REWA : आशा कार्यकर्ता रंजना द्विवेदी दुनियाभर में मचा रहीं धूम, वॉशिंगटन की नजर में आया रंजना का पोस्टर

 
REWA : आशा कार्यकर्ता रंजना द्विवेदी दुनियाभर में मचा रहीं धूम, वॉशिंगटन की नजर में आया रंजना का पोस्टर

रीवा. जिले के गुरगुदा गांव की आशा कार्यकर्ता रंजना द्विवेदी पोस्टर के माध्यम से लोगों को कोरोना और अन्य बीमारियों के प्रति जागरुक कर रहीं हैं। यह पोस्टर वॉशिंगटन की अंतरराष्ट्रीय संस्था एनपीआर डॉट ओआरजी के नजर में आए हैं। रंजना दस साल से आशा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहीं हैं। पोलिया अभियान, फाइलेरिया, एनीमिया आदि से जुड़े अभियान के पोस्टर बनाकर सोशल मीडिया पर भी साझा करती हैं। 

वॉशिंगटन की नजर में आया रंजना का पोस्टर 
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोग अपने-अपने तरीकों से लोगों को जागरुक कर रहे हैं। जिसमें रीवा जिले के गुरगुदा गांव की आशा कार्यकर्ता रंजना द्विवेदी भी शामिल हैं। रंजना पोस्टर के माध्यम से लोगों को कोरोना और बीमारियों के प्रति जागरुक कर रहीं हैं। वे पोस्टर सोशल मीडिया पर साझा करती है। यह पोस्टर वॉशिंगटन की अंतरराष्ट्रीय संस्था एनपीआर डॉट ओआरजी की नजर में आए। इसके बाद संस्था ने उन्हें विश्व की 19 प्रभावशाली महिलाओं में शामिल किया। इसी महीने एनपीआर ने उनके तीन इंटरव्यू प्रकाशित किए। इसके बाद पूरे स्वास्थ्य महकमें से उन्हें बधाई मिल रही। 

बेस्ट हेल्थ वर्कर
वॉशिंगटन डीसी में स्थित नेशनल पब्लिक रेडियो एनपीआर ने 19 महिलाओं की स्टोरी बीते 9 अक्टूबर को प्रकाशित की थी। इसमें आप एक बीमारी से कैसे बच सकते हैं। ये महिलाएं सभी के लिए सबक हैं। ंइस थीम पर किए गए आर्टिकल में रंजना द्विवेदी के काम के बारे में बताया गया है। 

आशा को देखकर छिप जाती थीं महिलाएं, अब करती हैं इंतजार 
कोरोना वारियर आशा कार्यकर्ता रंजना द्विवेदी की मेहनत रंग लाई। रंजना की मेहनत न केवल गांव और देश में बल्कि पूरे दुनिया में धूम मचा दी है। जिला मुख्यालय से करीब 95 किमी दूर स्थित गुरगुदा गांव की महिलाएं आशा रंजना द्विवेदी के आने की सूचना से छिप जाती थीं। कई महिलाएं तो घर में रहकर भी जंगल में लकड़ी काटने का बहाना बनाती रहीं। लेकिन, रंजना फिर भी हार नहीं मानी। रंजना कहती हैं कि गांव की महिलाओं को टीकाकरण समेत अन्य बीमारियों के इलाज के लिए समझाना पत्थर पर दूब जमाने जैसा था। लेकिन, अब वह खुद आने का इंतजार करती हैं। 

इंजेक्शन लगाने के भय से भाग जाती थीं जंगल 
प्रारंभ में गांव पहुंचना मुश्किल होती था। गांव की महिलाएंं पास नहीं आती थीं। देखने पर छिप जाती थीं। काफी प्रयास के बाद इलाज के लिए तैयार हुईं। इनजेक्शन लगाने के नाम पर जंगल चले जाने का बहाना करतीं। उन्हें टीकाकरण और इलाज के लिए टमस नदी को नाव से पार कराकर भडऱा में ले जाती रहीं। इस बीच वह एक बार नदी में गिर गईं। फिर भी रंजना हिम्मत नहीं हारी। गांव में महिलाओं के सेहत को लेकर सक्रिय रहती थीं। गांव की एक महिला को तीन बेटियां हो गईं। जिससे वह दुखी थी। रंजना से उसे समझाया बुझाया तो गांव की महिलाओं ने अपनी बेटी का नाम ही रंजना रख दिया।

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