REWA : डॉट्स प्रणाली भी बीमारी को नहीं कर पा रही कंट्रोल, रीवा में टीबी के बढ़े रहे मरीज

 

REWA : डॉट्स प्रणाली भी बीमारी को नहीं कर पा रही कंट्रोल, रीवा में टीबी के बढ़े रहे मरीज

रीवा। टीबी की बीमारी से लोगों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन लगातार प्रयास करने के साथ ही बीमारी से ग्रसित मरीजों को निशुल्क जांच दवाईयां तो उपलब्ध करा ही रहा है। मरीजों को 500 र्स्पए प्रोत्साहन राशि के रूप में भी दी जा रही है। बावजूद इसके यह बीमारी जिले में कम होने का नाम नहीं ले रहा है। विगत वर्षों के आंकड़े पर नजर दौड़ाए तो सामान्य टीबी की कौन कहे गंभीर कटेगरी में आने वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ी है। चालू वर्ष में जो आंकड़े 9 माह के अंतराल में सामने आए हैं उसके तहत 89 गंभीर टीबी के मरीज पंजीकृत हुए हैं। जबकि तीन से चार वर्ष पूर्व ऐसे मरीजों की संख्या 50 से भी कम रही है।

दो कटेगरी में रखे गए हैं मरीज

टीबी बीमारी के मरीजों को दो कटेगरी में रखा गया है। सामान्य टीबी मरीजों की संख्या जिले में एक हजार से ज्यादा है। तो वहीं एमडीआर में पिछले 11 माह के अंतराल में 89 मरीज सामने आए हैं। डॉक्टरों की माने तो टीबी के मरीज चिंहित होने पर उन्हें सामान्य कटेगरी में रखा जाता है और इलाज करने के बाद ही बीमारी पर कन्ट्रोल नहीं होने पर और रेड लाइन में आने पर ऐसे मरीजों को एमडीआर यानी कि गंभीर बीमारी की कटेगरी में शामिल किया जाता है।

क्या है व्यवस्था

टीबी के मरीजों को इलाज उनके गांव क्षेत्र में ही उपलब्ध हो सके इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं को जोड़ा गया है। स्वास्थ्य केन्द्रों में परीक्षण के साथ ही बलगम के जांच की भी सुविधा बनाई गई है। मरीज का परीक्षण होने के बाद पहली कटेगरी के स्तर से 6 महीने के लिए उसे दवाईयां उपलब्ध कराई जाती हैं और पूरी किट दी जाती है जिससे वह नियमित रूप से अपनी दवाइयां ले सके।

जानकारी की कमी

सामान्य से गंभीर बीमारी का शिकार हो रहे मरीजों के पीछे का कारण जानकारी की कमी एक है। दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में जो व्यवस्था मरीजों के इलाज के लिए बनाई गई है उन्हें इलाज संबंधी जानकारी नहीं रहती है। अस्पताल और मैदानी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा ऐसे मरीजों को इलाज संबंधी जानकारी नहीं दी जाती है। जिसके चलते वे मुख्यालय के अस्पताल सहित अन्य स्थानों पर भटकते रहते हैं और उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पाता है जिससे एमडीआर कटेगरी में पहुंच जाते हैं।

एमडीआर मरीजों पर एक नजर

वर्ष -मरीज संख्या

2014 -43

2015 -42

2016 -68

2017 -54

2018 -66

2019 -72

2020 (20 नंबवर तक)- 89

इनका कहना है

टीबी के मरीजों को बराबर इलाज दिया जा रहा है। 6 महीने के इलाज में वह ठीक नहीं होता है तो उसे एमडीआर कटेगरी में रखा जाता है और अलग से जांच कराए जाने के साथ ही उसका इलाज भी किया जा रहा है।

डॉ. बीपी मिश्रा जिला क्षय अधिकारी।

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