वैज्ञानिक प्रेमी जोड़े की 30 साल की मेहनत का नतीजा है कोरोना का यह टीका : फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन को देश में आपात प्रयोग के लिए मिली मंजूरी

 

वैज्ञानिक प्रेमी जोड़े की 30 साल की मेहनत का नतीजा है कोरोना का यह टीका : फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन को देश में आपात प्रयोग के लिए मिली मंजूरी

दुनियाभर में कोरोना वायरस ने कहर ढाया हुआ है। इसी बीच ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन को देश में आपात प्रयोग के लिए मंजूरी दे दी है। वहीं, जिस फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन को पश्चिमी यूरोप में सबसे पहले मंजूरी मिली है, दरअसल उसके पीछे एक लंबी कहानी है। 

यह कहानी 30 साल पहले ग्रामीण जर्मनी में शुरू हुई थी, जब तुर्की प्रवासियों के दो बच्चों ने कैंसर के लिए एक नए उपचार का आविष्कार करने का वचन लिया। ये दोनों ही एक-दूसरे से प्रेम करते थे और पेशे से चिकित्सक थे। बता दें कि ब्रिटेन ने जिस फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन को प्रयोग के लिए मंजूरी दी है, उसे तैयार करने में केवल 10 महीने का ही वक्त लगा है। 

बायोएनटेक के संस्थापकों ने तीन दशक पहले ही शुरू किया था काम

बायोएनटेक द्वारा तैयार किए गए वैक्सीन को कंपनी के संस्थापक उगुर साहिन और ओजलेम टुअर्स की पति-पत्नी की टीम ने तैयार किया है। हालांकि, यह वैक्सीन भले ही 10 महीने में तैयार हो गई है, लेकिन यह तीन दशकों के काम का नतीजा था, जो कोरोना वायरस के सामने आने से बहुत पहले ही शुरू हुआ था।

महामारी के फैलने से पहले ही डॉ साहिन ने एमआरएनए, आनुवांशिक निर्देशों के अध्ययन पर वर्षों बिताए थे, जो शरीर में इसे वायरस और अन्य खतरों से बचाने में मदद करने के लिए दिया जा सकता है। जनवरी में, जब यूरोप में पहली बार बीमारी सामने आई। उन्होंने अपने घर के कंप्यूटर पर वैक्सीन के एक संस्करण को डिजाइन करने के लिए इस ज्ञान का उपयोग किया था।

कैंसर रोगियों के लिए कर रहे थे शोध

डॉ साहिन का जन्म 1965 में तुर्की के भूमध्यसागरीय तट पर स्थित इस्केंडरन में हुआ था। वह चार साल बाद जर्मनी चले आए और उन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए डॉक्टर बनने का फैसला किया।

डॉ साहिन और डॉ टुअर्स ने कहा कि हमारी हताशा कैंसर रोगियों के लिए थी, जिन पर कीमोथेरेपी काम नहीं कर रही थी और अब वे किसी और माध्यम से इलाज नहीं करवा पा रहे थे। इसके पीछे का असल कारण एमआरएनए था। 

डॉ टुअर्स ने बताया कि हम दोनों की मुलाकात 1990 में होम्बर्ग विश्वविद्यालय अस्पताल में हुई थी। इस दौरान हमें एहसास हुआ कि मानक थेरेपी के साथ हम जल्दी ही एक ऐसे बिंदु पर आ जाते हैं, जहां हमारे पास कैंसर मरीजों को देने के लिए कुछ भी नहीं होता है। यह एक औपचारिक अनुभव था। 

प्रतिरक्षा प्रणाली पर आधारित उपचारों पर किया शोध

दंपति ने प्रायोगिक थेरेपी पर अपने डॉक्टरेट शोध प्रबंध लिखे। उस समय मायन्ज में गुटेनबर्ग विश्वविद्यालय के हेमेटोलॉजी और ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख और अब बायोएनटेक के गैर कार्यकारी निदेशक क्रिस्टोफ ह्यूबर ने उन्हें अपने फैकल्टी में शामिल होने के लिए राजी किया। 

वहां उन्होंने एक संक्रामक बीमारी की तरह कैंसर को हराने के लिए शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रोग्रामिंग पर आधारित नए उपचारों पर शोध करना शुरू किया। इस शोध के जरिए जाकर आज बायोएनटेक ने कोरोना की वैक्सीन को तैयार किया है। 


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