मध्‍यप्रदेश में 11 महीने में तीन सौ एकड़ वनभूमि पर अतिक्रमण, रीवा में सबसे ज्यादा 308 मामले : राजनीतिक रसूख के चलते आरोपितों पर नहीं होती कार्यवाही

 

मध्‍यप्रदेश में 11 महीने में तीन सौ एकड़ वनभूमि पर अतिक्रमण, रीवा में सबसे ज्यादा 308 मामले : राजनीतिक रसूख के चलते आरोपितों पर नहीं होती कार्यवाही

भोपाल। मैदानी स्तर पर सख्ती के बावजूद प्रदेश में वनभूमि पर अतिक्रमण के मामले नहीं रुक रहे हैं। पिछले 11 महीने (एक जनवरी से 15 दिसंबर 2020) प्रदेश में वनभूमि पर अतिक्रमण के 1549 मामले सामने आए हैं। इस दौरान करीब तीन सौ एकड़ वनभूमि पर कब्जा हुआ है। इनमें सबसे ज्यादा 308 मामले रीवा वनवृत्त में दर्ज हुए हैं। वन मुख्यालय ने मैदानी अधिकारियों को अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। वहीं अतिक्रमण के पुराने कई मामले राजनीतिक रसूख के चलते चार एवं पांच साल से फाइलों में कैद हैं।

वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 11 महीने में रीवा के बाद सबसे ज्यादा अतिक्रमण के मामले शिवपुरी वनवृत्त में सामने आए हैं। वृत्त में 274 मामले दर्ज किए गए हैं। ऐसे ही इंदौर वृत्त में 186, छतरपुर में 138 मामले दर्ज हुए हैं। वनभूमि पर अतिक्रमण के मामले में भोपाल वनवृत्त भी पीछे नहीं है। वृत्त में 116 मामले दर्ज हुए हैं। सूत्र बताते हैं कि सभी 1549 मामलों में करीब तीन सौ एकड़ वनभूमि पर अतिक्रमण होना पाया गया है।

वन अधिकारियों का दावा है कि इनमें से कुछ मामलों में वनभूमि से अतिक्रमण हटाया है। जबकि ज्यादातर मामलों में अतिक्रमणकारी अभी भी काबिज हैं। इतना ही नहीं, वन्यजीवों के नजरिए से बेहद संवेदनशील प्रदेश के टाइगर रिजर्व में भी अतिक्रमण हुआ है। सबसे ज्यादा आठ मामले पन्न टाइगर रिजर्व में सामने आए हैं। बांधवगढ़ में सात और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में पांच मामले सामने आए हैं।

वन अधिकार पट्टों के लिए अतिक्रमण

जानकार बताते हैं कि वनभूमि पर अतिक्रमण की मुख्य वजह वन अधिकार पट्टे हैं। सरकार वन अधिकार पट्टों के लिए आए आवेदनों का बार-बार परीक्षण करा रही है। इससे लोगों को उम्मीद है कि वे जिस भूमि पर कब्जा करेंगे, वह उन्हें मिल जाएगी। इसलिए ज्यादा अतिक्रमण हो रहा है। उल्लेखनीय है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत वनभूमि पर वर्ष 2005 के पहले से काबिज लोगों को सरकार उस भूमि का मालिकाना हक दे रही है।

पुराने अतिक्रमण नहीं हटा पाया विभाग

विभाग नए अतिक्रमण हटाने की बात तो कर रहा है, पर पुराने अतिक्रमण ही नहीं हटा पाया है। भोपाल वनमंडल की ही बात करें, तो कई मामले लंबित हैं। समरधा वनपरिक्षेत्र अंतर्गत बालमपुर घाट से अवैध मुरम उत्खनन और वनभूमि पर पक्का मकान बनाने के मामले में अब तक कार्यवाही नहीं हुई। मामला वर्ष 2015 का है। बालमपुर उप वनपरिक्षेत्र के तत्कालीन डिप्टी रेंजर ने मामला पकड़ा था।

आरोपितों ने डिप्टी रेंजर के साथ मारपीट भी की थी। मामला पुलिस तक पहुंचा था, पर राजनीतिक रसूख के चलते आरोपितों पर कार्यवाही नहीं हुई। यहां तक की अवैध उत्खनन में लगी जेसीबी मशीन तक जब्त नहीं हुई। दूसरा मामला मुंगालिया कोट का है। यहां वन भूमि पर वृद्धाश्रम बन गया। मैदानी कर्मचारियों ने पकड़ा भी, पर प्रकरण दर्ज नहीं हुआ।

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