भगवान श्रीराम की गाथा को संपूर्ण विश्व में प्रसिद्धि दिलाने वाले रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि छत्तीसगढ़ से गहरा नाता

 

भगवान श्रीराम की गाथा को संपूर्ण विश्व में प्रसिद्धि दिलाने वाले रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि छत्तीसगढ़ से गहरा नाता

रायपुर। भगवान श्रीराम की गाथा को संपूर्ण विश्व में प्रसिद्धि दिलाने वाले रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जयंती आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाएगी। चूंकि पूर्णिमा तिथि दो दिन मनाई जा रही है, इसलिए शनिवार को उदया तिथि वाली पूर्णिमा पर जयंती मनाएंगे। इस बार कोरोना के चलते संस्कृत भारती के नेतृत्व में आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है।

तुरतुरिया में पैदा हुए लवकुश

संस्कृत भारती के छत्तीसगढ़ प्रवक्ता पं. चंद्रभूषण शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ के 'तुरतुरिया' में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। ऐसी मान्यता है कि इसी आश्रम में लवकुश पैदा हुए थे। ग्रामीणों में तुरतुरिया आश्रम के प्रति अगाध श्रद्घा है। प्रांत मंत्री डा. दादूभाई त्रिपाठी और डॉ. गोपेश तिवारी ने बताया की महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण की रचना की थी।

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार वे रत्नाकर नाम के दस्यु थे, नारद मुनि की प्रेरणा से वे भगवान राम के भक्त बन गए। उन्होंने कई वर्षों तक राम राम मंत्र का जाप किया और वाल्मीकि के रूप में प्रसिद्ध हुए। रामायण महाकाव्य की रचना की।

संस्कृत भाषा के आदि कवि वाल्मीकि

वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए परन्तु वे एक ज्ञानी केवट थे,वे कोई ब्राह्मण नही थे, एक बार महर्षि वाल्मीक एक सारस पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिए ने सारस पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।

''मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्''

(निषाद)अरे बहेलिये, (यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्) तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं (मा प्रतिष्ठा त्वगमः) हो पाएगी)

जब महर्षि वाल्मीकि बार-बार उस श्लोक के चिंतन में ध्यान मग्न थे, उसी समय प्रजापिता ब्रह्माजी मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि जी के आश्रम में आ पहुंचे। मुनिश्रेष्ठ ने उनका सत्कार अभिवादन किया तब ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं। इसलिए आप इसी छंद (श्लोक) में रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित की रचना करें। संसार में जब तक इस पृथ्वी पर पहाड़ और नदियां रहेंगी तब तक यह रामायण कथा गाई और सुनाई जाएगी।

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