोजित नईदुनिया के कार्यक्रम में उन्हें सुनने के लिए श्रोताओं का हुजूम उमड़ पड़ा था। इसके अलावा राजधानी में एक मुशायरे में उन्होंने शिरकत की। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा था कि जब-जब छत्तीसगढ़ से बुलावा आएगा, वे इन्कार कभी नहीं करेंगे, चाहे लाख दिक्कतें आएं, वे अवश्य आएंगे।


मेरा मान रखने नहीं खाया नॉनवेज - कवि सुरेंद्र दुबे

छत्तीसगढ़ के जाने-माने कवि पद्मश्री सुरेंद्र दुबे की आंखें राहत इंदौरी के संस्मरण सुनाते हुए नम हो गईं। उनकी यादों में खोए उन्होंने नईदुनिया को बताया कि जब इंदौरी साहब पिछली बार 24 फरवरी को मुंगेली आए थे तो उनके मंच पर आने से पहले बारिश शुरू हो गई। इस पर उन्हें महसूस हुआ कि यदि उन्होंने कुछ नहीं सुनाया तो श्रोता निराश हो जाएंगे। इसके बाद उन्होंने छाता तानकर शायरी सुनाई। शायरी के माध्यम से कभी उन्होंने श्रोताओं को गमगीन किया तो कभी जोशोखरोश से तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। उनके साथ मुझे ढेर सारे मंचों को साझा करने का मौका मिला।


एक बार कुछ दिनों तक उनके साथ रहने का अवसर आया, होटल में भोजन करने के दौरान सभी नॉनवेज खा रहे थे। राहत साहब को महसूस हुआ कि उनके नॉनवेज खाने की वजह से मुझ ब्राह्मण को दिक्कत हो रही है तो उन्होंने उतने दिनों तक नॉनवेज नहीं खाया, जितने दिनों तक मैं उनके साथ रहा। कुछ अपवादों वाली शेरो-शायरी को छोड़ दें तो वे बहुत बेहतरीन इंसान थे। उनके अंग-अंग से शायरी टपकती थी। वह अक्सर कहते थे कि कुछ शेर-ओ-शायरी पढ़ने लिए व्यवहार से बदचलन भी होना पड़ता है।


1992 में दरगाह के मुशायरे में बांधा था समां

कवि सम्मेलनों के आयोजक एवं स्वयं कवि लक्ष्मीनारायण लाहोटी बताते हैं कि 1992 में पुरानी बस्ती, शीतला मंदिर के सामने दरगाह में आयोजित मुशायरे में हमने राहत इंदौरी साहब को आमंत्रित किया था। उस वक्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती थी। एक आम शायर की तरह उन्होंने प्रस्तुति देकर जो समां बांधा था, वह आज भी याद है। उन्हें सुनने के लिए रात भर श्रोता बैठे रहते थे। वे किसी भी चीज को देखकर तुरंत शायरी लिखकर पेश कर देते थे, कई सम्मेलनों में उन्हें सुनने के लिए हम अपनी कवि मंडली के साथ जाते थे, उनकी मशहूर शायरी दो गज जमीन ही सही यही मेरी मिल्कियत है, ऐ मौत तूने मुझे जमींदार बना दिया। इसे भला कौन भूल सकता है?

शायरी के जादूगर के साथ पांच घंटे किया था मैंने सफर

छत्तीसगढ़ के कवि मीर अली बताते हैं कि साल 2012 में पहली बार राहत इंदौरी से मुलाकात हुई। मैं उनका फैन रहा। उन्हें इधर-उधर करने की आदत नहीं थी। मंच पर आते तो किसी को नहीं छोड़ते थे। उनके साथ जांजगीर जाते समय पांच घंटे बिताया। इस दिन रात को किसी को उन्होंने सोने नहीं दिया। जब वे मंच पर आते तो उनकी शायरी बोलने से पहले ही युवा झूमकर बोलने लगते थे।

मीर अली मीर ने राहत इंदौरी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए एक घटना भी साझा की। उन्होंने बताया कि एक घटना हमेशा याद रहेगी। रायपुर के एक कार्यक्रम के दौरान इंदौरी साहब को वॉशरूम जाना था। वह उठते वक्त अचानक गिर गए। उनके माथे पर चोट भी लगी। उस वक्त दर्शक खामोश हो गए थे। वॉशरूम से लौटने के बाद इंदौरी साहब ने परिहास में कहा- राहत इंदौरी को ये सोचकर मत सुनना कि वो गिरा हुआ है। गिरकर रचना पढ़ रहा है। इंदौरी को सुनना है तो राहत इंदौरी समझकर सुनो, गिर गया है मानकर मत सुनो। खुद के गिरने से उन्हें अफसोस नहीं हुआ।


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